छठ महापर्व पर निबंध :-hindi essay on chhath mahaparv
भूमिका
आस्था और विश्वास का महापर्व छठ बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व अब विदेशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा में भी मनाया जाने लगा है। यह पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है। पहली पूजा चैत मास और दूसरी कार्तिक मास में होती है। इसमें कार्तिक मास की छठ पूजा बहुत प्रसिद्ध है।
पूजा की तिथि
छठ पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि 4 दिनों के इस त्यौहार की शुरुआत चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है। परंतु मुख्य पूजा षष्ठी तिथि को ही की जाती है। इसी वजह से इस त्यौहार का नाम छठ पड़ा है।
इस पर्व में पहले दिन कद्दू और भात का सेवन किया जाता है। दूसरे दिन चाँद को साक्षी रखकर खीर का खरना प्रसाद बनता है। जो इसके आदिवासी मूल को इंगित करता है। तीसरे और चौथे दिन डूबते एवं उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
इस पर्व में जाति- पाति का कोई भेदभाव नहीं है। कोई धार्मिक आडंबर भी नहीं है। भले ही कुछ पुरुष भी इसे करते हैं। लेकिन मुख्य रूप से यह स्त्रियों का व्रत है। शायद ही दुनिया का कोई ऐसा व्रत हो जिसमें सब कुछ स्त्रियाँ ही करती है।
पर्व का महत्व
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है। सनातन धर्म, संस्कृति, सहयोग व समावेश का महापर्व है। सूर्य की पूजा से लेकर नदियों तालाबों की साफ-सफाई, घाटों का निर्माण,मौसमी फलों व सब्जियों का उपयोग जहाँ प्रकृति की महत्ता को बयाँ करते हैं। वहीं सड़क पर फैले कचरे के ढेर का निपटान, साफ-सुथरे रास्ते, घर में शुद्ध वातावरण, सहयोग व समर्पण का संयुक्त मेल दर्शाता है। यह पर्व लोक गीतों के बिना अधूरा सा लगता है। इसलिए महिलाएँ सामूहिक रूप में छठ के गीत गाती है। जिससे वातावरण संगीतमय हो जाता है।
पौराणिक कथाएँ
पहली कथा
छठ पूजा के शुरुआत को लेकर बहुत सारी मान्यताएँ भी प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम सूर्यवंशी कुल के थे। उनके कुल देवता सूर्य थे। रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जब वह सीता को लेकर अयोध्या लौट रहे थे, तो सरयू नदी के तट पर उन्होंने अपने कुलदेवता सूर्य देव की पूजा की थी। वह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि ही थी। सूर्य देव की पूजा करते देखकर वहाँ की प्रजा ने इस दिन पूजा करना प्रारंभ कर दिया। जो कि आज तक छठ के रूप में जारी है।
दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार महाभारत काल में जब महाराज पांडु अपनी धर्म पत्नी कुंती और माद्री के साथ वन में दिन व्यतीत कर रहे थे। तब पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कुंती ने सरस्वती नदी के तट पर सूर्य देव की पूजा की थी। उसके बाद ही कुंती के गर्भ से कर्ण पैदा हुए थे। इसी कारण से आज भी लोग संतान पाने की इच्छा से छठ महापर्व करते हैं।
तीसरी कथा
एक कथा यह भी है कि जब पांडव पुत्र राज पाट हारने के बाद वन में भटक रहे थे, तो द्रौपदी और कुंती ने एक साथ मिलकर परिवार की सुख और समृद्धि के लिए छठ पर्व को किया था। कर्ण भी सूर्य के उपासक थे। ऐसा माना जाता है कि कर्ण प्रतिदिन नदी में एक पैर पर खड़े होकर सूर्योपासना करते थे
छठ पर्व का प्रसाद
लौकी, गागर नींबू ,मूली ,केला, खीरा ,गन्ना, नारियल, पानीफल सिंघाड़ा,कच्चा अदरक,कच्चा हल्दी,अनानास, शकरकंद आदि छठ में प्रयोग किए जाने वाले औषधीय गुण युक्त फल और सब्जियां हैं। जिनसे सूप और दउरा को सजाया जाता है। इसके अतिरिक्त ठेकुआ और खीर आदि का भी प्रसाद के रूप में प्रयोग होता है।
छठ महापर्व का प्रसाद औषधीय गुणों का खजाना है। आयुर्वेदिक महत्व से यह ऋतु का संधिकाल है। जिस कारण से इस मौसम में बहुत सारी बीमारियाँ भी होती है। छठ व्रत के दौरान पवित्रता से शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा प्राप्त होती है और बीमारियाँ दूर भागती है। छठ व्रत का उपवास पाचन तंत्र के लिए बहुत लाभदायक है। इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है। वहीं प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले फलों व सब्जियों से स्वास्थ्य को भी लाभ प्राप्त होता है।
( छठ महापर्व पर निबंध :-hindi essay on chhath mahaparv)