ईद पर हिंदी निबंध
भूमिका
मुस्लिम भाइयों के लिए यह त्यौहार बहुत आनंददायक, खुशी और उल्लास से भरा होता है। यह त्यौहार भी अन्य त्यौहारों की भाँति इस्लाम धर्मानुयायियों के लिए परोपकार और भाईचारे का संदेश वाहक होता है। यह त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ईद से पूर्व का महीना रमजान का महीना कहलाता है। यह त्यौहार रमजान के महीने के समाप्त होने पर दूज का चाँद देखकर मनाया जाता है। (eid-ul-fitr par nibandh)
रमजान महीने का महत्त्व
यह महीना मुस्लिम भाइयों के लिए विशेष अहमियत का होता है। उनके धर्म ग्रंथ के अनुसार यह महीना पाक तथा रहमतों से भरा माना जाता है। इस्लाम धर्म के अनुसार इस माह जन्नत के सारे दरवाजे खोल दिए जाते हैं और नरक के सारे द्वार बंद कर दिए जाते हैं। पूरे माह रोजा रखने वाले के सारे गुनाह खुदा माफ कर देता है। यह महीना दुआओं, नेकियों और भलाइयों का महीना कहलाता है। मुस्लिम भाइयों को विश्वास है कि खुदा इस माह अपने बंदों को नाउम्मीद नहीं करता और उनकी सभी इच्छाओं को पूरा कर देता है। रमजान के पूरे महीने रोजा रखना प्रत्येक मुसलमान का फर्ज है। रोजा एक प्रकार का व्रत है और इस व्रत के दौरान यथासंभव सभी प्रकार के तृष्णाओं एवं वासनाओं से अपने को दूर रखा जाता है।
रोजा का महत्त्व
रमजान के पूरे महीने में मुस्लिम भाई पूरा दिन रोजा (उपवास) रखते है। रोजा के दौरान जल भी ग्रहण नहीं करते है। अपना पूरा वक्त खुदा की इबादत में ही गुजार देते हैं। ईद के पाक दिन ही उनका खाना पीना आंरभ होता है। ईद- उल-फितर के दिन घर-घर में तरह-तरह की मीठी सेवइयाँ पकती है और घर-घर में बाँटी जाती है। इसलिए लोग इसे मीठी ईद के नाम से भी जानते हैं। इस ईद के 2 महीने 9 दिन के बाद चाँद की 10 तारीख को एक और ईद मनाई जाती है, इसे बकरीद या ईद-उल-जुहा कहते हैं। इस दिन बकरे काटे जाते हैं और उनका माँस अपने इष्ट मित्रों में बाँटा जाता है।
eid-ul-fitr par nibandh
ईद का नमाज़
ईद के दिन सभी मुस्लिम भाई सूर्योदय के बाद ईद का नमाज पढ़ने मस्जिद जाते हैं, जहाँ खुदा को शुक्रिया अदा करते हैं और खुदा से कहते हैं कि आपकी दुआ से हम रमजान का रोजा रखने में सफल हो सके। अगर इन रमजान के दिनों में हम बन्दों से जाने-अनजाने कुछ भी गुनाह हो गया हो, तो हमें माफ कर दें। ईद के इस पाक मौके पर सभी मुसलमान भाई गरीबों को कुछ दान भी करते हैं, ताकि उनके गरीब मुस्लिम भाई भी ईद का त्यौहार खुशी पूर्वक मना सकें। इस दिन बड़ी-बड़ी मस्जिदों में ईदगाह पर अपार भीड़ रहती है। नमाज पढ़ने के बाद सब मुस्लिम भाई एक-दूसरे से ईद मुबारक कह कर गले मिलते हैं। अन्य धर्मावलंबियों के लोग भी मुस्लिम भाईयों से गले मिलकर ईद मुबारक कहते हैं।
शुरुआत
खुशी और भाईचारे के इस त्यौहार की शुरुआत सर्वप्रथम अरब में हुई। तुजके जहाँगीरी में लिखा गया है कि इस त्यौहार के दिन जो जोश, खुशी, उमंग और उत्साह भारतीय मुसलमानों में देखने को मिलती है, वह कंधार, बुखारा, खुरासान और बगदाद जैसे शहरों में भी नहीं दिखाई पड़ती है। जबकि ये स्थान इस्लाम धर्म के मूल स्थान माने जाते हैं। ईद के दिन हर अमीर-गरीब मुसलमान नए-नए कपड़े पहनते हैं और खूब मनोरंजन करते हैं।
निष्कर्ष
यह त्यौहार सामाजिक वर्ग भेद को भुलाकर आपस में भाईचारा स्थापित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। आज इस्लाम के अनुयायियों का कर्तव्य है कि अपने मसीहा के उपदेशों को स्वीकार कर संकीर्णता की भावना से उठकर सबको गले से लगाते हुए एकता और बंधुत्व को स्थापित करें।