Essay on Independence Day
प्रस्तावना
15 अगस्त 1947 को भारत लगभग 12 सौ वर्षो की गुलामी से मुक्त हुआ और भारतीयों ने स्वतंत्रता की साँस ली। स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को हम देश की स्वतंत्रता का जन्म दिवस भी कह सकते हैं। यह दिन भारत और भारतीयों के लिए सौभाग्य का दिन है। इसलिए हमारे राष्ट्रीय पर्वों में स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त का विशेष महत्व है। मोहम्मद गोरी और महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के साथ भारत की दासता की त्रासदी प्रारंभ होकर 1947 तक की अंग्रेजों की दासता तक का बहुत लंबा काल भारतीयों को पीड़ा और संताप के साथ-साथ जिल्लत और अपमान के साथ व्यतीत करना पड़ा। भारत पूर्ण रूप से हिंदू राज्य रहा है। मुगलों और दूसरे मुस्लिम आक्रांताओं के भारत पर आक्रमण, अधिकार और शासन के साथ जो गुलामी का सिलसिला प्रारंभ हुआ। वह लगभग 1700 तक चलता रहा।
जहाँगीर या शाहजहाँ के शासनकाल में अंग्रेज व्यापार करने भारत में आए और औरंगजेब के बाद लगभग संपूर्ण भारत पर फूट डालो का सिद्धांत अपनाकर अधिकार कर लिया और भारत मुगलों के पंजे से छूटकर अंग्रेजों के पंजे में फँस गया। अंग्रेजों ने भी भारत पर लगभग 2 शताब्दी तक अबाध राज्य किया। भारत को लूटा, भारत की संस्कृति और सभ्यता को रौंदा। किंतु अब भारतीय गुलामी की पीड़ा का एहसास करने लगे थे। अब वे स्वतंत्र होकर साँस लेना चाहते थे। स्वतंत्र होकर जीना और मरना चाहते थे।
स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध पहले आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे थे। जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध केवल आवाज ही नहीं उठाई, वरन हथियार भी उठाए और देश के लिए अपना बलिदान दिया। अब स्वतंत्रता के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बज चुका था। किन्तु कुशल नेतृत्व के अभाव में यह संघर्ष काफी दिनों तक चलता रहा। इसके बाद अवतरण हुआ महात्मा गाँधी का। (Essay on Independence Day)
देेशभक्तों की भूमिका
इस देश की आजादी के लिए बार-बार देशभक्तों ने अपने प्राणों की बाजी लगाने में तनिक देर नहीं की। किंतु एक सशक्त शासन में मुट्ठी भर लोगों द्वारा हथियार उठा लेने से स्वतंत्रता की प्राप्ति संभव नहीं थी। इसमें एक नरमपंथी नेता की भी आवश्यकता थी,जो गरम दल के सेनानियों के कारनामों को नैतिकता का अमली जामा पहना सके और इसका पूर्ण श्रेय महात्मा गाँधी जी को ही मिलता है। गाँधी जी ने अपने अहिंसा और शांति के अमोघ अस्त्र से अंग्रेजों को हरा दिया और उन्हें बता दिया कि ये प्राण हथेली पर लेकर मरने-मारने पर उतारू लोग आतंकवादी या राष्ट्र द्रोही नहीं है बल्कि स्वतंत्रता सेनानी है। उन्होंने अपने शांतिपूर्ण संदेश में अंग्रेजों को दृढ़ता पूर्वक समझा दिया कि अब उनकी भलाई भारत छोड़ने में ही है।
गाँधीजी ने गरम और नरम दल के सहयोग से अंग्रेजों को भारत भूमि छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने बिना रक्तपात के ही पूरे भारत में स्वतंत्रता के विरुद्ध क्रांति खड़ी कर दी। गाँधी जी के नेतृत्व में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरीखे ऐश्वर्य संपन्न व्यक्ति भी इस क्रांति में कूद पड़े। सुभाष चंद्र बोस ने कहा था– तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। इस प्रकार जनता भी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आतुर हो उठी। गाँधी जी के द्वारा चलाए गए आंदोलनों से लोगों ने अंग्रेज सरकार का बहिष्कार कर दिया। उन्होंने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी, जेल गए और मृत्यु को हँसते-हँसते गले लगा लिया।
गुलामी से मुक्ति
अंततः 1947 में अंग्रेज भारत से विदा हो गए और भारत को गुलामी से मुक्ति मिली। किंतु वे भारत से जाते-जाते भी अपनी कूटनीति के चलते भारत से श्रीलंका और वर्मा को अलग कर उन्हें स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित किया। बंगाल को भी वे दो भागों में विभाजित करने की कोशिश की। पर जनमत विरोध के कारण बंगाल को दो भागों में बांटने में उन्हें सफलता नहीं मिली। अथक परिश्रम, घोर तपस्या और असंख्य बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को लाल किले के शीर्ष पर तिरंगा झंडा लहराया गया। (Essay on Independence Day)
उत्सव की तैयारी
प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में यह राष्ट्रीय पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन राजमार्गों को खूब सजाया जाता है। लाल किले के विशाल मैदान में बाल-वृद्ध नर-नारी एकत्रित होते हैं। देश के बड़े-बड़े नेता व राजनयिक अपने-अपने स्थानों पर विराजमान रहते हैं। प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। राष्ट्रीय ध्वज को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश के नाम अपना संदेश देते हैं। यह भाषण पूरे देश में रेडियो और दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किया जाता है। जयहिंद के नारे के साथ यह स्वतंत्रता दिवस समारोह समाप्त होता है।
संसद भवन और राष्ट्रपति भवन को अच्छी तरह सजाया जाता है। रात्रि के समय वहां पर अच्छी रोशनी होती है। इस शुभ अवसर पर दुकानों और राजमार्गों की शोभा बहुत बढ़ जाती है। विद्यालय के छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं। कहीं-कहीं इन बाल सभाओं में मिष्टान्न भी वितरण किया जाता है। इस दिन भारत के सभी सरकारी , गैर सरकारी संस्थानों में अवकाश रहता है। प्रत्येक भारतीय बड़ी प्रसन्नता के साथ इस ऐतिहासिक दिन को मनाता है। इस दिन पूरे देश में देश प्रेम की हवा प्रवाहित होती है।
उपसंहार
यह हमारा सौभाग्य है कि वर्षों की साधना के पश्चात हम आजाद भारत में साँस ले रहे हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इस राष्ट्रीय पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनायें और देश की समृद्धि एवं स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहें। इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व के शुभ अवसर पर हमें अपने राष्ट्र के प्रति हार्दिक श्रद्धा भावनाओं को प्रकट करते हुए उनके सिद्धांतों और नीतियों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेकर राष्ट्र निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इससे हमारे राष्ट्र की स्वाधीनता निरंतर शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनी रहेगी।