पोंगल त्यौहार पर निबंध | pongal tyohar par nibandh

pongal tyohar par nibandh

भूमिका

भारत पर्वों और त्योहारों का देश है। इस देश में लगभग हर महीने कोई न कोई त्यौहार या पर्व आयोजित होते रहते हैं। प्रत्येक त्यौहार के पीछे कोई न कोई विशेष कारण होता है और वह कारण यहाँ के लोगों के लिए एक नया संदेश, नई स्फूर्ति, नई ताजकी, नई चेतना का संदेश लेकर आता है। लोगों जो त्यौहार के मनाने में एक स्वस्थ मनोरंजन भी मिलता है। सामाजिक एकता और समरसता स्थापित होती है। ये पर्व और त्यौहार लोगों में नयी आस्था, नया विश्वास उत्पन्न करते हैं। इन्हें त्योहारों में एक त्यौहार पोंगल भी है। यह त्यौहार यद्यपि दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में मनाया जाने वाला त्यौहार है किंतु सही अर्थों में यह हमारे देश की सही तस्वीर पेश करता है। इस प्रकार पोंगल कृषि पर आधारित एक प्रमुख त्यौहार है।

Pongal par nibandh

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किसानों के प्रसन्नता का पर्व

तमिलनाडु का मौसम उत्तर भारत के मौसम से बहुत भिन्न है। यहाँ सर्दियों में बारिश होती है। इसलिए यहाँ धान की फसल सर्दियों में तैयार होती है। भारतवर्ष में पौराणिक मतानुसार वर्षा इंद्रदेव के अधीन है। इसलिए पोंगल में इंद्र की ही पूजा की जाती है। यह पर्व प्रायः जनवरी के महीने में पड़ता है। इस क्षेत्र में धान की फसल दिसंबर के अंत में या जनवरी महीने के प्रारंभ तक तैयार हो जाती है और इसकी कटाई होती है। फसल के तैयार होने से किसान बहुत प्रसन्न होते हैं। फसल का एक सत्र का समापन के कारण उन्हें अपनी प्रसन्नता का इजहार करने का पर्याप्त अवसर रहता है। इसलिए इसी जनवरी माह में तमिलनाडु मैं पोंगल का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार का उत्सव वहाँ के लोग कई चरणों में मनाते हैं। इन दिनों यहाँ काफी उत्साह और उल्लास का वातावरण होता है।

पर्व की शुरुआत के पहले दिन भोंगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने अपने घरों में नए चावल का दलिया पकाते हैं। उस दिन लोग इंद्र को आभार व्यक्त करने के लिए उनके सम्मान में उनकी पूजा-अर्चना कर सगे-संबंधियों को भोजन कराते हैं क्योंकि उन्हीं की कृपा से धान की फसल तैयार हुई है। यदि इंद्र न प्रसन्न होते तो वर्षा के अभाव में धान की पैदावार न होती। इस प्रकार पर्व का प्रथम दिन इंद्र को कृतज्ञता ज्ञापन प्रकाश का होता है। इसी दिन नया चावल प्रसाद के रूप में ल वितरित किया जाता है और नया चावल खाना शुभ माना जाता है। अतः चावल के अनेक स्वादिष्ट पकवान बनाकर प्रसाद के रूप में अपने पास-पड़ोस और सगे-संबंधियों में बाँटते हैं।

सूर्य देव की अर्चना

पर्व के दूसरे दिन लोग सूर्य देव का पूजन करते हैं। लोगों में यह विश्वास है कि धान की फसल उगाने से लेकर पकाने तक में सूर्य देवता का विशेष योगदान होता है। इसलिए इस दिन पकाए गए नए चावल के पकवान का सूर्य देव को भोग लगता है। इस दिन महिलाएँ सूर्य देव की अनेक आकृतियाँ बनाती है तथा उनका पूजन करती है। पर्व के तीसरे दिन के उत्सव को मत्तू पोंगल कहा जाता है। इस दिन वहाँ गाय की पूजा करने की परंपरा है।

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कृषि कार्य में गाय के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। गाय के द्वारा खेती करने के लिए बैल, उपज बढ़ाने के लिए गोबर की खाद प्राप्त होती है। इसलिए लोग उस दिन गाय को खूब नहलाते हैं, फिर उनके माथे को सिंदूर से रंगा जाता है तथा गले में फूलों के हार पहनाए जाते हैं। उस दिन गाय को तरह-तरह के पकवान बनाकर खिलाए जाते हैं। उस दिन रात में लोग तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं और अपने इष्ट मित्रों को आमंत्रित करते और खिलाते पिलाते हैं और आमोद-प्रमोद मनाते हैं। इस पर्व की विशेषता यह है कि इस पर्व के दिन यह त्यौहार आयोजित कर एक साथ ही देवता और पशु दोनों की आराधना की जाती है। कृषि के क्षेत्र में दोनों के महत्व को स्वीकार किया जाता है।

उपसंहार

दक्षिण भारत में पोंगल काफी धूमधाम से मनाया जाता है। जिस प्रकार उत्तर भारत में मकर संक्रांति के पर्व की महत्ता है, उससे भी बढ़कर पोंगल का उत्सव तमिलनाडु में मनाया जाता है। इस पर्व में त्याग और भक्ति का अनोखा संगम दिखाई देता है। कृषि के क्षेत्र में पशुओं की महत्ता और उनसे प्रेम भी सराहनीय है। नई फसल की पैदावार को लेकर यह मनाया जाने वाला पर्व लोगों के मन में नई शक्ति का संचार कर देता है। इस पर्व में प्रेम, सौहार्द्र, आदर्श की एक स्वस्थ परंपरा के दर्शन होते हैं।

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