ताजमहल पर निबंध | tajmahal par nibandh

Tajmahal par hindi mein nibandh

भूमिका

अभी पूरी छुट्टियाँ समाप्त नहीं हुई थी, लगभग 15 दिन शेष थे, वर्षा प्रारंभ हो चुकी थी। कई दिनों से बादल आसमान पर घिरे हुए थे, कभी कोई छोटी बदली बरस जाती और कभी तीव्र वायु के झोंके सभी बादलों को उड़ा ले जाते परंतु आज सुबह से ही रिमझिम शुरू हो गई थी। मन चाह रहा था कि कहीं घूम आऊँ पर प्रश्न यह था कि जाया कहाँ जाए,क्योंकि छुट्टियाँ भी समाप्त हो रही थी। फिर कौन जाता है और कौन जाने देता है। पढ़ने-लिखने से ही अवकाश नहीं मिलता। यदि कभी जाने का विचार भी किया जाए तो उपस्थिति कम होने का भय लगा रहता है। इसलिए कहीं जाने पर भी मजा नहीं आता। दोपहरी होने वाली थी।

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लगभग 11:00 बजे होंगे, नीचे से एक साथ आवाज आई। मैं एकदम से नीचे आया। मालूम हुआ कि एक आवाज तो खाने के लिए माँ ने दी थी और दूसरी दरवाजे पर खड़े पोस्टमैन ने। माँ ने कहा– खाना खाओ। बाहर जाकर पोस्टमैन से चिट्ठी ली। पढ़ा तो मालूम हुआ कि मेरे एक पुराने साथी का पत्र है, जो हाईस्कूल पास करने के बाद आगरे में एक दफ्तर में क्लर्क हो गया। यद्यपि वह पढ़ने में कमजोर था, परंतु मेरा घनिष्ट मित्र था। पत्र में लिखा था कि मेरा विवाह तारीख 23 मई को है। बारात आगरे से आगरे में ही जाएगी। चाहे तुम एक दिन को आओ पर आना अवश्य। बस, माँ से आज्ञा लेने के बाद मैं विवाह में जाने की तैयारियाँ करने में लग गया।

आगरे के लिए प्रस्थान

छुट्टियाँ थी ही, घर पर भी कोई विशेष काम नहीं था। इसलिए निश्चित तिथि से 1 दिन पूर्व ही आगरे को रवाना हो गया और मित्र को तार दे दिया कि मैं आ रहा हूँ। तार इसलिए दिया था कि मैंने उसका घर नहीं देखा था। टूण्डला से जब गाड़ी आगे बढ़ने लगी, तो आगरा देखने की इच्छा होने लगी। आगरा का इतना आकर्षण नहीं था, जितना कि ताजमहल देखकर अपने नेत्रों को तृप्त करने का। अभी आगरा 5-7 मील दूर ही था कि ताजमहल की दुग्ध-धवल, गगनचुंबी मीनारें दिखाई पड़ने लगी। डिब्बे के सारे यात्री ‘ताज-ताज’ कहकर खिड़कियों से सिर निकालकर झाँकने लगे।

ताजमहल का दृश्य

स्टेशन पर मित्र मिला। मुझे देखकर वह गदगद हो गया। हम लोग घर पहुँचे। दूसरे दिन पूर्णमासी थी। दो-तीन रिश्तेदारों को साथ लेकर मैं संध्या के समय प्रेम की अमर समाधि ताज को देखने के लिए गया। मार्ग में शाहजहाँ और मुमताज के विषय में अनेक भावनाएं उठने लगी। कठोर भाग्य के सम्मुख सुकोमल मानव हृदय की विवशता पर विचार कर ह्रदय हताश हो उठा। अब तो ताज की लाल पत्थर की ऊँची-ऊँची चारदीवारी भी दिखाई पड़ने लगी थी। साहस हम उस विशाल द्वार पर जाकर रुके जो ताजमहल का प्रवेश द्वार है। (tajmahal par nibandh)

द्वार में घुसते ही सुंदर-सुंदर फुव्वारे और मनोहर उद्यान दिखाई पड़ने लगे। हरे-भरे वृक्षों का कलात्मक श्रृंगार देखकर हम लोग मुक्त हो गए। इस स्वर्गीय उद्यान के सामने ही एक वर्ग चौड़े चबूतरे पर ताजमहल का भव्य प्रासाद स्थित है,जो युगों से अपने अमर प्रेम की कहानी कहता हुआ आज भी नहीं थकता। मुगल साम्राज्य के आहत यौवन के उस अमर स्मारक ताज के चारों ओर चार गगनचुंबी मीनारें हैं, मानो वे आज भी अनिमेष दृष्टि से आकाश की ओर देखती हुई अपने मालिक-मालकिन से पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हों।

ताज के पश्चिमी प्रांत में कल-कल करती यमुना नदी प्रवाहित होती है। पूर्णमासी का चाँद आकाश में मुस्कुरा रहा था। चाँदनी में ताज की शोभा कई गुना अधिक हो जाती है। यहाँ के निर्मल जल में ताज का प्रतिबिंब पड़ रहा था। कुछ क्षणों के लिए हम लोग वहीं चबूतरे पर बैठ गए और मंत्र-मुग्ध होकर उस अनुपम सौंदर्य को देखने लगे। कितनी शांति और सुख था उस मूक सौंदर्य में। मुगलकालीन वैभव की वर्षा करता हुआ वह ताज सहसा ही अपने दर्शनार्थी यात्रियों का मन अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

आंतरिक भाग का दृश्य

ताज के आंतरिक भाग का दृश्य देखकर मनुष्य एक क्षण के लिए संसार की क्षणभंगुरता के विषय में सोचने लगता है। काल न बड़ों को छोड़ता है और न छोटों को। सबसे नीचे वाले भाग में प्रेमी और प्रेयसी पास-पास लेटे हुए हैं। उनके ऊपर यद्यपि कब्र का आवरण पड़ा हुआ है, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है मानो उनमें से शहंशाह शाहजहाँ और उनकी चिर प्रियतमा मुमताज अभी उठकर विहार करने वाले हैं। भग्न मानव- प्रेम की उस समाधि पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है।

श्वेत संगमरमर पर नाना प्रकार की पच्चीकारियाँ हो रही है। बेल-बूटे बने हुए हैं। इस कब्र के कक्ष में ऊपर भी एक ऐसा ही कक्ष है, जो सौंदर्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुना जाता है कि इनके चारों ओर पहले सुनहरी जालियाँ लगी हुई थी परंतु औरंगजेब ने धन के लोभ में आकर उन्हें निकलवा लिया और उनके चारों ओर संगमरमर की जालियाँ लगवा दी। मीनारों की ऊंचाई कितनी है इसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता,परंतु इतना अवश्य है कि उन पर चढ़कर नीचे को देखने से आदमी चिड़िया जैसा दिखाई पड़ता है। सुना जाता है कि जीवन से निराश, संघर्षों से थके हुए व्यक्ति इन पर चढ़ जाते हैं और नीचे कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। इसलिए अब इनके द्वार कभी-कभी ही खोले जाते हैं। प्रायः बंद ही रहते हैं।

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रचनाकाल

शाहजहाँ ने अपने राज्यकाल में मुमताज बेगम के स्मृति के रूप में इसका निर्माण कराया था। ताज शाहजहाँ की भावभरी भावनाओं का साकार रूप है। राजकीय कोष का समस्त धन इसके ऊपर न्यौछावर कर दिया गया। विश्व के समस्त अंचलों से कुशल कारीगर इसके निर्माण के लिए बुलाए गए थे। 30000 मजदूरों द्वारा वर्षों अनवरत परिश्रम का फल ताज आज दर्शकों के नेत्रों को मुग्ध ही नहीं करता अपितु कठोर से कठोर हृदय के मुख से संवेदना के रूप में दो शब्द भी सुन लेता है। इतिहास के पृष्ठ बताते हैं कि इसमें तीस लाख रुपए खर्च हुए थे।

वर्तमान में ताजमहल का स्थान

ताजमहल विश्व के आठ आश्चर्यों में से एक होते हुए भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है। संसार में और भी बहुत से स्मारक है परंतु ताजमहल अद्वितीय है। देश-विदेश के अनेक दर्शनार्थी यहाँ आते हैं और इस अनुपम स्मारक की भूरि-भूरि प्रशंसा करके लौटते हैं। 1960 में अमेरिका के तत्कालीन प्रेसीडेंट आइजनहाइर और उनके कुछ दिनों के बाद रूस के प्रेसीडेंट वोरोशीलोव दिल्ली आए थे। तुरंत वे अपने-अपने देशों से अपने साथ आज देखने की इच्छा लाए थे, फिर वे कैसे दिल्ली में रहते। उन्होंने ताजमहल देखा और भूरि-भूरि सराहना की। इसी भाँति प्रतिवर्ष असंख्य विदेशी इसके दर्शन करके सुख एवं शांति का अनुभव करते हैं। विशेष रूप से शरद पूर्णिमा पर असंख्य जन समुदाय एकत्रित होता है। कुछ लोग सारी सारी रात यहाँ मनोविनोद करते हैं और कुछ आधी रात गए चले जाते हैं। (tajmahal par nibandh)

उपसंहार

‘क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति तदेवरूपं रमणीयताया:’

श्रेष्ठ सौंदर्य वही है जो क्षण-क्षण नवीन सा प्रतीत हो। आज कई सौ वर्ष हो गये, ताज अपने अनंत सौंदर्य से आज भी युवा प्रतीत हो रहा है, न उस पर जरा का प्रभाव है और न आँधी-तूफान का। सुर्य की उत्तप्त किरणें, न उसके श्वेत शरीर को श्यामल कर सकी और न उसकी त्वचा में झुर्रियाँ ही डाल सकीं। विश्व को पावन प्रेम का अमर संदेश देता हुआ, स्नेह की अमरता को अपने हृदय की गहराइयों में छिपाये हुए मानव जीवन की क्षण-भंगुरता पर मानो अट्टहास कर रहा हो। चंद्रदेव जब निशा की कोमल पलकों को खोल कर अपनी चाँदनी से धोने लगते हैं, तब ताज की मधुर मुस्कान संसार और समाज के प्रहारों से दुखी और बिछुड़े हुए प्रेमियों को धैर्य और संतोष का पाठ पढ़ाती है।

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