आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पर निबंध | Mahaveer Prasad Dwivedi

Mahaveer Prasad Dwivedi par nibandh

भूमिका

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार एवं पत्रकार हुए, जिन्होंने हिन्दी कविता को रीतिकालीन प्रवृत्तियों से पूर्णतः मुक्त कर उसे आधुनिक कालीन प्रवृत्तियों से जोड़ने का दिया जाता है । उन्होंने कविता को जड़ता से प्रगति और रूढ़िवादिता से स्वच्छन्दता की ओर उन्मुख किया । ‘ सरस्वती ‘ पत्रिका के सम्पादक के रूप में द्विवेदी जी ने हिन्दी साहित्य जगत को अनेक रूपों में प्रभावित किया ।

Mahaveer Prasad Dwivedi par nibandh

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जीवन परिचय

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 ई. में उत्तरप्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता पं॰ रामसहाय दुबे एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में एक सैनिक थे। बाद में नौकरी छोड़कर वे एक मंदिर में पुजारी का काम किए। द्विवेदी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत से अपने घर से ही आरंभ किया और हिंदी एवं उर्दू से दौलतपुर गांव के विद्यालय से प्राप्त की। 13 वर्ष की उम्र में द्विवेदी को रायबरेली के जिला स्कूल में भेज दिया गया। यहां रहकर द्विवेदी जी 1 वर्ष तक फारसी तथा अंग्रेजी का अध्ययन किया।किन्तु गरीबी के कारण इनकी शिक्षा निरंतर आगे नहीं बढ़ पाई।

अपनी गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने रेलवे विभाग में नौकरी कर ली। अपने से उच्च अधिकारियों के बीच अच्छा मेल-मिलाप न होने तथा अपने स्वाभिमानी प्रवत्ति के कारण 1904 में रेल विभाग की 200 रुपये मासिक वेतन की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । 200 रूपये मासिक की नौकरी को त्यागकर मात्र 20 रूपये महीने पर सरस्वती के सम्पादक के रूप में कार्य करना उनके त्याग का परिचायक है। संपादन-कार्य से अवकाश प्राप्त कर द्विवेदी जी अपने गाँव चले आए। अत्यधिक बीमार होने के कारण 21 दिसम्बर 1938 ई. को रायबरेली में इनका देहांत हो गया।

सरस्वती पत्रिका का कार्यभार

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘ सरस्वती ‘ पत्रिका का सम्पादन कार्य सन् 1903 ई . में संभाला था तथा वे 1920 ई . तक अनवरत रूप में इससे जुड़े रहे । कुल 17 वर्षों तक लगातार इन्होंने इसका संपादन कार्य किया। इस दीर्घकालावधि में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए । एक ओर तो उन्होंने हिन्दी गद्य का संस्कार , परिष्कार एवं परिमार्जन किया तो दूसरी ओर लेखकों को उनकी कमियों से अवगत कराया तथा भाषा की व्याकरणिक भूलों को सुधार कर भाषा परिष्कार किया ।

वाक्य गठन में भी वे शुद्धता के पक्षपाती रहे तथा लेखकों को वाक्य गठन के दोषों से अवगत कराते हुए उनके परिमार्जन का प्रयास किया । द्विवेदी जी ने ‘ कवि कर्तव्य ‘ जैसे निबन्ध लिखकर कवियों को भाषा , शैली , छन्द योजना , विषय वस्तु सम्बन्धी अनेक निर्देश दिए , जिसने हिन्दी कविता की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया । हिन्दी गद्य में विराम चिह्नों का सूत्रपात भी द्विवेदी जी के प्रयासों से ही हुआ ।

योगदान

द्विवेदी जी का सबसे बड़ा योगदान है खड़ी बोली हिन्दी को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करना। उन्होंने ब्रज भाषा में लिखी जाने वाली हिंदी कविता को प्रोत्साहन नहीं दिया और इस बात पर बल दिया कि गद्य एवं पद्य की भाषा एक होनी चाहिए।

Mahaveer Prasad Dwivedi par nibandh

प्रमुख रचनाएँ

देवी स्तुति-शतक (1892)
कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898)
समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898)
नागरी (1900)
कान्यकुब्ज – अबला – विलाप (1907)
काव्य मंजूषा (1903)
सुमन (1923)
द्विवेदी काव्य – माला (1940)
कविता कलाप (1909)

द्विवेदी युग के प्रवर्तक

सन् 1900 से लेकर 1920 तक का हिन्दी साहित्य आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से इतना प्रभावित है कि इस कालखण्ड को द्विवेदी युग की संज्ञा प्रदान की गई है । निश्चय ही द्विवेदी जी युग प्रवर्तक साहित्यकार थे । कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने उनके निर्देशन में ही काव्य रचना प्रारम्भ की थी । द्विवेदी जी के प्रति गुरुभाव रखने वाले गुप्त जी ने साकेत की भूमिका में कहा है:–

करते तुलसीदास भी कैसे मानस नाद ।
महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद ।।

यहां ‘ महावीर ‘ पद श्लिष्ट है । तुलसी ने यदि महावीर हनुमान जी की कृपा से रामचरितमानस की रचना की तो मैथिलीशरण गुप्त ने महावीरप्रसाद द्विवेदी की कृपा से ‘ साकेत ‘ की रचना की ।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से अनेक हिंदी कवि सामने आए जो उन्हीं के आदर्शों को लेकर आगे बढ़े। इनमें प्रमुख हैं:– मैथिलीशरण गुप्त, गया प्रसाद सनेही, लोचन प्रसाद पांडेय, गोपालशरण सिंह आदि। इनके अतिरिक्त इस काल के अन्य महत्वपूर्ण कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ , राय देवीप्रसाद पूर्ण , रामनरेश त्रिपाठी , रामचरित उपाध्याय आदि हुए।

आदर्शवाद एवं नैतिकता

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी काव्य में आदर्श एवं नैतिकता के प्रबल पक्षधर थे । उन्होंने निराला द्वारा रचित ‘ जुही की कली ‘ नामक कविता को सरस्वती में प्रकाशित करने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि इसमें अश्लीलता है । स्वामी दयानन्द के आर्य समाज से प्रेरित एवं प्रभावित होकर द्विवेदी जी ने ब्रह्मचर्य , नैतिकता , आदर्शवाद , कर्तव्यपरायणता , आत्मगौरव को काव्य में बढ़ावा दिया । प्रेम और शृंगार की वैसी उक्तियां जो रीतिकाल में दिखाई देती हैं , द्विवेदीयुगीन कविता में रंचमात्र भी नहीं हैं । रीतिकाल में राधा कृष्ण शृंगार के आलम्बन हैं जबकि द्विवेदी युग में आकर उनका स्वरूप ही बदल गया । प्रियप्रवास की ‘ राधा ‘ लोक सेविका एवं समाज से सरोकार रखने वाली आदर्श नारी दिखाई पड़ती है।

उपसंहार

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी साहित्य में बहुमूल्य योगदान रहा। वे एक सफल कवि , गद्य लेखक और संपादक के रूप अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।

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