मेरा गाँव पर निबंध | Mera Gaon per nibandh

Mera Gaon per nibandh

भूमिका

मानव – सृष्टि के आदि आश्रय – स्थल और पालक – गाँव , जो वास्तव में आज भी उसका पालन कर रहे हैं । परन्तु आज गाँव का नाम सुनकर ही शहरों की चकाचौंध और बनावटी वातावरण में पलने वाले लोग अकसर नाक – भौं सिकोड़ लिया करते हैं । वे यह भूल जाते हैं कि अपने मुख्य सांस्कृतिक परिवेश में विश्व के अन्य सभी देशों – महानगरों के समान भारत वास्तव में आज भी गाँवों का ही देश है । इसकी सभी प्रकार की स्थितियों की रीढ़ आज भी गाँव ही हैं । इस दृष्टि से वास्तव में मेरा गाँव आदर्श है ।

Mera Gaon per nibandh

मेरा गाँव थोड़े – से घरों की एक छोटी – सी बस्ती है । मिट्टी के घर , खपरैलों की छतें , आँगन में बँधे हुए दो – दो जोड़ी बैल , दो – एक गाय – भैंस जैसे दुधारू पशु , चार – छ : मुर्गे – मुर्गियाँ और सामने लहलहाते हुए खेत – यही है मेरा वह संसार जिसमें मैंने पलकें खोली ! मेरे सुनहले बचपन का मनोरम क्रीड़ा – स्थल भी बस इतना – सा ही है ।

Mera Gaon per nibandh

गाँवों का महत्व

प्रत्येक गाँव का अपना व्यक्तित्व और महत्त्व रहा करता है । गाँव में चक्की के मधुर गीत से ही सवेरा आरम्भ होता है । वहाँ उषा की लालिमा अपने हाथों में सोने का थाल लिए नित्य नये दिन की आरती उतारती है । वृक्षों और लता – कुंजों पर बैठे चहचहाते हुए पक्षी प्रभात – बेला का स्वागत करते हैं और सूर्य की पहली किरण के साथ उठकर गाँव का किसान खेत की ओर चल पड़ता है । जब हल कंधे पर रखकर अपने सखा – समान बैलों को हाँकता हुआ वह जाता है , तो बैलों के गले में बँधी हुई घंटियों से सारा वातावरण संगीतमय हो उठता है । ऐसा है सुन्दर , सपने – सा सलोना मेरा गाँव !

इन ग्रामों में धरती के वे लाल बसते हैं , जो खेतों की मिट्टी और नहरों के पानी में सनकर हिम्मत से काम करते और हरियाली का आह्वान करते हैं । जहाँ – जहाँ उनके शरीर का पसीना गिरता है , वहाँ – वहाँ चाँदी जैसे चमकीले और मोतियों जैसे पोटे गेहूँ के दाने उगते हैं , जो भूखे पेट की भूख शांत करते हैं , जवानों की नसों में नया रक्त बनते हैं और हमारे देश के उन बुद्धिमानों के मस्तिष्क में नयी सूझ व नयी प्रेरणा बनकर उन नीतियों का निर्धारण करते हैं , जो राष्ट्र की समस्याएँ सुलझाती और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सम्मान पाती हैं । इस प्रकार हर बात का मूल बीज गाँवों की उर्वरा भूमि में ही छिपकर अंकुरित हुआ करता है ।

गाँवों का विकास

हमारे गाँव के पिछाड़ी अभी – अभी एक नहर आ पहुँची है । नहर नहीं उसे जीवन की धारा कहिए , क्योंकि जहाँ – जहाँ भी वह पहुँची है , सूखे खेतों में नया जीवन लहलहा उठा है । बंजर भूमि भी सोना उगलने लगी है । स्वयं उन्नत होकर मेरा गाँव देश की उन्नति में भी अपनी भागीदारी निभाने लगा है । जिस दिन मेरे गाँव में बिजली का पहला खम्भा लगा था , उस दिन गाँव वालों ने दीवाली मनायी थी । आज घर – घर बिजली के प्रकाश से जगमगा उठा है । बिजली के कुएँ , बिजली की चक्कियाँ और बिजली की मशीनें । बिजली के सहारे चलने वाले कई कुटीर उद्योग गाँव का कायाकल्प करने के लिए दिन – रात एक कर रहे हैं । बेरोज़गारों को वर्ष भर रोज़गार मिलने लगा है ।

Mera Gaon per nibandh

गाँव के नवयुवक

वे कौन लोग आ रहे हैं – चौड़ी छाती , ऊँचा मस्तक और बलिष्ठ शरीर ? ये मेरे गाँव के नवयुवक हैं । इन्हीं के कंधों पर राष्ट्र निर्माण का भारी उत्तरदायित्व है । ये ही कल – कारखानों में काम करके औद्योगिक उत्पादन करते हैं । ये ही सेना में भरती होकर राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करते हैं । मेरे गाँव में यह जितनी हरियाली , जितनी ज़िन्दगी और जितनी जवानी दिखायी देती है , वह इन्हीं की मज़बूत देह और मज़बूत इरादों की देन है । तनिक उधर देखिए । वह है गाँव का आने वाला कल ! विद्यालय को जाते ये बालक – बालिका – वृन्द ही तो गाँव और राष्ट्र के भविष्य हैं । इनके कारण ही सारे गाँव में खेल – कूद , नृत्य – गान और उत्सवों की सदा धूम मची रहने लगी है । शिक्षा के प्रकाश से नया सवेरा गाँव के घरों में आ रहा है।

गाँव की लक्ष्मी

यहाँ की महिलाएँ पहले दूर – दराज के पनघट से पानी भरकर लाया करती थीं । आज बिजली ने पानी समीप ही सुलभ कर दिया है । गाँव की ये गृहलक्ष्मियाँ हैं । इन्हीं की बदौलत हमारा गाँव सुख , शान्ति और समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है । ये युवतियाँ घरों में स्नेह और दुलार का संचार करती हैं और घर से बाहर अपने पति , पुत्र और भाई के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खेतों और बगीचों में खाद्य पदार्थों , साग – भाजी तथा फलों का उत्पादन करती हैं । परिणामस्वरूप आज यहाँ सभी कुछ सुलभ होने लगा है ।

उपसंहार

जब हम घर – द्वार से दूर किसी नगर में , या वहाँ से भी दूर परदेश में होते हैं तो भी अपना गाँव स्वप्न बनकर हमारे हृदय में समाया रहता है । रह – रहकर उसका स्मरण तन – मन में उत्तेजना भरता रहता है । मेरे लिए मेरी मातृभूमि का यही विचित्र आँचल है , यही मेरा स्वर्ग है। मैं अपने गाँव को प्यार करता हूँ और मेरा गाँव मुझे प्यार करता है । मेरा गाँव मेरे सारे देश का प्रतीक बने, सारा देश मेरे गाँव के समान ही लहलहा उठे, यही मेरी कामना और प्रयत्न है । हम सबको इसी ढंग से सोचना-समझना चाहिए ।

Post a Comment

Previous Post Next Post