मुंशी प्रेमचंद पर निबंध | Munshi Premchand par nibandh

Munshi Premchand par nibandh

भूमिका

मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे । उन्होंने हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया , जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया । यही कारण है कि हिंदी साहित्य जगत ने प्रेमचंद को कालजयी कथाकार का दर्जा दिया । उनकी कहानी और नाटक व निबंधों ने समाज में हो रही घटनाओं का जीवंत उदाहरण पेश किया गया है । उन्होंने न केवल समाज को अपनी कहानियों के माध्यम से आईना दिखाने का काम किया , बल्कि लोगों को जागरूक करने की भी कोशिश की । उनकी लेखनी को आज की युवा पीढ़ी भी याद करती है । युवाओं के बीच प्रेमचंद आज भी अमर हैं , क्योंकि स्कूल के पाठ्यक्रम से लेकर विश्वविद्यालय के सिलेबस तक में प्रेमचंद को अहम स्थान दिया गया है ।

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जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था । उनका परिवार कायस्थ जाति से संबंध रखता था । प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय था । वे एक डाक मुंशी का कार्य करते थे । उनके माताजी का नाम आनंदी देवी था । प्रेमचंद का मूल नाम श्री धनपत राय श्रीवास्तव था ।

इनकी आरंभिक शिक्षा फारसी भाषा में हुई । 1898 ई. में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर एक विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया । इस तरह वे नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई भी करने लगे । 1910 ई. में इन्होंने इंटर और 1919 में बी.ए. की परीक्षा पास किए । बाद में वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए ।

15 वर्ष की उम्र में प्रेमचंद का प्रथम विवाह हुआ । जो अधिक दिनों तक नहीं चल सका । फिर इनका दूसरा विवाह 1906 में शिवरानी देवी से हुआ जो एक बाल-विधवा थीं । प्रेमचंद के तीन संताने हुए श्रीपत राय , अमृतराय और कमला । इनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 ई. को हुई।

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मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास

प्रेमचंद ने सही अर्थों में हिन्दी उपन्यास शिल्प का विकास किया । उनके उपन्यासों में पहली बार सामान्य जनता की समस्याओं की कलात्मक अभिव्यक्ति की गयी थी और जनजीवन का प्रामाणिक एवं वास्तविक चित्र पाठकों को देखना सुलभ हुआ था । अपने महान उपन्यासों के कारण वे वास्तव में ‘ उपन्यास सम्राट ‘ की पदवी पाने के अधिकारी सिद्ध हुए । “

प्रेमचंद के उपन्यास राष्ट्रीय आंदोलन , कृषक समस्या , मानवतावाद , भारतीय संस्कृति , शोषण , विधवा विवाह , अनमेल विवाह , दहेज प्रथा , आदि विविध विषयों से सम्बन्धित हैं । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने प्रेमचंद का मूल्यांकन करते हुए लिखा है , ” प्रेमचंद शताब्दियों से पददलित , अपमानित और उपेक्षित कृषकों की आवाज थे । यदि आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार – विचार , भाषा – भाव , रहन – सहन , खान-पान , दुःख – सुख और सूझ – बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचंद से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता ।”

मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों में हैं –
सेवासदन ( 1918 ई . )
प्रेमाश्रम ( 1922 ई . )
रंगभूमि ( 1925 ई . )
कायाकल्प ( 1926 ई . )
निर्मला ( 1927 ई . )
गबन ( 1931 ई . )
कर्मभूमि ( 1933 ई . )
गोदान ( 1935 ई . )
मंगलसूत्र (अपूर्ण )

उपन्यासों की विशेषता

प्रेमचंद ने हिन्दी कथा साहित्य को ‘ मनोरंजन ‘ के स्तर से ऊपर उठाकर जीवन के साथ जोड़ने का काम किया । वस्तुतः ‘ सेवासदन ‘ के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी उपन्यास को नई दिशा प्राप्त हो गयी । इस उपन्यास में उन्होंने विवाह से जुड़ी समस्याओं – दहेज प्रथा , कुलीनता का प्रश्न , पत्नी का स्थान आदि को उठाया है किन्तु इन्हें प्रस्तुत करने का ढंग पूर्ववर्ती उपन्यासों से एकदम अलग है । ‘ निर्मला ‘ में उन्होंने दहेज प्रथा और अनमेल विवाह की समस्या को प्रस्तुत किया है । कृषक जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण उन्होंने ‘ प्रेमाश्रम ‘ और ‘ गोदान ‘ में किया है ।

गोदान उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कहा जाता है । ग्रामीण जीवन का ऐसा यथार्थ एवं प्रामाणिक चित्रण इस उपन्यास में हुआ है कि इसे सर्वत्र सराहना प्राप्त हुई है । समाज में व्याप्त छुआछूत एवं साम्प्रदायिकता की समस्या को भी उन्होंने अपने उपन्यासों में अभिव्यक्ति दी है । इस प्रकार प्रेमचंद के उपन्यास जीवन के विविध पहलुओं से जुड़े हुए हैं । वे हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार माने जाते हैं । विषयवस्तु एवं शिल्प दोनों ही दृष्टियों से प्रेमचंद के समकक्ष हिन्दी का कोई अन्य उपन्यासकार खड़ा नहीं किया जा सकता ।

प्रेमचंद के उपन्यासों में विषय की विविधता एवं व्यापकता के साथ – साथ चरित्रों का स्वाभाविक विकास दिखाया गया है । उनके उपन्यासों में राजनीतिक समस्याओं का निरूपण भी किया गया है । रंगभूमि ‘ में शासक वर्ग के अत्याचारों का चित्रण है तो ‘ कर्मभूमि ‘ में स्वतंत्रता संग्राम की एक झलक है । गबन ‘ में उन्होंने स्त्रियों के आभूषण प्रेम के दुष्परिणामों का चित्रण किया है तो कायाकल्प ‘ ‘ पुनर्जन्म ‘ से सम्बन्धित है । प्रेमचंद के उपन्यासों की एक प्रमुख विशेषता है — आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद , जिसके कारण वे पाठकों में अति लोकप्रिय हुए हैं । भाषा प्रयोग में वे अपने समकालीन सभी उपन्यासकारों से श्रेष्ठ हैं और इस दृष्टि से वे एक मानदण्ड बन गये हैं । अपनी इन विशेषताओं के कारण ही वे हिन्दी उपन्यास में एक नये युग का सूत्रपात कर सकने में सफल हुए हैं ।

प्रेमचन्द की कहानी कला

प्रेमचन्द हिन्दी के युग प्रवर्तक कहानीकार माने जाते हैं । पहले वे ‘ नवाबराय ‘ के नाम से उर्दू में लिखते थे । उर्दू में लिखा हुआ उनका कहानी संग्रह ‘ सोजे वतन ‘ 1907 ई . में प्रकाशित हुआ था । स्वातन्त्र्य भावना से ओत – प्रोत होने के कारण इस कहानी संकलन को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था । कालान्तर में वे हिन्दी में ‘ प्रेमचन्द ‘ नाम से लिखने लगे और उनका यह नाम कथा साहित्य में अमर हो गया । उनकी पहली हिन्दी कहानी ‘ पंच परमेश्वर ‘ सन् 1916 ई . में और अन्तिम ‘ कफन ‘ 1936 ई . में प्रकाशित हुई । अतः इस काल को प्रेमचन्द युग कहना समीचीन प्रतीत होता है । मुंशी प्रेमचन्द ने अपने जीवन काल में लगभग 300 कहानियों की रचना की , जो ‘ मान सरोवर ‘ के आठ खण्डों में संकलित हैं ।

उनकी कहानियों में विषय – वैविध्य दिखाई पड़ता है । किसी अन्य कथाकार ने जीवन के इतने व्यापक फलक को अपनी कहानियों में नहीं समेटा , जितना प्रेमचन्द ने । उनकी कहानियाँ अपने परिवेश से , अपने आस – पास के जीवन से जुड़ी हुई हैं । उनकी अधिकांश कहानियों का विषय ग्रामीण जीवन से लिया गया है , किन्तु कई कहानियाँ कस्बे की जिन्दगी या स्कूल – कॉलेज से भी जुड़ी हुई हैं । उनकी कहानियों के पात्र हर वर्ग , धर्म , जाति के हैं । कोई हिन्दू हो या मुसलमान , कोई किसान हो या कोई विद्यार्थी । अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने विविध प्रकार की समस्याओं को भी उजागर किया है — जमींदारों के द्वारा किसानों के शोषण की समस्या , सूदखोरों के शोषण से पिसते ग्रामीणों की समस्या , छुआछूत की समस्या , रूढ़ि एवं अन्धविश्वास , संयुक्त परिवार की समस्या भ्रष्टाचार एवं व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं , आदि ।

प्रमुख कहानियाँ

प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में पंच परमेश्वर , बूढ़ी काकी , दो बैलों की कथा , परीक्षा , बड़े भाई साहब , आपबीती , सवा सेर गेहूँ , आत्माराम , सुजान भगत , माता का हृदय , कजाकी , शतरंज के खिलाड़ी , बड़े भाई साहब , नशा , ठाकुर का कुआँ , ईदगाह , लाटरी , पूस की रात और कफन ‘ के नाम लिए जा सकते हैं ।

उपसंहार

प्रेमचंद हिंदी साहित्य में अपने कहानियों और उपन्यासों के कारण प्रमुख स्थान रखते हैं । इसलिए इन्हें कथा सम्राट भी कहा जाता है । अतः कहानियों के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद ने जो बहुमूल्य योगदान दिया है। वह कदापि भूलने योग्य नहीं है।

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