सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय पर निबंध | aayega par nibandh

sachidanand hiranand vatsyayan agyeya

भूमिका

हिन्दी साहित्य में प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक के रूप में अज्ञेय का महत्वपूर्ण स्थान है।
वे एक साथ कथाकार, ललित-निबन्धकार, अध्यापक और संपादक के रूप में जाने जाते हैं। तार सप्तक के प्रकाशन से उन्होंने जिस प्रयोगवादी काव्यधारा का श्रीगणेश किया, आगे चलकर उसी का विकास ‘ नई कविता ‘ के रूप में हुआ ।

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जीवन परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911ई. में उत्तर प्रदेश राज्य के कुशीनगर जिले के कसिया नामक गाँव में हुआ था। ये एक पंजाबी ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। इनके पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था , जो एक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। उनकी मां व्यंतिदेवी थीं, जो कम पढ़ी-लिखी महिला थी। अज्ञेय अपने माता-पिता के 10 संतानों में से चौथे बच्चे थे।अपने पिता की पेशेवर नियुक्ति के कारण अज्ञेय को भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहना पड़ा। उन्होंने अपना बचपन लखनऊ में बिताया। फिर श्रीनगर और जम्मू ,पटना , नालंदा सहित विभिन्न स्थानों पर रहना पड़ा। इस चंचल जीवन शैली के कारण अज्ञेय विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के संपर्क में रहे। उनके पिता ने उन्हें हिंदी का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें कुछ बुनियादी अंग्रेजी सिखाई। अज्ञेय ने जम्मू में एक पंडित से संस्कृत और मौलवी से फ़ारसी सीखा।

शिक्षा

1925 ई. में अज्ञेय ने पंजाब विश्वविद्यालय से  मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद वे मद्रास चले गए। फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में शामिल हो गए और 1927 में विज्ञान विषय से इंटरमीडिएट किया। उसी वर्ष अज्ञेय ने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया और 1930 में बीएससी की परीक्षा पास किए। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी में एमए के लिए दाखिला लिया, लेकिन बाहर हो गए, और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी  में शामिल हो गए।

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उन्हें भगत सिंह को 1929 में जेल से भागने में मदद करने के प्रयास में शामिल होने के कारण गिरफ्तार किया गया था। तब उन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में सजा सुनाई गई थी। उन्होंने अगले चार साल लाहौर, दिल्ली और अमृतसर की जेल में बिताए। इन जेल दिनों के दौरान, उन्होंने लघु कथाएँ, कविताएँ और अपने उपन्यास शेखर: एक जीवनी का पहला मसौदा लिखना शुरू किया । 

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान , वह भारतीय सेना में शामिल हो गए और एक लड़ाकू अधिकारी के रूप में कोहिमा फ्रंट में भेजे गए।उन्होंने 1946 में सेना छोड़ दी। वे कुछ समय के लिए मेरठ ( उत्तर प्रदेश ) में रहे और स्थानीय साहित्यिक समूहों में सक्रिय रहे। इस अवधि के दौरान, उन्होंने अन्य लेखकों के अंग्रेजी में कई अनुवाद प्रकाशित किए, और उनकी अपनी कविताओं, जेल के दिनों और अन्य कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित किया । 

अज्ञेय ने 1940 में संतोष मलिक से शादी की, और 1945 में उन्हें तलाक दे दिया। उन्होंने 7 जुलाई 1956 को कपिला वात्स्यायन से शादी की । 1969 में वे अलग हो गए। 4 अप्रैल 1987 को 76 साल की उम्र में नई दिल्ली में उनका निधन हो गया। 

तार सप्तक की भूमिका

1943 ई. में प्रथम तार सप्तक के प्रकाशन के साथ प्रयोगवाद का प्रारम्भ हुआ । इस संकलन का प्रकाशन अज्ञेय के सम्पादकत्व में हुआ तथा इसमें जिन सात कवियों की कविताएं संकलित थीं , उनके नाम हैं — गजानन माधव मुक्तिबोध , नेमिचन्द्र जैन , भारतभूषण अग्रवाल , प्रभाकर माचवे , गिरिजाकुमार माथुर , रामविलास शर्मा और अज्ञेय । तार सप्तक की भूमिका में अज्ञेय ने इस नवीन काव्यधारा के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किए तथा इसकी वकालत भी की । यही नहीं अपितु अन्य कवियों ने भी अपने वक्तव्य देकर अपनी काव्य विषयक मान्यताओं को अभिव्यक्त किया ।

वस्तुतः अज्ञेय ने ‘ तार सप्तक ‘ के प्रकाशन से ही अपनी प्रयोगधार्मिता का परिचय दिया था । इसके बाद प्रकाशित होने वाले ‘ दूसरा सप्तक ‘ (1951 ई.) तथा तीसरा सप्तक (1959 ई) भी इसी श्रृंखला में हैं । अज्ञेय की मान्यता है कि तार सप्तक के कवि ” किसी एक स्कूल के नहीं हैं , किसी एक मंजिल पर पहुंचे नहीं हैं अभी राही हैं , राही नहीं राहों के अन्वेषी । उनमें मतैक्य नहीं है , सभी महत्वपूर्ण विषयों पर उनकी राय अलग – अलग है । तथापि काव्य के प्रति एक अन्वेषी दृष्टिकोण उन्हें समानता के सूत्र में बांधता है । ” वस्तुतः यह अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता ही है जिसके कारण वे इन कवियों को ‘ सप्तकों के माध्यम से प्रकाश में लाये ।

प्रमुख रचनाएँ

अज्ञेय के अपने अनेक काव्य – संग्रह हैं , जिनमें प्रमुख हैं – चिन्ता , इत्यलम , भग्नदूत , हरी घास पर क्षणभर ,अरी ओ करूणा प्रभामय , बाबरा अहेरी , इन्द्रधनु रौंदे हुए हैं आंगन के पार बार ।

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अज्ञेय की प्रयोगशीलता

प्रयोगशील नूतन परम्परा के ध्वज वाहक होने के साथ – साथ अज्ञेय अपने पीछे अनेक कवियों की उस जमात को लेकर चलते दिखाई पड़ते हैं जो उन्हीं के समान नवीन विषयों एवं नवीन शिल्प के समर्थक हैं । टी.एस. ईलियट से प्रभावित अज्ञेय सार्च , मूनियर , कमिंग्स एवं एजरा पाउण्ड की प्रवृत्तियों को हिन्दी में लाए । अज्ञेय को नूतन विचारधारा को हिन्दी काव्य में लाने का श्रेय तो दिया जा सकता है , किन्तु यह विचारधारा उनकी अपनी न होकर पाश्चात्य प्रभाव से उत्पन्न है ।

अज्ञेय की काव्य भाषा

अज्ञेय की काव्य भाषा शुद्ध साहित्यिक एवं परिनिष्ठित खड़ी बोली हिंदी है जिसमें विषयानुरूप विविधता है। कहीं संस्कृतनिष्ट तत्सम शब्दावली है, तो कहीं सरल सुबोध तद्भव शब्दावली से युक्त हिंदी है। कहीं-कहीं अज्ञेय पूर्णत: देशज, ग्राम्य एवं बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का प्रयोग भी किए हैं। अज्ञेय की भाषा में उर्दू के शब्द भी उपलब्ध हो जाते हैं। अज्ञेय ने अपने काव्य भाषा में नाद सौंदर्य का समावेश करने के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो पदार्थ की क्रिया एवं ध्वनि को पूर्णत: प्रस्तुत करते हैं। आज्ञा जी की भाषा में लाक्षणिक पदावली का प्रयोग भी प्रचुरता से हुआ है। यह लाक्षणिकता एक ओर तो लोकोक्तिओं एवं मुहावरों के प्रयोग से आई है तो दूसरी ओर सांकेतिक अर्थ की अभिव्यक्ति होने से इसका समावेश हुआ है। अज्ञेय ने प्रतीकों , बिम्बों एवं अलंकारों का प्रयोग करते हुए अपनी भाषा को नई अर्थवत्ता प्रदान की है।

उपसंहार

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि अज्ञेय प्रयोगधर्मी कवि हैं। उन्होंने अपनी रचना शिल्प को निखारने के लिए भाषा में नए-नए प्रयोग किए हैं तथा वे अवसर के उपयुक्त शब्दावली एवं भाषा का प्रयोग करने में अत्यंत पटु थे।

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