मन्नू भंडारी पर निबंध | Biography of mannu bhandari in hindi

mannu bhandari par nibandh

भूमिका

छठवे दशक से हिन्दी जगत को अपने लेखन द्वारा नयी चेतना प्रदान करने वाली मन्नू भंडारी का स्थान हिन्दी जगत में दिपस्तंभ की तरह है । उनका समस्त रचना संसार उपन्यास , कहानी , नाटक इन तीनों विधाओं में ग्रंथित है । मन्नू भंडारी एक संवेदनशील तथा समाज धर्मी लेखिका जनजीवन की समस्याओं की तह तक पहुँचकर उन्हें निरावरण करके पाठकों के सम्मुख रखने का प्रयास करती रही है । दिशा निर्देशन तथा सामाजिक जागरण के प्रयत्न उनके साहित्य की सचेतन उपलब्धि है । स्वयं लेखिका भी मानती है कि साहित्य सामाजिक परिवर्तन का साधन है ।

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व्यक्तित्व

मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल, 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश बचपन राजस्थान के अजमेर में बिताया। उनके पिता का नाम सुखसंपत राय भंडारी था, जो एक स्वतंत्रता सेनानी , समाज सुधारक और प्रसिद्ध लेखक थे। वे अपने पांच भाई-बहनों (दो भाई, तीन बहनों) में सबसे छोटी थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अजमेर में प्राप्त की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और फिर हिंदी भाषा और साहित्य में एम०ए० करने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चली गईं।

अपने प्रशिक्षक शीला अग्रवाल की सहायता से, उन्होंने 1946 ई० में एक हड़ताल आयोजित करने में मदद की। उसके बाद उनके दो सहकर्मियों को सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना से उनके संबंधों के लिए निकाल दिया गया था। उन्होंने कलकत्ता में एक हिंदी प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया, लेकिन फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में हिंदी साहित्य पढ़ाने के लिए दिल्ली चली गईं। हिंदी उपन्यासकार और संपादक राजेंद्र यादव उनके पति हैं।

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लेखन की विशेषता

स्त्री के दृष्टिकोन से उसकी भावनाओं उसके इर्दगिर्द उपस्थित परिस्थितियों को अपना विषय बनाकर लिखनेवाली मन्नूजी ने न केवल स्त्री से जुड़ी समस्याओं का चित्रण किया है , बल्कि समाज में व्याप्त सामाजिक समस्याओं और पारिवारिक समस्याओं का चित्रण भी अपनी कहानी , उपन्यास आदि के द्वारा किया है । 50 से भी ज्यादा कहानियों और उपन्यासों की रचना करनेवाली मन्नू जी ने अंतरद्वंद से उत्पन्न समस्याओं और मध्यमवर्गीय जनजीवन में व्याप्त लोगों की मानसिक तनाव का चित्रण करते हुए उनके दंभ , अहं , स्वार्थ आदि का उद्घाटन किया है ।

हिंदी कथा जगत में मन्नू भंडारी जी की तरह लिखनेवाले रचनाकार जो स्त्री के प्रति केवल सहानुभूती रखने तक अपने विषय को सीमित न करते हुए राजनैतिक समस्याओं , बच्चों की समस्याओं का भी अपने साहित्य में चित्रण करते हैं । उनके लेखन में अनुभूती की उष्मा , अनुभव की उर्जा के साथ रथी बसी हुई है । आधुनिक समाज में हसी खुशी से दिन बिताने वाले परिवार में एक छोटी सी बात के लिए किस प्रकार दरार पड़ती है । उसका हुबहु चित्रण मन्नू भंडारी जी के साहित्य से पता चलता है । त्रिशंकु जैसी कहानी में आधुनिक और परंपरा के बीच फसे मनुष्य का चित्रण तथा संपन्न तथा अत्याधुनिक आधार विचार को महत्व देने वाले पति – पत्नी तथा उनकी किशोरी तनु की संवेदनाओं का वर्णन है। दरार भरने की दरार , तीसरा हिस्सा , रेत की दीवार जैसी कहानीयों में बदलते संबंधों और बदलती संवेदना पर प्रकाश डाला गया है ।

लेखन का उद्देश्य

मन्नू भंडारी जी स्वयं यह मानती है कि उनका साहित्य लिखने का उद्देश्य रचना के माध्यम से पाठकों को उस संवेदना के स्तर पर भागीदार बनाना या जोड़ना रहा है । वे पारदर्शिता को कथा भाषा की अनिवार्यता मानती है । वे मूल्यों को बहुत महत्व देती है । क्योंकि इन सामाजिक मूल्यों से ही जीवन सुचारु कहानियों के अध्ययन से यह बात जाहिर होती है । मूल्यों के पतन से किस प्रकार समस्याएँ उत्पन्न होती है । वे नैतिकता को अत्याधिक महत्व देती है। मूल्यों से समझौता करना उन्हें पसंद नहीं है , उनके साहित्य को पढ़ने के बाद यह समझ आता है ।

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कहानियों की विशेषता

आज जब हिन्दी जगत में स्त्री के लेखन को लेकर नारीवाद और अस्मिता विमर्श का बोलबाला दिखाई देता है । वहीं मन्नू भंडारी की कहानियाँ बिना किसी अतिरिक्त शोरशराबे , जलसे जुलूस की सुलभ नारेबाजी और धीमे स्वर में प्रदर्शित करती है कि , सहज रुप से व्यक्ति संपन्न मूल्य , सजग और उत्तरदायी स्त्री दृष्टि क्या होती है , यद्यपि जरुरी नहीं की कहानी का मुखपात्र कोई स्वी ही हो । उनके कहानियों में एक स्वतंत्र न्यायप्रिय तथा संतुलित दृष्टि का चौमुख रचनात्मक बोध दिखाई देता है । प्रेम दांपत्य और परिवार संबंधी कथानक के जरिए मन्नूजी अपनी बहुमुखी सजगता का परिचय दे देती है ।

अपनी सादगी और अनुभूति की प्रामाणिकता के कारण उनकी कहानियाँ विशेष रुप से प्रशंसा पाती है । स्त्री मन की आकांक्षाएँ , पुरुष मन की ईर्ष्याए , आधुनिकता का संयमित विरोध , मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों के द्वारा ओढी हुई आधुनिकता और जमी हुई रुढियों पर इनकी पैनी निगाह हमेशा बनी रहती है । इन तमाम विशेषताओं से भरी मन्नू भंडारी की कहानियाँ आज के समय में पाठकों के लिए मार्गदर्शन , जीवनयापन के लिए संबल है जो एक साथ हमें संघर्ष करने की ताकत भी देती है , और अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करने की रोशनी भी । हिन्दी कहानी में नया तेवर और नए स्वाद के साथ पाँच दशक पूर्व जब मन्नूजी का पर्दापण हुआ था। उस समय से लेकर आजतक उनकी कहानियाँ पाठकों के लिए प्रेरणादायी रही है ।

प्रमुख रचनाएं

श्रीमती मन्नू भंडारी जी का रचना संसार उनका अपना अनुभव जगत है । उन्होंने जब भी लिखा हिन्दी की कथा यात्रा में एक नया मार्ग ईजाद किया ।
वे जब कहानी जगत में लेखन करने लगी तो उनके लेखन से कहानी का एक नया आयाम खुला मनोवैज्ञानिक स्तर पर जब उनकी कलम ने उलझे हुए मन , आपस में उभरे हुए इगो की टकराहट और संबंधों की बारीक गुत्थियों को सुलझाया तब यही सच है और आपका बंटी जैसी कृतियों ने जन्म लिया । इसके बावजूद जब उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार , बदमाशीयों , बेइमानियों पर अपने कलम – कुठार को घुमाया तब महाभोज जैसी सद्य प्रकाशित कृति ने जन्म लिया।

आपका बंटी , यही सच है, एक प्लैट सैलाब , सुबोधिनी , तीसरा आदमी , महाभोग आदि सर्वाधिक चर्चित कृतियाँ है । ‘यही सच है’ पर 1974 ई० में रजनीगंधा नाम से फिल्म बन चुकी है इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म से 1974 में पुरस्कार भी मिल चुका है । इसके अलावा बासु चटर्जी के स्वामी नाम के फिल्म के लिए 1977 में उन्होंने लेखन किया । 1962 में एक इंच मुस्कान नामक उपन्यास उन्होंने अपने पति और लेखक डॉ० राजेंद्र यादव जी के साथ मिलकर लिखा । यह पढे लिखे आधुनिक लोगो की दुखान्त प्रेम कथा है । मन्नू जी ने बिना दिवारों का घर 1966 शीर्षक से एक नाटक भी लिखा है ।

निष्कर्ष

अर्न्तद्वंद से उत्पनन समस्याए और मध्यमवर्गीय जनजीवन में लोगों का मानसिक तनाव दंभ , अहम , स्वार्थ का चित्रण करनेवाली मन्नू जी के लेखन से नयी कहानी आंदोलन चल पड़ा है । उनकी रचनाओं ने हिन्दी को एक नया दृष्टिकोण दिया। मन्नू भंडारी की कहानियाँ अधिक यथार्थवादी हैं। उसकी भावनाएँ काफी प्रासंगिक हैं।

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