निर्मल वर्मा पर निबंध | hindi biography of nirman verma

Nirmal verma par nibandh

व्यक्तित्व

निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1929 ई० को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था। निर्मल वर्मा के पिता श्री नंद कुमार वर्मा पंजाब के रहने वाले थे। पटियाला से बीए परीक्षा पास करने के बाद नंदकुमारजी को लाहौर के चाइव्स कॉलेज में वार्डन नियुक्त किया गया था। निर्मल वर्मा की मां पुरानी दिल्ली के नीम का कटरा (चांदनी चौक) खत्री परिवार से आती हैं। उस समय भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व था। दिल्ली की गर्मी से बचने के लिए अंग्रेज शासक गर्मियों में शिमला का सहारा लेते थे।

बचपन

बड़े परिवार में जन्म होने के बावजूद निर्मल का बचपन काफी लाड़ प्यार से बीता । निर्मल के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी इसलिए निर्मल को बचपन में कभी अभावों का सामना नहीं करना पड़ा । इनका निधन 25 अक्टूबर 2005 ई० को नई दिल्ली में हुआ।

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शिक्षा

आपके पिता सरकारी दफ्तर में कर्मचारी थे । घर की अवस्था ठीक थी न गरीब , न अमीर , एक औसत मध्यमवर्गीय परिवार में आपका बचपन बीता । अधिकांश भाग पहाड़ों में ही बीता । दिल्ली विश्व विद्यालय के सुप्रसिद्ध कॉलेज सेन्ट स्टीफन्स से इतिहास विषय के साथ एम० ए० किया । वही आपने कुछ वर्ष अध्यापन कार्य किया । मार्क्सवादी विचारधारा से अत्याधिक प्रभावित होने के कारण आप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने परंतु हंगेरी में हुई घटना पर मतभेद होने के कारण आपने त्यागपत्र दे दिया । सन् 1959 में प्राग , चेकोस्लाविया के प्राच्य विद्या संस्थान और चेकोस्लाव लेखक संघ द्वारा निमंत्रण मिलने पर वहाँ सात साल रह कर अनेक चेक उपन्यासों एवं कहानियों का अनुवाद कार्य भी पूरा किया । वे साहित्य के लिए कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए। वे कहते हैं, ”मार्क्सवाद में सभी की समानता, सभी की समानता की बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया।”

पहली कहानी

निर्मल ने अपनी पहली कहानी 14-15 साल की उम्र में लिखी । अपनी कश्मीर यात्रा के अनुभवों के आधार पर लिखी गई। इन दोनों कहानियों का प्रकाशन किसी भी पत्रिका में नहीं हो सका । निर्मल की किसी कहानी का पहली बार प्रकाशन सेंट स्टीफेन्य कॉलेज की पत्रिका में हुआ । सार्वजनिक तौर पर निर्मल वर्मा की पहली कहानी 1953 में प्रकाशित हुई । इस साल हैदराबाद से बद्री विशाल पित्ती द्वारा प्रकाशित ‘ कल्पना ‘ में निर्मल की कहानी ‘ रिश्ते ‘ का प्रकाशन हुआ । 1958 में अमृतराय के संपादन में निकले ‘ हंस ‘ के अर्धवार्षिक संकलन में ‘ परिन्दे ‘ का प्रकाशन हुआ । ‘ परिन्दे ‘ की हिन्दी कथा – जगत में काफी चर्चा हुई ।

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विवाह

निर्मल की मान्यता है कि लेखक की पहचान उसके रचना कर्म से की जानी चाहिए । पाठकों द्वारा लेखक की व्यक्तिगत जिन्दगी में रूचि लेना उचित नहीं है । अपनी जिन्दगी की तरह अपने परिवार के बारे में भी निर्मल नहीं के बराबर बोलते है । स्वयं निर्मल अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी के बारे में अधिक कुछ बताने से कतराते है । इसलिए निर्मल के विवाह व परिवार के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल सकी है । स्वयं द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उनका विवाह 1964 में हुआ । इस विवाह से निर्मल एक लड़की के पिता बने ।

विदेश प्रवास

1951 में दिल्ली विश्व विद्यालय में इतिहास में एम० ए० करने के बाद निर्मल वर्मा दिल्ली के सेंट स्टीफेन्य कॉलेज में इतिहास के व्याख्याता नियुक्त हुए । निर्मल ने कुछ साल कॉलेज में अध्यापन किया । इधर अध्यापन के साथ – साथ निर्मल का लेखन कार्य भी जारी था । धीरे धीरे लेखक के रूप में निर्मल की पहचान बनने लगी ।

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स्वदेश वापसी

1971 में निर्मल यूरोप से भारत लौटे । भारत लौटने पर निर्मल फैलो के रूप में इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवान्स स्टडीज शिमला ‘ से सम्बद्ध हुए । यहाँ आपने दो साल तक ‘ मिथक चेतना ‘ विषय पर शोध कार्य किया । 1977 में निर्मल ‘ इन्टरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम आयोवा ( अमरीका ) में सम्मिलित हुए । 1973 में कुमार साहनी ने निर्मल वर्मा की कहानी ‘ माया दर्पण ‘ पर एक फिल्म का निर्माण किया । इस फिल्म को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का पुरस्कार मिला ।

पुरस्कार व सम्मान

निर्मल वर्मा का लेखन गंभीर चिन्तन व रचनात्मक उत्कृष्टता का परिणाम है । इसी श्रेष्ठता के कारण निर्मल के लेखन का सम्मान हुआ है । निर्मल वर्मा को 1984 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार , 1999 ई० में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 2002 ई० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

कृतित्व

निर्मल वर्मा के द्वारा रचित उनके प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-

यात्रा वर्णन एवं संस्मरण

चीड़ों पर चाँदनी
हर बारिस में

निबंध संग्रह

शब्द और स्मृति
कला का जोखिम
ढलान से उतरते हुए
भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र
दूसरे शब्दों में
शताब्दी के ढलते वर्षों में
आदि,अन्त और आरंभ

कहानी संग्रह

परिन्दे
जलती झाड़ी
पिछली गर्मियों में
बीच बहस में
मेरी प्रिय कहानियाँ
कव्वे और कालापानी
सुखा तथा अन्य कहानियाँ

उपन्यास

वे दिन
लाल टीन की छत
एक चिथड़ा सुख
रात का रिपोर्टर
अन्तिम अरण्य

नाटक : तीन एकांत

डायरी : धुंध से उठती धुन

अनुवाद

कुप्रीन की कहानियाँ
कारेल चापेक की कहानियाँ
इतने बड़े धब्बे ( सात चेक कहानियाँ )
झोंपडेवाले ( रूमनियन कहानियाँ )
हिल स्टेशन ( कहानियाँ )

अनुवाद

रोम्यो जूलियेट और अन्धेरा ( उपन्यास )
बाहर और परे ( उपन्यास )
हर्शीफीड ( उपन्यास )
एमेक की गाथा ( उपन्यास )
जोसेफ श्कवोरेस्की , आर० यू० आर० ( नाटक )
डेज ऑफ लांगिग ( उपन्यास )

निर्मल वर्मा का स्थान

निर्मल वर्मा अपने रचना कर्म में सृजनात्मकता और बौद्धिक अर्न्तयात्राओं तथा उसके रचनागत सरोकारों और उद्देश्यों का , उसकी लेखकीय आस्थाओं और प्रतिबद्धताओं का प्रामाणिक दस्तावेज प्रस्तुत करते चलते हैं । वे उन गिने – चुने भारतीय लेखकों में से एक हैं , जिनका लेखन भारतीय परम्परा के प्रतयाख्यान का पर्याय बन चुका है । चीजों और स्थितियों को खोलने वाली , उनकी चीर फाड करनेवाली पारदर्शीत वृत्ति उनकी रचनाओं को अलग मुकाम पर खड़ा कर देती है । निर्मल वर्मा का साहित्य स्मृति और कल्पना को अनुभवों के बारीक रेशे से बाँधकर ऐसा माया लोक गढ़ता है , जिसमें एक धीर और लम्बी प्रतीक्षा , उदासी और विस्मय , मृत्यु और भय की लगातार उपस्थिति तथा निरन्तर नष्ट हो रहे मनुष्य की मानसिक विश्रान्ति को एक बड़ा अभिप्राय हासिल होता है ।

वर्मा स्वयं प्रतिनिधि रूप में नवशिक्षित युवकों के प्रतीक है । हमारा हर युवा पश्चिमी जीवन , सभ्यता , पश्चिमी भौतिकवाद के चकाचौंध से चुम्बकीय ढंग से यूरोप और अमेरिका की तरफ भागता या आकर्षित होता रहा पर प्रत्यक्ष उन देशों पर पहूँचने पर अतिबौद्धिकता , अति आधुनिकता , संवेदनाशून्य जीवन शैली और अति उन्मुक्तता से वह पहली बार परेशान हुए । यह उस पर पहला सांस्कृतिक रियेक्शन था । निर्मल वर्मा जैसे आधुनिक मेधा सम्पन्न , संवेदनशील लेखक भारतीय और पाश्चात्य चिन्तन से बँधा था। वह काल- समय के साथ अपने काल के ठीक था पर नए पुरानी विचारधाराओं के बीच संघर्ष करता हुआ आधुनिक मानव केवल वेदान्त और शुद्धाद्वैतवाद और मधुर भक्ति में जी नहीं सकता ।

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उपसंहार

निर्मल वर्मा जी ने मुख्यतः अपने निबंध , कहानी , उपन्यास में अध्यात्म मूल्य को सर्वोत्तपरि स्थान दिया है । वे हिन्दी के चिन्तनपरक लेखकों में से एक थे जो भारतीय संस्कृति , सभ्यता और उसकी विरासत से जुड़े हुए थे | हिन्दी के महत्त्वपूर्ण लेखकों में से एक थे जिन्होंने थे हिन्दी लेखन का अंतरराष्ट्रीय स्तर स्थापित किया है ।

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