कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर पर निबंध | biography of Kanhiyalal Mishra

Kanhiyalal Mishra Prabhakar par nibandh

भूमिका

स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति और पत्रकारिता की साधना में जिन साहित्यकारों और गद्य – शैलीकारों का अभ्युदय हुआ है , उनमें प्रभाकर जी का स्थान विशिष्ट है । हिन्दी में लघुकथा , संस्मरण , रेखाचित्र और रिपोर्ताज की अनेक विधाओं का इन्होंने प्रवर्तन और पोषण किया है । ये एक आदर्शवादी पत्रकार रहे हैं । अतः उन्होंने मौद्रिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए पत्रकारिता का उपयोग करने के बजाय इसे उदात्त मानवीय आदर्शों की खोज और प्रचार तक सीमित कर दिया है।

व्यक्तित्व

प्रभाकर जी का जन्म 29 मई 1906 ई० को देवबंद ग्राम सहारनपुर में एक विशिष्ट ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पं० रामदत्त मिश्रा अपनी आजीविका हेतु पूजा-पाठ और पुरोहित का कार्य किया करते थे, लेकिन विचार की महानता और चरित्र की दृढ़ता के मामले में वे सर्वश्रेष्ठ थे। उनकी जीवन शैली सरल और सात्विक थी , पर प्रभाकर जी की माता एक क्रूर और क्रोधी महिला थीं। लेखक ने अपने एक संस्मरण ‘ मेरे पिताजी ‘ में दोनों का परिचय देते हुए लिखा है कि ” वे दूध-मिश्री तो माँ लाल मिर्च । इनकी पढ़ाई बहुत कम हुई । एक पत्र में प्रभाकर जी ने लिखा है- हिन्दी शिक्षा (सच माने) प्रथम किताब के दूसरे पाठ ख ट म ल खटमल , ट म टम टमटम । फिर साधारण संस्कृत । बस हरि ओम । यानी बाप पढ़े न हम । “

Kanhiyalal Mishra Prabhakar par nibandh

प्रभाकर जी ने अपने किशोरावस्था के दौरान राष्ट्रीय लड़ाई में अधिक शामिल होने का फैसला किया, जब व्यक्तित्व निर्माण के लिए स्कूलों का आश्रय महत्वपूर्ण है। जब वे खुर्जा के संस्कृत स्कूल में संस्कृत का अध्ययन कर रहे थे, तो उन्होंने प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता मौलाना आसिफ अली का एक व्याख्यान सुना, जिसने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे परीक्षा छोड़कर चले गए। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। 1930-32 और 1942 ई० तक उन्हें जेल में रखा गया, इस दौरान उन्होंने देश के शीर्ष अधिकारियों के साथ संवाद बनाए रखा। इनके लेख इनके राष्ट्रीय जीवन के मार्मिक संस्मरणों की जीवन्त झाँकियाँ हैं , जिनमें भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के महत्त्वपूर्ण पृष्ठ भी शामिल हैं । जब देश को आजादी मिली तो उन्होंने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता को समर्पित कर दिया। 9 मई 1995 को इस प्रसिद्ध कवि का निधन हो गया।

Kanhiyalal Mishra Prabhakar par nibandh

प्रमुख रचनाएं

प्रभाकर जी के प्रसिद्ध प्रकाशित ग्रन्थ हैं–

रेखाचित्र
नई पीढ़ी के विचार
जिन्दगी मुस्कराई
माटी हो गयी सोना
भूले – बिसरे चेहरे

लघु कथा

आकाश के तारे
धरती के फूल

संस्मरण

दीप जले शंख बजे

ललित निबन्ध

क्षण बोले कण मुस्काए
बाजे पायलिया के घुंघरू

संपादन

इन्होंने ‘ नया जीवन ‘ और ‘ विकास ‘ नामक दो समाचार पत्रों का संपादन किया । इन पत्रों में प्रभाकर जी ने सामाजिक , राजनैतिक और शैक्षिक समस्याओं पर आशावादी और निर्भीक विचारों को प्रस्तुत किया । महके आँगन चहके द्वार इनकी एक विशिष्ट कुछ रचना है ।

साहित्यिक विशेषता

प्रभाकर जी का गद्य इनके जीवन से ढलकर आया है । इनकी रचनाओं में कालगत आत्मपरकता , चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता की प्रमुखता दिखायी देती है । पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है । स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में अनेक सेनानियों का संस्मरण इन्होंने लिखा है । इन्होंने लेखन के अतिरिक्त वैयक्तिक स्नेह और सम्पर्क से भी हिन्दी के अनेक नये लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया था । इनके व्यक्तित्त्व की दृढ़ता , विचारों की सत्यता , अन्याय के प्रति आक्रोश , सहृदयता , उदारता और मानवीय करुणा की झलक इनकी रचनाओं में मिलती है ।

अपने विचारों में ये उदार , राष्ट्रवादी और मानवतावादी हैं । इसलिए उनकी पुस्तकें देशभक्ति और मानवीय निष्ठा के कई उदाहरण प्रदान करती हैं। उन्होंने हिंदी गद्य को नए मुहावरे, कहावतें और सूक्तियाँ दिए हैं। उन्होंने कविता की रचना नहीं की, लेकिन उनका लेखन कवि की कोमलता और करुणा को दर्शाता है। यथार्थ जीवन की दर्दभरी अनुभूतियों से इनके गद्य में भी कविता का सौन्दर्य भर उठा है । इसीलिए इनके शब्द निर्माण में जगह – जगह चमत्कार है , वार्त्तालाप में विदग्धता है और परिस्थिति चित्रण में नाटकीयता है । इनके वाक्य – विन्यास में भी विविधता रहती है । पात्र और परिस्थिति के साथ इन्होंने वाक्य – रचना बदली है ।
हास्य की स्थितियों में छोटे वाक्य, आत्मनिरीक्षण की अवधि में लंबे शब्द, और भावनात्मक वाक्यों का उपयोग व्याकरण की बाधाओं से मुक्त कविता वाक्य बनाने के लिए किया है।

Kanhiyalal Mishra Prabhakar par nibandh

भाषा शैली

प्रभाकर जी की भाषा सामान्यतया तत्सम शब्द प्रधान , शुद्ध और साहित्यिक खड़ी बोली है । इन्होंने उर्दू , अंग्रेजी आदि भाषाओं के साथ देशज शब्दों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया है । सरलता , मार्मिकता , चुटीलापन , व्यंग्य और भावों को व्यक्त करने की क्षमता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं । अपने लेखन में उन्होंने वर्णनात्मक, भावनात्मक और नाटक-शैली का उपयोग किया है।

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