gram Sudhar per nibandh
भूमिका
ज्ञान विज्ञान की प्रगति और विकास के इस युग में आज भी भारतीय सभ्यता संस्कृति को ग्राम प्रधान माना जाता है। आज भी भारत की 80% से अधिक जनता ग्रामों में निवास करती है। इस बात को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अच्छी तरह समझा था। इसी कारण उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में अपने समस्त कार्यक्रमों और आंदोलनों में ग्रामोत्थान का भी नारा दिया था। वह यह भी मानते थे कि अब तक हमारे गाँव पिछड़े रहेंगे , स्वतंत्रता या किसी भी प्रकार की किसी उपलब्धि का कोई अर्थ नहीं होगा।
भारत के गाँव कैसे होने चाहिए , इसके लिए आदर्श रूप में उन्होंने वर्धा से पाँच – छ : मील की दूरी पर ‘ सेवा ग्राम ‘ नाम से एक गाँव भी बसाया था । वहाँ सफाई की उचित व्यवस्था , खेती – बाड़ी के आधुनिक सुधरे हुए ढंग , विद्यालय , अस्पताल , डाक – तार व्यवस्था , डेयरी फॉर्म आदि सभी कुछ स्थापित कर एक उन्नत गाँव का नमूना प्रस्तुत किया था।
सुविधाओं का अभाव
स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने दिन बीत जाने के बाद भी नगरों के समीप बसे कुछ ग्रामों को छोड़कर , दूर – दराज के गाँव आज भी अपनी आदिम सभ्यता के युग में ज्यों – त्यों जी रहे हैं। वहाँ अन्य आधुनिक सुविधाओं की बात तो छोड़िए , पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं। शिक्षा और चिकित्सा का अभाव है। अधिकांश गाँव आज भी ज़मींदारों और चन्द समर्थ लोगों की सामन्ती परम्परा में जी रहे हैं। उन्हें हर प्रकार के भीतरी – बाहरी दबाव झेलने पड़ते है। समर्थों की दया पर रहना पड़ता है। बेगारी और बन्धुआ जैसी स्थिति भोगनी पड़ती है। कहने को ज़मींदारियाँ समाप्त हो चुकी हैं ; पर वहाँ अभी तक व्यवस्था में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया है।
अशिक्षा और अन्धविश्वासों का बोलबाला है । भुखमरी , बेकारी और बेरोज़गारी है। रोटी – रोजी के लिए अधिकांश ग्रामजनों को या तो मौसमी खेती – बाड़ी पर निर्भर रहना पड़ता है , या फिर भूखों मरना पड़ता है। परिणामस्वरूप वे लोग ऋणी होकर बन्धक बन जाते हैं या फिर वहाँ से शहरों की ओर भागते हैं। शहरों में पहुँचकर भी उन्हें नारकीय जीवन ही बिताना पड़ता है। गाँव उजड़ रहे हैं। वहाँ से शहर आने वाले ठीक प्रकार से बस नहीं पाते।
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ग्रामोत्थान का प्रयास
पंजाब , हरियाणा जैसे प्रान्तों के ग्रामों के जीवन में काफी कुछ गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। पर अन्य प्रान्तों के गाँवों की दशा कतई सुधर नहीं पायी । हाँ , अब स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद सरकार ने ग्रामोत्थान की कुछ योजनाएँ बनाकर उन्हें क्रियान्वित करना शुरू किया है। अब सुदूर बसे गाँवों में भी पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है। वहाँ शिक्षा का फैलाव करने , सभी को सुशिक्षित बनाने का प्रयास चल रहा है। ग्राम सेवक – सेविका के रूप में ऐसी टोलियाँ प्रशिक्षित की गयी हैं , जो सुदूर बसे ग्रामों में पहुँच वहाँ बसे निरक्षर पिछड़े लोगों को साक्षर बना सकें। उन्हें उनके कर्तव्यों और अधिकारों का अहसास करा सकें। उनके लिए प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था भी सुलभ कर सकें। उनके लिए ग्राम स्तर पर ही उपलब्ध कृषि आदि रोजगारों को आधुनिक बनाकर रोज़गार के अधिक से अधिक उन्नत साधन प्राप्त करवा सकें।
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आधुनिक सुविधाओं का विस्तार
अब प्रत्येक गाँव को पंजाब – हरियाणा की तरह पक्की सड़कों द्वारा राजपथों या मुख्य रास्तों से भी जोड़ने के नियोजित प्रयत्न चल रहे हैं। सुदूर ग्रामों तक बिजली पहुँचाने का प्रयास भी हो रहा है। कृषि आदि के उन्नत और आधुनिक साधन भी वहाँ पहुँचाये जा रहे हैं। शिक्षा का विस्तार और विकास तो हो ही रहा है , वहाँ इस प्रकार के लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापित करने के लिए भी ग्राम जनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है , जिनकी स्थापना से बेरोजगारों को रोजगार मिल सके , जो लोग फसल पक – कट जाने के बाद निठल्ले बैठ मन – मस्तिष्क के स्तर पर भूतों के डेरे बने , लड़ते – झगड़ते या समय गंवाते रहते हैं , वे भी खालो दिनों में रोजगार करके अपनी दशा सुधार सकें। ऐसा सहकारी समितियों और सहकारी बैंकों के माध्यम से किया जा रहा है।
गाँवों के जो युवक अब पढ़ – लिख गये हैं , वे नौकरियों के पीछे भागने की बजाए अब अपने लघु या कुटीर उद्योग स्थापित करने को अच्छा मानने लगे हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि काफी देर से ही सही , ग्रामोत्थान की ओर अब पर्याप्त ध्यान दिया जाने लगा है। उसके अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं।
नगरों के आस – पास या पन्द्रह – बीस मील के घेरे में बसे गाँवों का तो लगभग शहरीकरण सा हो चुका है। बिजली आदि की सुविधा ने वहाँ की काया ही पलट दी है। सुख – सुविधा के वे सारे साधन आज वहाँ उपलब्ध हैं , जो कई शहरियों के पास भी नहीं। खेद की बात यह है कि शहरी उपलब्धियों के साथ – साथ शहरी चरित्र की अनेकविध बुराइयाँ भी इन नजदीकी ग्रामों में पहुँचने लगी हैं। ग्राम – संस्कृति की आत्मा को जीवित रखने के लिए इन बुराइयों से सावधान रहना परम आवश्यक है।
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सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं
ग्रामोत्थान के लिए सरकार ने जो योजनाएँ हाथ में ले रखी हैं , उनमें काम के बदले अनाज देने की भी एक योजना चालू है। उसके परिणाम के बारे में अच्छे – बुरे दोनों प्रकार के मत – वाद पाये जाते हैं। सुचारु रूप में और ईमानदारी के साथ कार्य करने की स्थिति में योजना निश्चय ही बुरी नहीं। सुदूर पार्वत्य स्थलों – लद्दाख , नेफा , सिक्किम आदि के बर्फानी पठारों या घाटियों में बसे ग्रामों के सुधार और उत्थान के लिए उन इलाकों में रह रही भारतीय सेनाओं ने निश्चय ही महत्त्वपूर्ण और उत्साहवर्द्धक काम किया है। अन्य गाँवों में भी यदि उसी सैनिक – निरपेक्ष मनोवृत्ति से काम हो तो निश्चय ही भारतीय ग्राम व्यवस्था को प्राचीन काल के समान ही उन्नत एवं सुखद बनाया जा सकता है। वे फिर से हमारी संस्कृति के केन्द्रों के रूप में विकास कर सकते हैं।
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निष्कर्ष
आज भी सत्य यही है कि ग्रामों में बसा भारत यदि प्रगति और उन्नति करता है , तभी सारे देश की वास्तविक उन्नति हो सकती है। इस गाँधीवादी चेतना और मान्यता के अनुसार उन्हीं के समान जब हम सभी ग्रामों को सेवा ग्राम – सा आदर्श दे पायेंगे , तभी ग्रामोत्थान का पावन कार्य सिरे चढ़ पाएगा। यदि भ्रष्टाचारी चूहे अपने तरीकों से योजनाओं का धन कुतरते रहे तो सभी कुछ व्यर्थ हो जाएगा। सावधानी और राष्ट्रीय चरित्र का विकास करके ही ऐसा किया जा सकता है।