Nari jeevan haye tumhari Yehi Kahani per nibandh
प्राचीन साहित्य में नारी का स्थान
प्राचीन साहित्य में महिलाओं को देवी माना जाता था और उनकी पूजा की जाती थी। आज की दुनिया में कोई भी घर दुर्गा, पार्वती, संतोषी और अन्य देवी-देवताओं की भक्ति के बिना अधूरा है। कवियों और साहित्यिक आलोचकों द्वारा महिलाओं को निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है। उनके सम्मान में एक संस्कृत श्लोक में वर्णित है:–
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।
यत्रास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तुदाफलाः क्रिया ।।
इस श्लोक की सामान्य अवधारणा यह है कि जब एक महिला का सम्मान किया जाता है, तो वहां देव शक्तियों का वास होता है और जहां महिलाओं का अपमान होता है, वहां कई बाधाएं मौजूद होती हैं। इस नींव पर महिला को एक देवता के रूप में दर्शाया गया था।
कवि श्री जयशंकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में नारी के इस प्रतिष्ठित और पूजनीय रूप को स्वीकार करते हुए लिखा है:–
नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो ,
विश्वास रजत नगपगतल में ।
पीयूष स्रोत – सी बहा करो ,
जीवन के सुन्दर समतल में ।।
इस दृष्टि से नारी प्रिय और महान है। प्राचीन काल में, यह कुलीन प्रकार की महिला अत्यंत शक्तिशाली और भव्य थी। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय महिलाओं जैसे सीता, अनुसुइया, दमयंती, सती सावित्री, और अन्य को विशेष स्थान प्राप्त है। हालाँकि, यह दुख और चिंता का विषय है कि हमारे देश में विदेशी शासकों के आने के बाद से हमारी भारतीय महिलाएँ उत्पीड़ित और हीन भावना से ग्रस्त हुई। भारत में मुस्लिम शासन के दौरान महिलाओं की पहचान का क्षरण होने लगा। यद्यपि भारत में यूनानियों के आगमन के साथ ही भारतीय सभ्यता विकृत हो गई थी।
भक्ति काल में नारी का स्थान
भक्ति काल की मीरा, समकालीन समय की रानी लक्ष्मीबाई और बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी को छोड़कर अधिकांश महिलाएं शोषित और पीड़ित मानी जाती हैं। आज भी वे पुरुष प्रधानता के अधीन हैं। उन्हें अब अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं है। नतीजतन, गरीब और अबला शब्दों का इस्तेमाल महिलाओं के लिए किया जाता है। स्त्री को इन सभी विकट और दयनीय परिस्थितियों में देखकर और उसके प्रति चौकस रहते हुए, इस कवि का वचन सत्य है:-
नारी जीवन , झूले की तरह ,
इस पार कभी , उस पार कभी ।
आँखों में असुवन धार कभी ,
होठों पर मधुर मुस्कान कभी ।।
विदेशी आक्रमणों और अपराधों के कारण, महिलाओं को नियमित आधार पर अपने भय और जुनून के आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे उन्हें सीमा की दीवार के पीछे बंद करना आवश्यक हो गया। इससे बचने के लिए पत्नी के पास पर्दे के अलावा कोई चारा नहीं था। उससे उसके सभी विशेषाधिकार छीन लिए गए और उसे पुरुषों की दासी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया। एक महिला के लिए ‘अर्द्धांगिनी’ शब्द को ‘अभागिनी’ से बदल दिया गया है। इसके नकारात्मक परिणामों में दहेज प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, बेमेल विवाह आदि शामिल हैं। तब से महिलाओं की जांच सिर्फ उनके फायदे के लिए की जाती रही है।
Nari jeevan haye tumhari Yehi Kahani per nibandh
स्वतंत्र भारत में नारी का स्थान
आजादी के बाद से हमारे देश की महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। हमारे देश के समाज सुधारकों और नेताओं ने भारतीय संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर रखने के प्रावधानों को शामिल किया है और कई कानून भी बनाए हैं। महिला मंडलों और महिला संगठनों के गठन के माध्यम से, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महिला पीड़ितों को कई सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया है। महिलाएं आजकल अधिक शिक्षित और समान शक्ति के पदों पर आ रही हैं। इस तथ्य के बावजूद कि महिलाएं अभी भी पुरुषों की दासियों से अधिक हैं, समाज में बुद्धिजीवी और जागरूक प्राणी इतनी कम विकसित अवधि में अपनी उपेक्षित और शोषित अवस्था से महिलाओं की विफलता के बारे में चिंतित हैं।
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महिला को खुद कुछ करनी चाहिए। वह अबला नहीं, सबला है। वह मामूली नहीं है, बल्कि अक्षय ऊर्जा का स्रोत है। अब उसे केवल अपनी ताकत को स्वीकार करने की जरूरत है। परिणामस्वरूप, उसे अनैतिकता, अत्याचार और अन्याय को समाप्त करने के लिए क्रांति की ज्वाला और चिंगारी बनना चाहिए। शिक्षा और सभ्यता की भारी भीड़ के बावजूद महिलाएं आज भी वैसी ही हैं, जैसी सालों पहले थीं। वह अब रसोई में अपने दिन बिताने को मजबूर है। इनमें से कुछ वाक्यांशों को प्रस्तुत करते समय, ऐसा प्रतीत होता है कि कवि को यह टिप्पणी करनी चाहिए कि
कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर ,
सत्यान्वेषण के पथ पर निकलो नारी ।
तुम बहुत दिनों तक बनी दीप कुटिया का ,
अब बनो शान्ति की , ज्वाला की चिंगारी ।।
एक महिला ऐसा कदम उठाकर ही अपना स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित कर सकती है; नहीं तो उसे जीवन भर सताया जाएगा। महिलाओं को वह सम्मान नहीं मिलेगा जिसकी अभी बहुत आवश्यकता है जब तक कि वे उन्नति के स्तर को प्राप्त नहीं करती हैं।