mera padosi par nibandh
भूमिका
हमारे आस-पड़ोस में सबसे पहले अगर कोई साथ देता है, सुख-दुख में सदैव हमारे बीच खड़ा रहता है, तो वह कोई और नहीं हमारा प्रिय पड़ोसी ही होता है। रावण और विदुर दोनों नैतिक दार्शनिक थे। उन्होंने भी यह महसूस किया कि पड़ोसियों को नफरत की बजाय प्यार करना चाहिए। हमारे दैनिक जीवन में, हमारे पड़ोसी वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। जब आपदा आती है, तो हमारे पड़ोसी हमारी सहायता के लिए सबसे पहले आते हैं। सूचना मिलने के बाद ही हमारे परिवार और दोस्त पहुंच पाएंगे। इसलिए हमें हमेशा अपने पड़ोसियों के साथ सम्मान से पेश आना चाहिए। उनकी हर हाल में मदद की जानी चाहिए। जहां तक संभव हो उन्हें कुछ भी ना कहने से बचना चाहिए। उन्हें अपने सभी प्रयासों में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अपने पड़ोसी के सुख-दुःख में ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसे सुख-दुख उसका अपना हो।
सुख दुख के साथी
हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में भी यह लिखा गया है कि ‘अतिथि देवो भवः’ यानी अतिथि हमारे लिए देवता के समान होते हैं। किंतु हमारे जो पड़ोसी होते हैं वह देवता से भी बढ़कर होते हैं। क्योंकि हर समय वह हमारे पास मौजूद होते हैं। इसलिए हमें उनके हर सुख-दुख का ख्याल रखना चाहिए। ताकि वह भी हमारे सुख दुख के साथी बन सके।
mera padosi par nibandh
अच्छे पड़ोसी का कर्तव्य
एक समय की बात है। मैं अपने घर में अपनी दादी जी के साथ बिल्कुल अकेला था। दादी मेरे लिए भोजन तैयार करने रसोईघर में चली गई। तब अचानक उनके कपड़ों में आग लग गई। वह बहुत घबरा गए और मैं बिल्कुल डर से गया। उस समय रात के 11:00 बज रहे थे। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, मैं क्या करूं। तब मैंने अपने पड़ोस के राजेश पांडेय जी को जाकर उठाया, जो सरकारी बिद्युत कर्मचारी थे। उन्होंने तुरंत से अपनी कार से दादीजी को अस्पताल पहुंचाया।
फिर वहां दादीजी का अच्छे से उपचार किया गया। सही समय पर पहुंचने के कारण उनकी जान बच सकी। लौटने के बाद दादीजी ने पांडेय जी का बहुत आभार व्यक्त किया। उस दिन मुझे मालूम हुआ कि एक पड़ोसी का हमारे जीवन में कितना महत्व होता है। यदि समय पर मेरे पड़ोसी मदद न करते , तो ईश्वर ही जाने दादीजी की प्राण रक्षा हो पाती अथवा नहीं ! फिर दादीजी ने समझाया कि जिस तरह से पड़ोसी हमारा ख्याल रखते हैं उसी तरह हमें भी अपने पड़ोसी का ध्यान रखना चाहिए।
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निष्कर्ष
यदि पड़ोसी सुख-दुःख में मित्र बन जाए तो उसे परिवार का सदस्य माना जाता है। फिर भी, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ताली हमेशा दोनों हाथों से बजाई जाती है। अगर हम अपने पड़ोसियों की मदद नहीं करते हैं, तो वे भी हमारे लिए असहनीय हो जाएंगे। हम अपने पड़ोसियों के प्रति दयालु और सहायक होंगे, और तभी वे हमारे बारे में अनुकूल सोचेंगे। पड़ोसियों का मूल्यांकन उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है कि अपने पड़ोसी के प्रति शत्रुता अन्यायपूर्ण है।