कैलाश सत्यार्थी पर निबंध | Kailash satyarthi essay in hindi

Kailash satyarthi par nibandh

भूमिका

भले ही कोई सम्माननीय, पवित्र और मानवीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करता हो, वह भव्यता को चुन सकता है। 10 अक्टूबर 2014 को जब बाल श्रम के खिलाफ आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया, तो यह वाक्य सच हो गया।उन्होंने ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ हेतु अपना जीवन समर्पित कर दिए।

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जीवन परिचय

कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी, 1954 ई० को मध्य प्रदेश के विदिशा नगर में हुआ था। वह बचपन से ही सामाजिक कुरीतियों से लड़ते रहे हैं। उन्होंने 1980 ई० तक विदिशा किले के अंदर एक मामूली हवेली में रहते हुए सामाजिक आंदोलनों में भाग लेते हुए अपनी शिक्षा पूर्ण किया। कैलाश सत्यार्थी विदिशा में गांधी प्रतिमा के पास एक स्वच्छता कार्यकर्ता से भोजन तैयार करवाया था। तभी यह तय हुआ कि गरीबी और संघर्ष में रहते हुए भी यह सामाजिक कार्यकर्ता उपलब्धि के शिखर पर पहुंचेगा। वे उपकरण की कमी के कारण पत्थर पर ही आटा गूंथ लेते थे।

कैलाश सत्यार्थी के पिता राम प्रसाद शर्मा पुलिस विभाग में काम करते थे। माँ का नाम चिरौंजीबाई था, जो एक गृहिणी थीं। चार भाइयों में सबसे बड़े कैलाश सत्यार्थी सबसे छोटे हैं। सबसे बड़े भाई चंद्रभान शर्मा शिक्षा विभाग में डीईओ के पद से सेवानिवृत्त हुए; दूसरा भाई जगमोहन शर्मा माधवगंज में एक व्यापारी; तीसरा भाई नरेंद्र शर्मा, एक शिक्षक; और चौथे भाई कैलाश सत्यार्थी, जिन्होंने सामाजिक कार्य के क्षेत्र में उपलब्धियों की दुनिया बनाई है। जब कैलाश सत्यार्थी सातवीं कक्षा में थे, तब वे भीख मांगने वाले बच्चों को अपने साथ घर लाते थे और उनके कटोरे अपने पास रख लेते थे। फिर उन्हें भोजन खिलाते और भीख मांगने को छोड़कर पढ़ाई करने पर जोर देते।

शिक्षा और विवाह

सम्राट अशोक इंजीनियरिंग कॉलेज ने कैलाश सत्यार्थी को इंजीनियरिंग की डिग्री प्रदान की। उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री और ‘हाई केल्टेज’ इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री के साथ स्नातकोत्तर किया। उन्होंने एक कॉलेज प्रशिक्षक के रूप में भी काम किया। उन्होंने विदिशा में अपनी पढ़ाई पूरी की, लेकिन उन्होंने दिल्ली के करोल बाग में रहने वाले पंडित भारतेन्दुनाथ की बेटी सुमेधा से विवाह किया। सुमेधा ने एक पत्नी के रूप में हमेशा अपने पति को समुदाय में स्वयंसेवा कार्य करने के लिए प्रेरित किया। उनकी बेटी अस्मिता और बेटा भुवन अब बच्चों के अधिकारों की पैरवी करने में उनका साथ दे चुके हैं।

बचपन बचाओ आंदोलन

1980 ई० में उन्होंने “बचपन बचाओ आंदोलन” की नींव रखी। इस पहल से अब तक 83 हजार से ज्यादा मासूम बच्चों की जान बचाई जा चुकी है। इस पहल को शुरू करने से पहले उन्होंने अपना काम भी छोड़ दिया। “बचपन बचाओ आंदोलन” के लिए काम करते समय उनके जीवन में बहुत खतरा था। हालांकि, किसी भी धमकी का उन पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। उन्हें कई मौकों पर घातक हमलों के लिए भी निशाना बनाया गया था। उनके दो साथियों ने भी परम बलिदान दिया। ग्रेट रोमन सर्कस में बारह नेपाली बच्चे बाल मजदूरी कर रहे थे। गोंडा के कर्नलगज में घायल होने के बाद भी वह उन लड़कियों को छुड़ाने में सफल रहे। राजस्थान की पत्थर की खदानों में काम करने के लिए मजबूर बच्चों को रिहा करने का प्रयास करते हुए भी उन्होंने अपना खून बहाया।

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कैलाश सत्यार्थी के कार्य

वे कहते हैं, ‘बाल श्रम केवल एक बीमारी नहीं है, बल्कि कई बीमारियों की नींव है।’ इसकी वजह से कई लोगों की जान चली गई है। गरीबी, अशिक्षा, सरकारी उदासीनता और क्षेत्रीय असंतुलन किसी भी देश में बाल श्रम के मुख्य कारण हैं। भारत की प्रगति के सबसे अप्रिय हिस्से अपहरण, यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी हैं। कैलाश सत्यार्थी ने न केवल बच्चों को मुक्त करने में, बल्कि बाल श्रम को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सख्त कानून बनाने की भी बड़ी इच्छा थी।

कैलाश ने 1998 ई० में ‘एंटी-चाइल्ड लेबर वर्ल्ड टूर’ भी बनाया और उसका नेतृत्व किया, जिसने 103 देशों की यात्रा की। बचपन बचाओ आंदोलन बच्चों को न्यायिक प्रणाली के माध्यम से बचाकर और पुनर्वास प्रदान करके उनकी मदद करता है। यह दोषी पाए जाने वालों को सजा भी देता है। जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते उन्हें इस संस्था के आश्रम में भेजा जाता है।

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बचपन बचाओ आंदोलन का प्रमुख दायित्व

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ अब 15 भारतीय राज्यों के 200 से अधिक जिलों में काम कर रहा है। इसमें लगभग 70000 स्वयंसेवक हैं जो लगातार निर्दोषों के जीवन को आनंद प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं। अनुमानों के अनुसार 2013 ई० में मानव तस्करी के 1199 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 10% मामले ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की गतिविधियों के कारण दर्ज किए गए। इस आंदोलन में कैलाश के दो दोस्त शहीद हो गए थे। वह उन उत्पादों के बारे में जन जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं जो बाल श्रम का उपयोग करते हैं। वह मानवाधिकारों के मामले में बच्चों के अधिकारों के कट्टर समर्थक थे।

उन्होंने कालीन निर्माण, चिमनी निर्माण और पटाखा निर्माण जैसे खतरनाक उद्योगों में बाल श्रम के खिलाफ लंबे समय तक अभियान चलाया है। उनके संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की बदौलत दिल्ली में हजारों बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है। सत्यार्थी, जो यूनेस्को से संबद्ध थे, ने बच्चों के अधिकारों की वकालत की और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उनके लिए शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में मदद के लिए एक आंदोलन भी शुरू किया। सत्यार्थी ने कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं और बच्चों के अधिकारों के लिए एक प्रमुख चेहरा बन गए हैं।

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निष्कर्ष

नतीजतन, कैलाश सत्यार्थी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले भारत भूमि से जुड़े दसवें व्यक्ति बन गए। शांति के विषय में 1902 ई० से अब तक 94 लोगों को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। यह 28 साल बाद एक साथ दो लोगों को और एक साथ तीन लोगों को तीन बार दिया गया। कैलाश सत्यार्थी ने महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलते हुए दुनिया को एक नया संदेश दिया है कि महानता को मानवीय प्रयास से भी चुना जा सकता है। कैलाश सत्यार्थी जैसे लोग हमें यह दिखा कर प्रेरित करते हैं कि जीवन धन, प्रसिद्धि और वैभव से बढ़कर है।

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