भारतीय त्योहार पर निबंध | hindi essay on indian festival

Bhartiya tyohar par nibandh

भूमिका

लगभग सारे संसार में भारत ‘त्योहारों का देश’ नाम से प्रसिद्ध है। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि गहराई से देखने पर हम पाते हैं, वर्ष में जितने दिन होते हैं, भारत में लगभग उतने ही त्योहार हैं। अलग-अलग जातियों, धर्मों, सभ्यता-संस्कृतियों का देश होने के कारण भारत का हर दिन किसी न किसी त्योहार का दिन ही हुआ करता है। फिर यहाँ केवल धर्मों , जातियों आदि के द्वारा मनाये जाने वाले त्योहार ही नहीं हैं, स्त्री-पुरुष, बच्चों के लिए मनाये जाने वाले अलग-अलग त्योहार भी हैं।

स्त्रियों के त्योहारों में पुरुष शामिल नहीं होते, पुरुषों में स्त्रियाँ ! हाँ, बाल – त्योहारों में स्त्री-पुरुष सभी का इस कारण सहयोग आवश्यक रहता है कि वे स्वयं उनकी व्यवस्था नहीं कर सकते। यदि अलग-अलग धर्मों और उनके अन्तर्गत आने वाले कई तरह के समुदायों, जातियों- उपजातियों, वर्णों-उपवर्णों आदि की दृष्टि से देखें, तब भी कहा जा सकता है कि यहाँ सभी के अपने साँझे और अलग-अलग दोनों प्रकार के त्योहार हैं। इस प्रकार सचमुच भारत विविध और भिन्न-भिन्न रंगों वाले त्योहारों का देश है। ध्यान में रखने वाली बात यह भी है कि भारत के प्रायः सभी त्योहार आनन्द और उल्लास के साथ मनाये जाते हैं।

Bhartiya tyohar par nibandh

ऋतु आधारित त्योहार

भारत में विशेष ऋतुओं से सम्बन्ध रखने वाले त्योहारों की भी कमी नहीं है। वसन्त पंचमी , होली , श्रावण- तीज , शरद पूर्णिमा , लोहड़ी , पोंगल , बैसाखी आदि त्योहार किसी-न-किसी रूप में सारे देश में मनाये जाते हैं। सभी जानते हैं कि इनका सम्बन्ध विशेष ऋतुओं से ही है। वसन्त-पंचमी और होली वासन्ती रंग और मस्ती के त्योहार हैं। श्रावण-तीज सावनियाँ मस्ती के प्रतीक झूलों का त्योहार है? शरद पूर्णिमा वर्षा ऋतु के बाद वायुमण्डल और वातावरण की निर्मलता का सन्देश देने वाला त्योहार है।

लोहड़ी और पोंगल शीत ऋतु की भरपूरता में मनाये जाने वाले त्योहार हैं। इन पर जो रेवड़ी, मूँगफली, तिल-गुड़, घी-खिचड़ी आदि खाने की परम्परा है, वह वास्तव में सर्दी से बचाव और स्वास्थ्य-सुधार का उपाय हो है; यद्यपि कुछ धार्मिक-आध्यात्मिक बातें, कथाएँ और परम्पराएँ भी इनके साथ जुड़ गए हैं। बैसाखी गेहूँ की नयी फसल आने और ऋतु-परिवर्तन की सूचना देने वाला त्योहार है जो कि पंजाब-हरियाणा जैसे कृषि-प्रधान प्रान्तों में विशेष सज-धज के साथ, नृत्य-गान की मस्ती के साथ मनाया जाता है। इनके अतिरिक्त भी लोग ऋतुओं से सम्बन्धित स्थानीय स्तर के त्योहार मानते ही रहते हैं। सभी में मेल-मिलाप, आनन्द-मौज की प्रधानता रहा करती है।

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सामाजिक संबंधों के त्योहार

इसी प्रकार भारत में पारिवारिक-सामाजिक सम्बन्धों का महत्त्व बताने वाले कुछ त्योहार भी बड़े चाव, बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं। रक्षाबंधन और भैया दूज यदि भाई-बहन के स्नेहपूर्ण पवित्र रिश्ते को प्रकट करने वाले हैं, तो करवा चौथ आदि पति-पत्नी के पावन सम्बन्धों को महत्त्व देने वाला त्योहार है। हमारे देश के ग्रामीण समाज और लोक जीवन में चाचा, मामा आदि अन्य रिश्तों के लिए शुभ भावों को प्रकट करने वाले गीत तो गाये ही जाते हैं, कई छोटे-मोटे त्योहार भी मनाये जाते हैं। बाकी दशहरा, दिवाली आदि त्योहार पूरा घर-परिवार मिलकर मनाता ही है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारतवर्ष वास्तव में त्योहारों का देश है। यहाँ का मूल निवासी घर-परिवार, धर्म-समाज, संस्कृति आदि से सम्बन्ध रखने वाले छोटे-बड़े जितने भी त्योहार मनाता है, सबके मूल में आनन्द-उल्लास का भाव तो रहता ही है, सभी की सुख-समृद्धि और कल्याण की भावना भी रहती है।

धार्मिक त्योहार

इस देश में कुछ ऐसे त्योहार भी मनाये जाते हैं जिन्हें राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त है। उन्हें सभी जातियों, वर्गों, धर्मो, सम्प्रदायों और संस्कृतियों के लोग एक साथ मिलजुल कर मनाया करते हैं। इस प्रकार के त्योहारों की मुख्य संख्या केवल चार-पाँच ही है। दशहरा, दिवाली, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस इसी प्रकार के त्योहार माने जाते हैं। ईद को भी इस प्रकार का पाँचवाँ त्योहार कहा जा सकता है, क्योंकि यह सारे भारत में मनाया जाता है। मुसलमानों के अतिरिक्त सद्भावना के तौर पर अन्य धर्मो जातियों के लोग भी कम-अधिक संख्या में इसमें सम्मिलित रहा करते हैं।

दशहरा या विजयादशमी का सम्बन्ध भारतीय सभ्यता-संस्कृति का सन्देश उत्तर से दक्षिण, समुद्र पार करके श्रीलंका तक पहुँचने वाले महान भारतीय नायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम की विजय यात्रा के साथ माना जाता है। सो इस दिन कृतज्ञ राष्ट्र अनीति पर नीति, राक्षसी सत्ता पर दैवी सत्ता, असत्य पर सत्य की जीत पर आनन्द-उल्लास प्रकट करता है। दीपावली दीपों का, यानि अँधेरे पर उजाले की विजय का त्योहार है। इसके साथ व्यक्ति, समाज और सारे राष्ट्र की सुख-समृद्धि की भावना से लक्ष्मी पूजन का विधान भी जुड़ा हुआ है।

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राष्ट्रीय त्योहार

स्वतंत्रता दिवस हम सभी देशवासी 15 अगस्त के दिन उस पवित्र और महान दिन की याद में मनाते हैं कि जिस दिन हमने अनेक बर्बादियों और संघर्षों के बाद अपनी खोयी हुई स्वतंत्रता प्राप्त की थी। स्वतंत्र भारत का अपना नया संविधान बना। उसके अनुसार भारत को गणतंत्र घोषित किया गया। यह गणतंत्री-संविधान क्योंकि 26 जनवरी 1950 के दिन लागू हुआ, इस कारण हर वर्ष 26 जनवरी के दिन ‘गणतंत्र-दिवस’ का त्योहार बड़े उत्सव और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इन राष्ट्रीय त्योहारों के अतिरिक्त राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म-दिन, बाल-दिवस के रूप में पं० जवाहर लाल नेहरू का जन्म-दिन, शिक्षक-दिवस के रूप में स्व० राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म-दिन भी लगभग सारे देश में राष्ट्रीय त्योहार के रूप में ही मनाया जाता है।

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निष्कर्ष

ऊपर जिन भारतीय त्योहारों का वर्णन किया गया है, उन सबको मुख्य रूप से तीन भागों में बाँट सकते हैं 1.राष्ट्रीय त्योहार 2.पारिवारिक सामाजिक त्योहार और 3.धार्मिक- सांस्कृतिक त्योहार! इनके अतिरिक्त ऊपर त्योहारों के एक चौथे प्रकार का भी वर्णन किया गया है- ऋतु या मौसम-सम्बन्धी त्यौहार। क्योंकि इस तरह के प्रायः सभी त्योहार धर्म एवं जाति-समाज का अंग बन चुके हैं, इस कारण हम इन्हें अलग श्रेणी में रखना उचित नहीं मानते। इनके अतिरिक्त भी देश के अलग-अलग सम्प्रदाय या वर्गों द्वारा अपने सम्प्रदायों-वर्गों के प्रवर्तक धर्मगुरुओं के जन्म दिनों के रूप में सद्भावनापूर्वक मनाए जाते हैं। उन सभी का भी निश्चय ही अपना-अपना विशेष महत्त्व है। अन्य धर्मो, जातियों और सम्प्रदायों के लोग भी इस प्रकार के त्योहारों को आदर भाव से देखते, मनाने में पूर्ण सहयोग किया करते हैं।

भारत त्योहारों का देश है, ऊपर किये गये वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है। जहाँ तक भारत में मनाये जाने वाले इन तरह-तरह के त्योहारों के उद्देश्य और सन्देश का प्रश्न है, वह बहुत ही अच्छा, उन्नत और उत्साहवर्द्धक है। सारे त्योहार जातीय और मानवीय आनन्द-उल्लास के भावों को प्रकट करने के लिए मनाये जाते हैं। उनका उद्देश्य परस्पर मेल-मिलाप और सद्भावनाओं का विकास भी है। उनका सन्देश है कि हमें अपने जातीय और राष्ट्रीय भाव को हमेशा जगाये रखना है। इसी प्रकार का आनन्द भाव और उत्साह हमेशा बनाये रखना है। जातियों और राष्ट्रों की महानता, जिन्दादिली और स्थिरता उसके उत्सवों-त्योहारों के समय प्रकट होने वाले आनन्द और उत्साहपूर्ण व्यवहारों से ही प्रकट हुआ करती है। हमें उन्हें हमेशा जगाये और बनाये रखना है।

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