e-kachra par nibandh
यदि सरकार और जनता दोनों जागरूक हो जाएँ, तो निश्चय ही भविष्य में ई-कचरे की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा। विकसित देशों को भी ई-कचरे के निपटान में योगदान देना होगा, क्योंकि ई-कचरा उन्हीं देशों में सबसे अधिक होता है। इस समस्या से निपटने के लिए विकसित और विकासशील देशों को मिलकर काम करना होगा।
ई-कचरा एक जटिल मुद्दा है जिसके समाधान के लिए एक व्यापक और वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ई-अपशिष्ट के पर्यावरण और स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों सभी की भूमिका है। हमारे द्वारा उत्पन्न ई-कचरे के प्रति जागरूक होकर और जिम्मेदारी से इसका निपटान करने के लिए कदम उठाकर, हम अधिक टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।
प्रस्तावना
ई-कचरे से तात्पर्य बेकार पड़े उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से हैं, जो अपने मूल उपयोग के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं रह जाते। ई-कचरे को ई-अपशिष्ट भी कहा जाता है। इसमें कंप्यूटर, सेलफोन, टीवी, प्रिंटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे आइटम शामिल हैं। ई-कचरा विश्व स्तर पर एक बढ़ती हुई समस्या है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग लगातार बढ़ रही है और उनका जीवन काल अपेक्षाकृत कम हो जाता है।
काफ़ी मात्रा भारी धातुओं एवं अन्य प्रदूषित पदार्थों के विद्यमान रहने के कारण ई-अपशिष्ट के रूप में बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अन्य व्यर्थ घरेलू उपकरणों की अपेक्षा मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए कहीं अधिक नुकसानदेह होते हैं, क्योंकि इनमें उपयोग आने वाले अधिकतम अवयवों में गलने-सड़ने की विशेषता नहीं पाई जाती और न ही इनमें मिट्टी में घुल-मिल जाने का गुण होता है।
ई-कचरे से हानियाँ
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बहुत-से रासायनिक तत्त्वों व यौगिकों से मिलकर बने होते हैं। ऐसे में यदि इन्हें जलाकर नष्ट किया जाए, तो पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है और यदि इन्हें यूँ ही खुले में छोड़ दिया जाए या मिट्टी में दबा दिया जाए, तो भूमि प्रदूषण तो होता ही है, साथ ही इनके हानिकारक तत्त्व एवं रसायन भोजन एवं वायु के माध्यम से मनुष्य सहित अन्य जीवों के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे भयानक रोगों के फैलने की संभावना को बल मिलता है।
ई-कचरा कई पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सीसा, पारा और कैडमियम जैसी खतरनाक सामग्रियां होती हैं, जिन्हें इन उपकरणों के अनुचित तरीके से निपटाने पर पर्यावरण में छोड़ा जा सकता है। इसके अलावा, ई-कचरा इन उपकरणों के निर्माण और परिवहन के लिए आवश्यक ऊर्जा के साथ-साथ उनके निपटान के दौरान निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में भी योगदान दे सकता है।
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ई-कचरे से बचने के उपाय
भारत में ई-कचरे के निपटान हेतु 16 कंपनियाँ हैं, किंतु इन कंपनियों के द्वारा देश में विद्यमान कुल कचरे के केवल 10% भाग का ही निपटान हो पाता है। ई-कचरे की समस्या को कम करने एवं इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु ग्रीन पी सी की अवधारणा पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। ऐसे उत्पादित कंप्यूटरों में बिजली की खपत कम होगी, साथ ही ये पर्यावरण का उतना नुकसान भी नहीं करेंगे। ग्रीन पी सी के निर्माण घटकों में पर्यावरण हितैषी अविषैले सामानों को ही प्रयोग में लाया जाता है। ऐसे कंप्यूटरों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए, जिनके अवयवों को रिसाइकिल किया जा सके। देश में ई-कचरे को कम करने हेतु कानून बनाने की आवश्यकता है। बेकार हुए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को कंपनियाँ लेने को बाध्य हों, ऐसा कानून बनाया जाना चाहिए, पर इसके लिए सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं की सजगता भी अत्यंत आवश्यक है।
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इन जोखिमों को कम करने के लिए उचित ई-अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक है। ई-कचरे का जिम्मेदारी से निपटान करने के लिए कई विकल्प हैं, जिनमें रीसाइक्लिंग, पुन: उपयोग और उचित निपटान शामिल हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रण मूल्यवान सामग्रियों को पुनर्प्राप्त करने और नए उत्पादों के निर्माण के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है। ई-कचरे का पुन: उपयोग करने से इन उपकरणों के जीवन को बढ़ाने और नए उपकरणों की मांग को कम करने में भी मदद मिल सकती है। उचित निपटान में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि ई-कचरा इस तरह से संभाला जाता है जो खतरनाक सामग्रियों की रिहाई और निपटान के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
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उपसंहार
यदि सरकार और जनता दोनों जागरूक हो जाएँ, तो निश्चय ही भविष्य में ई-कचरे की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा। विकसित देशों को भी ई-कचरे के निपटान में योगदान देना होगा, क्योंकि ई-कचरा उन्हीं देशों में सबसे अधिक होता है। इस समस्या से निपटने के लिए विकसित और विकासशील देशों को मिलकर काम करना होगा।
ई-कचरा एक जटिल मुद्दा है जिसके समाधान के लिए एक व्यापक और वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ई-अपशिष्ट के पर्यावरण और स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों सभी की भूमिका है। हमारे द्वारा उत्पन्न ई-कचरे के प्रति जागरूक होकर और जिम्मेदारी से इसका निपटान करने के लिए कदम उठाकर, हम अधिक टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।