व्यायाम और स्वास्थ्य पर निबंध :-speech on vyayam aur swasthya

प्रस्तावना

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम एक महत्वपूर्ण उपाय है। यदि हम किसी मशीन को लंबे समय तक उपयोग में नहीं लाते हैं तो उसमें जंग लग जाती है। मशीन से काम लेते रहने और उसकी देखभाल करते रहने से वह ठीक हालत में रहती है। यही बात हमारे शरीर के साथ भी है। जो निरंतर व्यायाम से संतुलित रहता है। अच्छा स्वास्थ्य एक वरदान है। अच्छे स्वास्थ्य से ही हम धार्मिक और सांसारिक कर्म करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वस्थ शरीर से ही सुख सुविधाएं प्राप्त की जा सकती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास हो सकता है। जिस व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नहीं उसका मस्तिष्क भला कैसे स्वस्थ रह सकता है। speech on vyayam aur swasthya

स्वस्थ मस्तिष्क के अभाव में व्यक्ति कोई भी सकारात्मक कार्य नहीं कर सकता। व्यक्ति को अपने शरीर को स्वस्थ तथा काम करने योग्य बनाए रखने के लिए व्यायाम आवश्यक है। व्यायाम और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक है। व्यायाम से न केवल मनुष्य का शरीर पुष्ट होता है बल्कि वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है। यदि शरीर रोगी है तो उस में स्वस्थ मन निवास कदापि नहीं कर सकता। यदि मन स्वस्थ न हो तो विचार भी स्वस्थ नहीं हो सकते। जब विचार स्वस्थ नहीं होंगे तो कर्म की साधना कैसी होगी? कर्तव्यों का पालन कैसा होगा? शरीर को चुस्त , दुरुस्त एवं बलशाली बनाने के लिए व्यायाम आवश्यक है।

Vyayam aur swasthya


शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिस प्रकार पौष्टिक तत्वों की जरूरत होती है उसी प्रकार शरीर को चुस्त-दुरुस्त और सक्रिय रखने के लिए व्यायाम की भी जरूरत होती है। यही शरीर का साधन है जिससे मनुष्य कर्म करता है। शरीर ही कर्म का साधक और धर्म का आराधक है। मानव शरीर में ही आत्मा का निवास होता है। शरीर का पहला धर्म है निरोग रहना। इस परिपेक्ष्य में -“पहला सुख निरोगी काया” यह कथन बिल्कुल सत्य है क्योंकि जिस व्यक्ति का शरीर रोगी है उसका जीवन ही निरर्थक है।

महर्षि चरक का कहना है कि धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष इन चारों का मूल आधार स्वास्थ्य ही है। यह बात अपने में नितांत सत्य है। अस्वस्थ मनुष्य न धर्म चिंतन कर सकता है, न अर्थोपार्जन कर सकता है, न काम प्राप्ति कर सकता है और न मानव- जीवन के सबसे बड़े स्वार्थ मोक्ष की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है क्योंकि इन सब का मूल आधार शरीर है। अतः धर्म, अर्थ, कर्म एवं मोक्ष —-जीवन के इन 4 लक्ष्यों को स्वस्थ शरीर द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

speech on vyayam aur swasthya

स्वास्थ्य और समाज
अस्वस्थ व्यक्ति न अपना कल्याण कर सकता है, न अपने परिवार का,न अपने समाज की और न ही अपने देश की उन्नति कर सकता है। जिस देश के व्यक्ति अस्वस्थ और अशक्त होते हैं, वह देश न आर्थिक उन्नति कर सकता है और न ही सामाजिक। देश का निर्माण, देश की उन्नति, बाह्य और आंतरिक शत्रुओं से रक्षा, देश का समृद्धिशाली होना वहाँ के नागरिकों पर आधारित होता है। सभ्य और अच्छा नागरिक वही हो सकता है जो तन ,मन और धन से देशभक्त हो और मानसिक एवं आत्मिक स्थिति में उन्नत हो। इन दोनों ही कर्मों में शरीर का स्थान प्रथम है। बिना शारिरिक उन्नति के मनुष्य न देश की रक्षा कर सकता है और न अपनी मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है। अतः स्वास्थ्य प्रत्येक दृष्टि से प्रत्येक सामाजिक प्राणी के लिए महत्वपूर्ण वस्तु है।

व्यायाम के भेद

प्रतिदिन व्यायाम न करने वाले मनुष्य आलसी बन जाते हैं। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलसी व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में असफल होते हैं। अंततः जीवन से निराश हो जाते हैं। व्यायाम करने से शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है और व्यायाम न करने से बोझ-सा प्रतीत होता है। व्यायाम के अभाव में शरीर बेडौल होकर तरह-तरह के रोगों को निमंत्रण देने लगता है। कसरत आदि न करने से शरीर में अनावश्यक चर्बी बढ़ती है और मोटापा आता है।

मोटापा अपने आप में एक बीमारी है जो हृदय रोग, मधुमेह,तनाव तथा रक्तचाप जैसी बीमारियों को जन्म देता है। व्यायाम अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे प्रातः भ्रमण करना, दौड़ना, खेलकूद,तैराकी,घुड़सवारी, दंड बैठक लगाना, योगासन आदि। इनमें प्रातः भ्रमण अत्यंत उपयोगी है। जिस प्रकार किसी मशीन को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसमें तेल आदि डालना अनिवार्य है,उसी प्रकार शरीर में ताजगी तथा गतिशीलता बनाए रखने के लिए प्रातः भ्रमण और योगिक क्रियाएं अत्यंत उपयोगी है। तैराकी खेलकूद तथा घुड़सवारी भी उत्तम व्यायाम है। ( speech on vyayam aur swasthya)

व्यायाम से लाभ

प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर में खून के संचार में वृद्धि होती है। बुढ़ापा का आगमन जल्दी नहीं होता। शरीर हल्का-फुल्का,चुस्त तथा गतिशील बना रहता है। शरीर में कार्य करने की क्षमता बनी रहती है एवं व्यक्ति कर्मठ बनता है। जो व्यक्ति नियमित रूप से व्यायाम करने वाला होगा,उसका जीवन उल्लास पूर्ण तथा सुखी होगा। व्यायाम करने वाला व्यक्ति सदैव हँसमुख,आत्मविश्वासी, उत्साही तथा निरोगी रहता है।

व्यायाम की उचित विधि

व्यायाम अपनी उम्र एवं अवस्था के अनुरूप ही करना चाहिए। व्यायाम प्रत्येक लोगों के लिए उपयोगी नहीं हो सकता है। इसलिए प्रातः भ्रमण ही सर्वश्रेष्ठ व्यायाम है। क्योंकि प्रातः काल की स्वच्छ वायु स्वास्थ्य के लिए वरदान है। बच्चों के लिए भाग-दौड़, वृद्धों के लिए भ्रमण तथा युवकों के लिए अन्य व्यायाम उपयोगी है। आवश्यकता से अधिक किया गया व्यायाम हानिकारक होता है। व्यायाम करते समय व्यायाम के नियमों का पालन करना आवश्यक है। व्यायाम खुली हवा में खाली पेट करना चाहिए। व्यायाम के तुरंत बाद कभी भी स्नान नहीं करना चाहिए।

यदि हमें इस पृथ्वी पर जन्म लेकर सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन जीना है तो व्यायाम का अवलंबन लेना आवश्यक है। पृथ्वी पर व्याप्त अनेक प्रकार के सुखों का उपयोग करना है तथा आत्मविश्वास, आपूर्ति एवं उल्लास से भरा जीवन जीना है, तो हमें प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए।जीवन की सार्थकता अच्छे स्वास्थ्य में ही निहित है। बिना स्वस्थ जीवन के कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक। स्वस्थ व्यक्ति ही पुरुषार्थी हो सकते हैं। इस प्रकार नियमित व्यायाम और पौष्टिक भोजन शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।

उपसंहार
प्राण रूपी पक्षी को शरीर रूपी पिंजड़े में सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्य रूपी मजबूत शिकंजे की आवश्यकता है। जीवन में प्रसन्नता के लिए स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के लिए व्यायाम नितांत आवश्यक है। हमें स्वास्थ्य रूपी धन को व्यर्थ में नष्ट नहीं करना चाहिए। जिससे हमें जीवन भर पश्चाताप की अग्नि में जलना न पड़े। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम इस स्वास्थ्य रूपी शरीर को नियमित व्यायाम से सुरक्षित रखें।

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