परोपकार पर निबंध इन हिंदी :-essay on paropkar in hindi
परोपकार शब्द “पर+उपकार ” शब्दों से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है–दूसरों की भलाई करना। अर्थात जो व्यक्ति अपना स्वार्थ त्यागकर दूसरों की भलाई करे, उसको ही परोपकार कहते हैं। संसार में सब कोई अपने लिए जीते है। किंतु जो दूसरों के लिए जीता है,उस व्यक्ति को ही परोपकारी कहते हैं।(essay on paropkar in hindi)
हमारे धर्म-ग्रंथों एवं शास्त्रों में परोपकार के संदर्भ में बहुत कुछ लिखा गया है। नदियाँ अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों के लिए अपना जल अर्पित कर देती है। बादल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि पृथ्वी- वासियों के लिए अपना जल बरसाती है। वायु हमारे लिए बहकर हमें ऑक्सीजन प्रदान करती है। आग स्वयं जलकर हमारे लिए ताप और ऊर्जा प्रदान करती है। इस तरह सृष्टि बनाने वाले ने जो कुछ भी बनाया है। वह अपने लिए नहीं, बल्कि हमारे लिए ही काम आता है।
18 पुराणों में महाभारतकार महाकवि व्यास के दो ही सार वचन है। परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। परोपकार का अर्थ दूसरों की निस्वार्थ भलाई है। इस गुण के धारण में ही जीवन की सार्थकता है। इससे बढ़कर दूसरा कोई धर्म भी नहीं है। तभी तो कहा गया है-” परहित सरिस धर्म नहीं भाई।”
परोपकार के अभाव में हम मानव कहलाने तक के अधिकारी नहीं होते हैं। आज के युग में हम अपने स्वार्थों का त्याग तो शायद नहीं कर सकते। परंतु ऐसा अवश्य कर सकते हैं कि अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुँचाये। यदि हम इस बात का इतना भी ध्यान रख पाते हैं तो सच्चे अर्थों में हम परोपकारी बन सकते हैं। (essay on paropkar in hindi)
दूसरों की सेवा करना और दूसरों का सदा हित सोचना परोपकार का मूल मंत्र है। परोपकार के बल पर ही दुनिया टिकी है। जिसका मन परोपकार में रमा है उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। संत तुलसीदास का कहना है कि परोपकारी के चरणों पर चारों पुरुषार्थ लेटते हैं। भगवान शंकर ने परोपकार के लिए विषपान किया, जटायु ने परोपकार के लिए अपने प्राण की बाजी लगा दी। दधीचि ,गांधी, बुद्ध आदि का जीवन भी परोपकार में बीता।
परोपकार के लिए काँटो की राह चलना पड़ सकता है। अनेकानेक कष्ट झेलने पड़ सकते हैं। पर जो सच्चे परोपकारी हैं। वे जरा भी नहीं घबराते हैं। वे स्वार्थ के संकुचित घेरे से निकल कर दूसरों के दुख दूर करने में लगे रहते हैं।
परोपकार में बदले की भावना नहीं होनी चाहिए। यह जीवन औरों के लिए है। ऐसा विचार मन में लाकर जीवन के कुछ क्षण दूसरों के उपकार में बिताना चाहिए। अशिक्षितों को शिक्षा देना, गरीबों को अन्न-वस्त्र देना ,दूसरों को शोषण से मुक्ति दिलाना ,समाज को सही राह दिखाना आदि परोपकार है।
परोपकारी होना मानव चरित्र की महानता का परिचय देता है परंतु परोपकारी बनने के लिए अपना स्वार्थ त्यागना होगा। बिना स्वार्थ त्याग किए बिना इस मार्ग पर चलना संभव नहीं है। हमारा व्यक्तित्व और चरित्र इसको दुर्बल बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। इससे बाहर निकल कर हमें कुछ सोचना होगा। बस इतना अवश्य कहा जा सकता है कि कम से कम दूसरों की राह में रोड़ा न बनें।
अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों को आर्थिक ,मानसिक, शारीरिक आदि किसी प्रकार की कोई हानि न पहुंचाएं। हम जिस देश के वासी हैं उसकी महान परंपराओं को याद रखें। हमारे आचरण -व्यवहार से ही देश का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित रह सकता है। हम इतना भी सफलतापूर्वक कर लेते हैं तो हम कह सकते हैं कि यह भी अपने देश- जाति पर हमारा एक बहुत बड़ा उपकार होगा।