महात्मा गाँधी पर निबंध: – महात्मा गाँधी पर हिंदी निबंध
प्रस्तावना
अंग्रेजों की शोषण नीति और असहनीय परतंत्रता से भारत वर्ष को मुक्त कराने में कई महापुरुषों ने अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार योगदान दिया। आदरणीय लोकमान्य तिलक, मालवीय जी पूज्य बापू, क्रांति दूत सुभाष आदि स्वतंत्रता संग्राम के सेनानायक थे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। कांग्रेस के बाल्यकाल में ही आपस में फूट पड़ी और उसके दो दल बन गए। एक नरम समूह और दूसरा गरम समूह। नरम दल की बगडोर गाँधी जी के हाथ में आई। भारतवर्ष की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए गाँधी जी ने जीवन भर प्रयत्न किया और उन्होंने भारतवर्ष को स्वतंत्र रूप से बनाया।
(महात्मा गाँधी पर निबंध: – महात्मा गाँधी पर हिंदी निबंध)
![Hindi essay on mahatma gandhi](https://nibandhbharti.com/wp-content/uploads/2020/11/pacifist-71445__480.jpg)
पूर्व जीवन एवं शिक्षा
गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनके पिता करमचंद गाँधी एक समय पोरबंदर के दीवान थे, फिर बाद में राजकोट के भी दीवान बन गए। गाँधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था, जो एक साध्वी प्रवृत्ति की स्त्री थी। सदैव पूजा- पाठ में व्यस्त रहता था। 2 अक्टूबर सन् 1869 ई ० को पोरबंदर में बालक मोहनदास का इसी परिवार में जन्म हुआ। इनका बचपन पोरबंदर में ही व्यतीत हुआ।
7 वर्ष की अवस्था में इन्हें राजकोट की स्थानीय पाठशाला में दाखिल कराया गया। 5 वर्ष तक ये वहीं पढ़ते रहे। बालक मोहनदास में बचपन में कुछ दुर्गुण भी थे,बुद्धि भी इतनी तीव्र न थी। वे माता-पिता के भक्त थे। 1885 ई० में इनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया। सन् 1887 इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में वकालत पढ़ने के लिए गाँधी जी विलायत चले गए और सन् 1891 में बैरिस्टरी पास करके भारत लौट आए। (महात्मा गाँधी पर निबंध:-Hindi essay on mahatma gandhi)
दक्षिण अफ्रीका में
उन्होंने मुंबई में वकालत स्टार्ट की लेकिन विशेष सफलता न मिली। पोरबंदर की एक फर्म का अफ्रिका में मुकदमा चल रहा था। उसकी 40000 पाउंड की नालिश थी। उसमें वकील के रूप में वे अफ्रिका चले गए। सिर पर पगड़ी रखकर वे अदालत में चले गए। वहाँ इनसे पगड़ी उतारने को कहा, किंतु सच्चे भारतीय की भाँति में उसने अपनी पगड़ी की रक्षा की। वे बाहर आ गए। रेल, घोड़ा-गाड़ी, होटल सभी जगह इनका अपमान किया गया, किंतु वे अपने मिशन में लगे रहे। इसी प्रकार वहाँ रहने वाले भारतीयों के साथ भी होता था। अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों का पक्ष लेकर उसने आंदोलन चलाया और आंदोलन में इनको सफलता मिली। गाँधी जी को ही यह श्रेय प्राप्त हुआ कि वहाँ के भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी।
भारतीय आन्दोलनों के कर्णधार
भारतवर्ष लौटकर यहाँ की राजनीति में गाँधी जी ने भाग लेने की शुरुआत की। सन् 1914 में प्रथम विश्व युद्ध में गाँधी ने अंग्रेजो की सहायता की क्योंकि अंग्रेजों ने वचन दिया था कि युद्ध में विजय होने पर हम भारत को स्वतंत्र रूप से करेंगे, लेकिन बाद में उल्टी हुई। युद्ध में विजयी होने पर अंग्रेजों ने रौलट एक्ट और पंजाब की रोमांचकारी जालियाँवाला बाग हत्याकांड की घटना के रूप में प्रदान की।
इसके पश्चात 1919 और 1920 में गाँधी जी ने आंदोलन प्रारंभ किया। परिणामस्वरुप वे जेल भेजे गए। सन् 1930 में देशव्यापी नमक आंदोलन का संचालन किया। सन् 1931 में इनको गोलमेज कांफ्रेंस में आमंत्रित किया गया। गाँधी जी विलायत गए और बड़ी विद्वता से भारत के पक्ष का समर्थन किया। सन् 1938 में भारत सरकार ने कांग्रेसियों को अपने-अपने प्रांतों में मंत्रिमंडल बनाने की आज्ञा दे दी। गाँधी जी की सहमति से सभी प्रांतों में मंत्रिमंडल बने। सन् 1939 में अंग्रेजों ने भारतीयों की बिना राय लिए हुए ही भारत को महायुद्ध में सम्मिलित राष्ट्र घोषित कर दिया।
प्रथम महायुद्ध में गाँधी जी ने अंग्रेजो की दिल खोलकर सहायता की थी। इस आश्वासन के ऊपर कि भारत को स्वतंत्र कर देंगे, परंतु उसका प्रतिफल बड़ा भयानक हुआ था। अतः इस बार गाँधी जी ने सहायता के विषय में स्पष्ट मना कर दिया कि तब तक आपकी सहायता न करेंगे, जब तक कि आप हमें पूर्ण स्वतंत्र न कर दें। इस प्रकार महायुद्ध में अंग्रेजो की कोई सहायता नहीं की गई।
द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति पर विश्व की राजनीतिक स्थिति बहुत बदल गई थी। युद्ध से पूर्व ब्रिटेन को संसार की सबसे बड़ी शक्ति समझा जाता था, परंतु अब उसकी स्थिति दूसरी थी। वह पहले नंबर से अब तीसरे नंबर पर आ चुका था। भारतवर्ष में 1942 के “भारत छोड़ो” आंदोलन तथा आजाद हिंद के बलिदान के कारण प्रबल राजनैतिक जागृति हो गई थी। 1942 का आंदोलन सुधारक आंदोलन नहीं था।
गाँधी जी तथा समस्त नेताओं को जेल में बंदी बना देने के फलस्वरुप देश की समस्त जनता ने भयंकर रूप धारण कर लिया। अंग्रेजी शासन की नींव डगमगा उठी। किसी- किसी स्थान पर तो ऐसा लगता था मानो अंग्रेज सरकार रही ही नहीं। विदेशी समझ गए कि अब भारतीयों पर शासन करना आसान खेल नहीं। उन्होंने भारत को छोड़ जाने में ही अपना कल्याण समझा। 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष स्वाधीन राष्ट्र घोषित कर दिया गया। भारतवर्ष दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया गया।
गाँधी जी का संपूर्ण जीवन देश हित में ही लगा। उन्होंने अपना समस्त सुख देश के लिए बलिदान कर दिया। एक साधारण सी लंगोटी धारण करके अपना जीवन बिताते थे। उनका रहन-सहन बहुत ही साधारण था। देश में फैले सांप्रदायिक विश्व को शांत करने के लिए उन्होंने नोआखाली की यात्रा की तथा दिल्ली में उपद्रव रोकने के लिए आमरण अनशन तक की घोषणा कर दी।
मृत्यु
30 जनवरी 1948 की शाम को 6:00 बजे जब गाँधी जी अपनी प्रार्थना सभा में जा रहे थे तब नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने पिस्तौल की तीन गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी। सारा देश शोकाकुल हो उठा। जिधर देख ऊ उधर लोग रेडियो पर कान लगाए बैठे थे और आँखों से आँसू बहा रहे थे। लोगों ने ऐसा अनुभव किया कि मानो उनके घर के किसी आदमी की मृत्यु हो गई हो।
मृत्यु के कुछ क्षणों के बाद रेडियो पर पंडित नेहरू ने बड़े दुख से भरे गदगद कंठ से भाषण दिया। जनता के आँसू और भी अधिक बहने लगे। पंडित नेहरू का स्वयं का दिल भी भरा हुआ था। संसार के सभी झंडे झुका दिए गए। श्रद्धांजलि अर्पित की गई। लाखों व्यक्ति शमशान यात्रा में सम्मिलित हुए गाँधी जी के अंतिम दर्शन के लिए देश के सभी भागों से जो जैसा बैठा था उसी तरह दिल्ली के लिए जा रहा था।
उपसंहार
गाँधी जी भारत वर्ष के महान नेता थे, स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने भारतीय जनता का नेतृत्व किया। भारत माता की सोच परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के लिए उन्होंने जीवनभर या फायदेऐं सही, लेकिन पग पीछे न हटाए। साथ ही साथ वे श्रेष्ठ विचारक और श्रेष्ठ समाज सुधारक भी थे। समाज की बहुत से छिपी हुई कमियों को समाज के सामने लाई और उन्हें दूर करने का पूर्ण प्रयास किया। महात्मा बुद्ध की दया और अहिंसा, दयानंद के सत्य और अछूतोंद्धारके पवित्र नियमों पर वे स्वयं चले गए और दूसरों को भी ले गए। गाँधी जी ने समाज की बहुमुखी सेवा की। नि: संदेह भारत वर्ष उनका ऋणी है और चिर ऋणी रहेगा।