'समय का सदुपयोग' अथवा "समय अमूल्य धन है" हिंदी निबंध

समय का सदुपयोग ‘या “समय अमूल्य धन है” हिंदी निबंध

समय का सदुपयोग

भूमिका

समय क्या है? उसका सदुपयोग क्यों आवश्यक है? सोच की बात है! समय का वास्तविक अर्थ है — जीवन के उपलब्ध क्षण। समय निरंतर रूपांतरण है। समय की यह गतिशीलता ही जीवन है। घड़ी की टिक- टिक हमें कुुुछ कहती है। निरंतर सरकती हुई सुइयाँ यह चेतावनी दे रही है — समय चला जा रहा है, कुछ कर लो, कुछ कर लो! जो पल एक बार चला गया, वह कभी लौटकर नहीं आता है। देखते या समय की प्रतीक्षा करते रहने से जीवन यों ही बीत जाता है। क्योंकि समय कभी नहीं आता, बल्कि केवल चलता है।

एक बार एक व्यक्ति ने महात्मा गाँधी से पूछा — जीवन में ऊंचा उठने के लिए किसी को सबसे पहले क्या करना चाहिए? शिक्षा या धन हो सकता है।
गांधी जी ने उत्तर दिया — यह वास्तविक जीवन में उठने में सहायक अनिवार्य होता है, किंतु मेरे विचार में एक वस्तु का महत्व सबसे अधिक है, वह है– समय की व्याख्या। प्रत्येक वस्तु का कोई समय होता है, उसे करने या न करने का। यदि आपने समय को व्याख्याने की कला सीख ली है तो आपको किसी प्रशंसा या सफलता की खोज में मारे- मारे भटकने की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं आकर आपका द्वार खटखटाएगी।

गाँधी जी के विचार

गाँधी जी के इस कथन से दो निष्कर्ष निकलते हैं–पहला यह है कि हमें समय का मूल्य और महत्व समझना चाहिए। दूसरा यह कि समय के अनुसार काम करना चाहिए। जीवन की यही कुंजी है। कहावत भी है कि एक क्षण का पिछड़ा, सैकड़ों कोस पीछे रह जाता है। जो लोग निरंतर असफल होते हैं ,या रहा करते हैं; वे प्राय: प्रतिकूल परिस्थितियों को बुरा-भला कहने लगते हैं। वस्तुतः बड़ी असफलता का कारण दुर्भाग्य नहीं होता, अपितु समय को गलत समझने, उसके तेवर को ठीक प्रकार न पहचान पाने की गलती होती है। यूनान के दार्शनिक अरस्तू ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि “प्रत्येक व्यक्ति को उचित समय पर, उचित व्यक्ति से, उचित मात्रा में, उचित उद्देश्य के लिए, उचित ढंग से, व्यवहार करना चाहिए।”

समय का महत्व

वस्तुतः एक- एक क्षण से प्रत्येक प्राणी का संबंध रहता है। एक-एक पल के सहयोग से ही जीवन बनता है। एक-एक पल के बीतने के साथ-साथ जीवन घटता भी जाता है। शेक्सपियर का कथन है —- “there is a tide of time.” जो व्यक्ति उस क्षण विशेष से चूक जाता है, कभी सफल नहीं हो पाता । किंतु प्रत्येक व्यक्ति उसके महत्व को नहीं समझता।

व्यक्ति सोचते हैं कि कोई उचित समय आएगा, तो फिर उस काम को करेंगे। इसी सोच-विचार में वे अपने जीवन के बहुमूल्य क्षणों को खो देते हैं। वे अपने दिनों ,महीनों और वर्षों को किसी शुभ पल की प्रतीक्षा में बिता देते हैं ,किंतु इस प्रकार का समय किसी के जीवन में कदापि नहीं आता ,जब बिना हाथ-पैर हिलाए संसार की बहुत बड़ी संपत्ति छप्पर फाड़कर उसके हाथ लग जाए। समय को तो अपनी परख ,अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति से लाना और परिश्रम से शुभ बनाना पड़ता है। वास्तव में पुरुष जिस समय को चाहे शुभ क्षण बना सकता है। आवश्यकता है समय की परख करके उचित परिश्रम करने की।

जो व्यक्ति आलस्यवश समय को नष्ट कर देते हैं, समय उन्हें नष्ट कर देता है। इस मंत्र को सुन- समझकर भी हम भारतवासी समय के मूल्य को नहीं समझते। प्रायः प्रत्येक कार्य देरी से करते हैं। कहीं किसी ने आपत्ति की तो उत्तर देते हैं :— “यह हिंदुस्तानी समय है।” जब उचित समय आएगा ,तब सब कुछ ठीक हो जाएगा। यदि हमें समय का सही अर्थ समझना है तो वह हमें पश्चिमी देशों से सीखना पड़ेगा।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के विचार

हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपने इंग्लैंड के संस्करणों में लिखा है:–

वहाँ के लोग समय का मूल्य खूब जानते हैं। इसलिए जो काम हो उसे इतनी जल्दी करते हैं कि मानो सभी दौड़ते ही दिखते हैं । सड़कों पर आप बहुत कम लोगों को, जो स्वस्थ हैं, उस आराम की चाल से चलते हुए देखेंगे, जिस चाल से हमारे नवयुवक भी प्रायः चला करते हैं, और स्त्रियाँ तो धीरे-धीरे चलना जानती ही नहीं।

रेलवे स्टेशन पर जाइए, आपको टिकट इतनी जल्दी मिलेगी कि आपके मुँह से स्टेशन का नाम निकलते ही टिकट सामने मौजूद है। समय बचाने के ख्याल से टिकट देने के लिए यंत्र भी ऐसे ही हैं ,जिनसे काम बहुत जल्दी निकलता है। जो समय जिस काम के लिए है ,उसको ठीक उसी समय वे करेंगे। यदि आपने किसी से मिलने के लिए समय रखा है तो विश्वास रखिए कि वह और घड़ी के काँटे एक साथ ही अपने-अपने निर्धारित स्थान पर पहुँच जाएंगे । आप काम के समय किसी से जाकर गप्पें नहीं कर सकते।

समय का सदुपयोग आवश्यक

हमारा भी समय के प्रति यही आदर्श दृष्टिकोण होना चाहिए। समय की पाबंदी और सदुपयोग मानव-चरित्र की एक विशेषता है। प्रायः सभी महापुरुष समय के पाबंद होते हैं। इसके विपरीत समय में शिथिलता, चरित्र की बहुत बड़ी दुर्बलता है। विलंब से पहुँचने में न केवल अपना समय और कार्य नष्ट होता है, अपितु दूसरों का भी। माखनलाल चतुर्वेदी ने बड़े सुंदर शब्दों में कहा है :–
समय जगाता है हम सबको,झटपट जग जाना ही होगा।
देख विश्व-सिद्धांत , कार्य में निर्भय लग जाना ही होगा।।

उपसंहार

अतः सफलता के लिए हमें आज से ही समय के प्रत्येक पल के सदुपयोग की आदत डालने शुरु कर देनी चाहिए। तभी हम अपने लक्ष्य को पा सकेंगे। जीवन का क्या है, वह तो किसी भी क्षण धोखा दे सकता है। जीवन से धोखा खाने से पहले हमें वह सब कर लेना है जो हम चाहते हैं। तभी मुक्ति मिल सकती है, अन्यथा नहीं। इच्छाएँ लेकर मरना, बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में पड़े रहना हुआ करता है।

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