विज्ञान - वरदान या अभिशाप पर निबंध हिंदी में

विज्ञान – वरदान या अभिशाप पर निबंध हिंदी में

प्रस्तावना

आवश्यकता अधिकारों की जननी है। मानव सभ्यता जैसे- जैसे विकसित होती गई, मनुष्य की आवश्यकताएँ उतनी ही उत्तरोत्तर बढ़ती गई। नवीन सुख की खोज के लिए वह अनवरत प्रयत्न करता है। वह अपनी वर्तमान परिस्थिति से असंतुष्ट था। उसकी अतृप्त कामनाओं ने, उसकी कौतूहल और जिज्ञासा प्रवृत्ति ने उसे नवीन आविष्कारों के लिए प्रेरित किया। कल तक वह रेल या मोटरकार से यात्रा करता था। आज उसे वायुयान से यात्रा करने में भी संतोष नहीं है। अब वह मंगल ग्रह की रॉकेट यात्रा के लिए रॉकेट में अपना स्थान पूर्वाधिकृत करा रहा है।

विज्ञान - वरदान या अभिशाप

आज सिनेमा का स्थान टेलीविजन ले रहा है। शीशे के वस्तुओं का प्रयोग किया जा रहा है। धातुओं के स्थान पर प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा है। यह सब विज्ञान का वरदान है। विज्ञान ने आज हजारों आश्चर्यजनक परिवर्तन उपस्थित कर दिए हैं। आज से दो-तीन सौ वर्ष पूर्व का मनुष्य प्राचीन स्मृतियों और धारणाओं के साथ यदि आज के संसार में आ जाए तो यह परिवर्तित संसार उसे विस्मय से स्तंभित किए बिना नहीं रह सकता। आज विज्ञान ने संसार को महान शक्तियाँ प्रदान की है। विश्व द्रुतगति से आगे बढ़ता जा रहा है।

विज्ञान – वरदान या अभिशाप पर निबंध हिंदी में

विज्ञान जब अपनी शैशवावस्था में था, मानव जाति ने इसको मंगलमय समझकर इसका स्वागत किया था। परंतु प्रौढ़ावस्था में आकर यह विनाशकारी सिद्ध होने लगा। आज का सारा विश्व विज्ञान के हाथ का खिलौना है। जब वह चाहे इसे तोड़ मरोड़ कर फेंक सकता है। आज बड़े-बड़े विचारक इस चिंता में हैं कि ऐसा कौन सा उपाय किया जाए, जिससे विज्ञान मानव जाति के लिए वरदान रहे, अभिशाप न बने।

ध्यानपूर्वक विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान का इसमें कोई दोष नहीं है। विज्ञान तो एक शक्ति है, जैसे अग्नि को आप खाना पकाने के काम में भी ला सकते हैं और आग लगाने के काम में भी। इसमें दोष है मानव की स्वार्थलिप्सा का, कलुषित विचारधाराओं का। विज्ञान का वरदान या अभिशाप होना इसके प्रयोग पर निर्भर है।

वरदान के रूप में विज्ञान

विज्ञान ने मानव को आधुनिकतम अस्त्र- शस्त्रों से सुसज्जित कर दिया है, जिनसे समय पड़ने पर वह अपने देश के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा कर सकता है। शत्रुओं से अपने देश की सीमाओं को सुरक्षित रख सकता है और अन्याय का मुँहतोड़ उत्तर दे सकता है। यही नहीं विज्ञान ने वरदान के रूप में मानव जाति की जो सेवा की है, वह अमूल्य है। मानव जाति कभी इससे उऋण नहीं हो सकती।

विश्व का एक-एक कोना आज मनुष्य के लिए घर के आँगन के समान है। विज्ञान की अभूतपूर्व सफलताओं से चंद्रमा पर मानव 36- 36 घंटे की सैर कर चुका है। लंबी से लंबी यात्रा हम थोड़े समय में ही कर सकते हैं। आज हमें पानी जहाज, हवाई जहाज और गाड़ियाँ उपलब्ध है। विद्युत के आविष्कारक ने तो मानो युग ही बदल दिया है। अलादीन के चिराग की भाँति सारे सुख हमारे सामने हाथ बाँधे खड़े हैं। एक बटन दबाते ही सारा नगर आलोकमय हो जाता है, निर्मल ज्योत्सना जगमगा उठती है। रोटी पकाने,पानी गर्म करने, कपड़े सुखाने, पंखा चलाने, बड़ी-बड़ी मशीनों को चलाने आदि में विद्युत हमारी सहायक होती है।

विद्युत की शक्ति के सहारे हमको शीत ऋतु में ग्रीष्म के और ग्रीष्म ऋतु में शीत के आनंद प्राप्त होते हैं। बेतार के तार से घर बैठे-बैठे हम समाचार भेज सकते हैं और प्राप्त भी कर सकते हैं। अपने घर पर ही रह कर अपने विदेशी मित्रों से बात कर सकते हैं, उनका चेहरा देख सकते हैं। रेडियो द्वारा विश्व भर का सुललित संगीत व समाचार सुनकर अपना ज्ञान विस्तार कर सकते हैं। आज मुद्रण यंत्रों के द्वारा हजारों किताबें घंटे भर में छप कर तैयार हो जाती है। चलचित्रों द्वारा मनुष्य का आज मनोरंजन होता है। ज्ञान और मनोरंजन का आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ विज्ञान का प्रवेश न हो। चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने मानव जाति की पर्याप्त सहायता की है।

अभिशाप के रूप में विज्ञान

कुटिल और स्वार्थी राष्ट्रों की कलुषित भावनाओं के कारण विज्ञान का यह वरदान रूप आज अभिशाप में परिवर्तित होता दृष्टिगोचर हो रहा है। जिस विज्ञान का उदय मानव की सुख- शांति की वृद्धि के लिए हुआ था। यही विज्ञान आज विश्व की संस्कृति और सभ्यता को भस्मसात कर देना चाहता है। हिरोशिमा तथा नागासाकी का विध्वंस अमेरिका की बर्बरता को आज भी सिद्ध कर रहा है। अणु बम के निरंतर प्रयोग चल रहे हैं।

विज्ञान – वरदान या अभिशाप पर निबंध हिंदी में

विज्ञान ने मनुष्य को इतने सुख के साधन प्रदान कर दिए हैं कि मानव भोगवादी तथा कर्मण्य होता जा रहा है। आज का मनुष्य अतृप्त और असंतुष्ट है। मशीनों के कारण गृह उद्योग धंधे समाप्त हो गए हैं। देश में बेरोजगारी और बेकारी बढ़ती जा रही है। इस रूप में विज्ञान मानव के लिए अभिशाप बन गया है। अंतरराष्ट्रीय योजनाएँ बन रही है, परंतु दिखावे के लिए। आंतरिक रूप से एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को आतंकित और भयभीत रखने की तैयारी कर रहा है।

उपसंहार

विज्ञान एक शक्ति है। इसका उपयोग कल्याण के लिए भी हो सकता है और संहार के लिए भी। अणु शक्ति का प्रयोग नरसंहार के लिए भी हो सकता है और कृषि सुधार तथा उद्योग धंधों की उन्नति के लिए भी। यह सब कुछ मनुष्य की विचारधारा पर आधारित है। आज के राजनीतिज्ञों को अपनी स्वार्थ भावना का परित्याग कर देना चाहिए,तभी वह विज्ञान के वरदानों का प्रयोग कर सुखी और समृद्ध हो सकेंगे, अन्यथा कदापि नहीं।

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