विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध :-essay on students & discipline

विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध:-essay on students & discipline

भूमिका

अनुशासन का अर्थ है — अपने मन, वचन, कर्म पर नियंत्रण। जिन लोगों का इन पर नियंत्रण नहीं होता, वही पशु के समान उन्मुक्त होकर लक्ष्यहीन हो जाते हैं और संसार के ऊपर भार स्वरूप हो जाते हैं। अनुशासन जीवन जीने की एक कला है। अनुशासन शब्द एक ऐसा सामान्य शब्द है, जिसकी उपयोगिता और प्रयोग सर्वत्र आवश्यक होता है।

प्राणी मात्र के जीवन में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। संसार में होने वाले सभी कर्म,चाहे वे बुरे हो या अच्छे हो,सब में अनुशासन अर्थात आत्मनियंत्रण की आवश्यकता होती है। बिना अनुशासन के मनुष्य पशुवत हो जाता है और एक अनुशासित पशु मानवीय गुणों का अनुसरण करने लगता है।

विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध

अभिप्राय

अनुशासन से अभिप्राय है— नियमों, सिद्धांतों एवं आदेशों का पालन करना। एक आदर्श जीवन जीने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है। अनुशासन की प्रथम पाठशाला व्यक्ति का घर होता है जहाँ वह जन्म लेता है और उसके प्रथम गुरु उसके माता-पिता होते हैं। 5 साल तक उसे माता-पिता अपने व्यवहार के अनुसार अनुशासित रहने का पाठ पढ़ाते हैं। इसके बाद बच्चा विद्यालय में प्रविष्ट होता है। वहाँ उसे अध्यापक का सानिध्य मिलता है। अध्यापक उसको अनुशासन का पाठ पढ़ाता है। प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए, समाज में जीने के लिए रास्ता दिखलाता है। (विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध:-essay on students & discipline)

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन में रहना विद्यार्थी को माता-पिता के साथ- साथ अध्यापक सिखाते हैं। शिक्षक,अभिभावक आदि सभी चाहते हैं कि उनके बच्चे अनुशासित रहें। विद्यालय के दौरान विद्यार्थी सभी प्रकार की जिम्मेदारियों और उत्तरदायित्व से मुक्त होता है। वह पूर्ण रुप से मानसिक रुप से स्वतंत्र रहकर अपनी प्रतिभा का विकास करता है।

वह अपनी बुद्धि, विवेक और प्रतिभा का विकास अनुशासन द्वारा ही कर सकता है। विद्यालय में प्रवेश करते समय विद्यार्थी को अनुशासन में रहना आवश्यक होता है। कई वर्ष तक विद्यालय में अनुशासित रहने पर अनुशासन उसकी दैनिक दिनचर्या में शामिल हो जाता है। अनुशासन से ही विद्यार्थी में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की वृद्धि होती है। यदि विद्यार्थी अनुशासन अपना लिया, तो सफलता उसके कदम चूमेगी।

अनुशासन का महत्व

विद्यार्थी का जीवन अनुशासित जीवन कहलाता है। इसे विद्यालयों के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह बाद में योग्य चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है। विद्यार्थी जीवन में बच्चे में शारीरिक व मानसिक गुणों का विकास सबसे अधिक संभव होता है, जो अनुशासन द्वारा ही संभव है।

यदि हम अनुशासनहीनता, बिना नियम तथा उचित विचार किए किसी कार्य को करते हैं तो हमें उस कार्य में गलती होने का डर लगा रहता है। इससे जहाँ व्यवस्था भंग होती है, वहीं कार्य भी बिगड़ जाता है और उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है। अतः व्यक्ति को अनुशासन कभी नहीं खोना चाहिए।

अनुशासनहीनता के कारण

आज विद्यार्थी के अनुशासित न रहने के अनेक कारण हैं। उसमें सबसे बड़ा कारण है गुरुजनों, श्रेष्ठजनों का विद्यार्थियों के प्रति उपेक्षा का व्यवहार। जब उन्हें उपयुक्त आदर,स्नेह, प्रशंसा नहीं मिल पाती,तो अब विद्रोह पर उतर आते हैं। यही विद्रोह बाद में छात्र आंदोलन का रूप ले लेता है। विद्यार्थी को अनुशासन में बनाए रखने के लिए माता-पिता का उचित संरक्षण व मार्गदर्शन तो जरूरी है ही, शिक्षक की के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का होना भी आवश्यक है।

यद्यपि कुछ अभिभावक इस ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण उनके बच्चे अनुशासनहीन तो होते ही हैं, साथ ही उनमें मर्यादा व अच्छे संस्कार भी नहीं पाए जाते। इसलिए आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों को अपने संरक्षण में रख उन्हें अच्छे संस्कार दें। (विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध:-essay on students & discipline)

आज के शिक्षक भी इसके लिए कम दोषी नहीं हैं। एक गुरु में जो गुण होने चाहिए, उन गुणों में से आज के शिक्षक तिलांजलि दे चुके हैं। उनका मूल भाव बच्चों को अच्छी शिक्षा देना न होकर सिर्फ नौकरी करना ही रह गया है। वे विद्यार्थियों को सिर्फ गृह कार्य देकर और कक्षाकार्य कराकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। आज से कुछ वर्षों पूर्व तक शिक्षक गृह कार्य व कक्षा कार्य कराने के साथ-साथ विद्यार्थियों को कहानी, घटना आदि सुनाकर उन्हें नैतिकता का भी पाठ पढ़ाते थे।

इसके साथ ही विद्यार्थी में अनुशासनहीनता के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ भी बहुत जिम्मेदार है। वह अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए युवा शक्ति के नाम पर विद्यार्थियों को गुमराह कर उनसे राष्ट्रहित विरोधी कार्य कराते हैं।

उपसंहार

विद्यार्थी में जिस गति से अनुशासनहीनता बढ़ रही है। यदि उसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके बुरे परिणाम सामने आएंगे। आज का विद्यार्थी कल का देश का भविष्य होता है। यदि अनुशासनहीनता विद्यार्थियों में बढ़ती जाएगी तो आने वाला हमारा समाज कैसा होगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। सत्यता, सच्चरित्रता तथा अनुशासन की परंपरा टूटने पर कोई भी व्यक्ति,परिवार, समाज और देश को नष्ट होने से नहीं बता सकता।

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