bhrashtachar ki samasya essay
अर्थ
भ्रष्टाचार शब्द भ्रष्ट और आचार दो शब्दों के मेलने से बना है । भ्रष्ट का अर्थ है बुरे विचार या कथन और ‘ आचार ‘ का अर्थ है आचरण करने वाला । अर्थात भ्रष्टाचार वह है जिसके वशीभूत होकर मनुष्य अपना सदाचार भूलकर अनैतिक व्यवहार करने लगता है ।
यह एक विचित्र वृक्ष के समान है । जिसकी जड़ें ऊपर की ओर तथा शाखाएँ नीचे की और बढ़ती हैं । इसकी विषैली शाखाओं पर बैठकर मनुष्य , मनुष्य का रक्त चूस रहा है । इस घृणित प्रकृति के कारण हमारे प्रयोग की हर वस्तु दूषित हो गई है और होती जा रही है ।
स्वरूप
भ्रष्टाचार को कई रूपों में देखा जा सकता है । शुद्ध वस्तुओं में मिलावट , जमाखोरी , रिश्वत और कालाबाजारी सभी भ्रष्टाचार रूपी परिवार के ही सदस्य हैं । आज सम्पूर्ण समाज तथा राष्ट्र इसके चपेट में आ गया है । चारों ओर फैले आर्थिक अभाव के वातावरण में समाज के समर्थ लोग अपने तथा अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा हेतु भ्रष्ट तरीके अपनाने से जरा भी नहीं हिचकते । भ्रष्टाचार का विष समाज की नस – नाड़ियों में फैलता जा रहा है ।
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कारण
इस भ्रष्टाचार के लिए किसी एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता बल्कि दोषी तो वह व्यवस्था है जो धन – दौलत को मानवता से ऊपर समझती है । अतः हर प्रकार के भ्रष्ट आचरण द्वारा धनसंग्रह को बल मिला है । गरीबी , आर्थिक कमी , बेरोजगारी , महँगाई , जनसंख्या में वृद्धि आदि कारणों ने भ्रष्टाचार को जन्म दिया है।
लोग समाज में अपनी पद – प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए भी भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं। कम समय में अधिक आय अर्जित करने की चाहत में व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों को गिरा देते है और भ्रष्टाचार को गले लगा लेते है। इस प्रकार की मानसिकता वही लोग रखते है जो अपने देश से प्रेम नहीं करते। अपने देश की उन्नति के संदर्भ में नहीं सोचते । उनको सिर्फ पैसों से प्यार होता है।
समाधान के उपाय
भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान के लिए जनता एवं सरकार दोनों को मिलकर प्रयत्न करना होगा । प्रशासन की सर्वोच्च शक्तियाँ भ्रष्टाचार के मूल कारणों का पता लगाए । इसके साथ ही जनता भी अपने सम्पूर्ण नैतिक बल और साहस के साथ भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयत्न करे । भ्रष्टाचारियों से निपटने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे , चाहे वे कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न हों , उन्हें दंडित किया ही जाना चाहिए । सरकार को ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे सभी कार्य निश्चित समय पर पूरे हो जाएँ तथा भ्रष्टाचार की बू तक न हो ।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार की समस्या का निदान भारत के लिए अति आवश्यक है । अन्यथा सभी प्रगति की योजनाएँ मात्र कागज पर ही बनती रहेंगी । देश की उन्नति कदापि नहीं हो पाएगी । यह एक सामाजिक कोढ़ की तरह है जिससे त्राण पाना ही होगा । इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को ईमानदारी का मार्ग अपनाना होगा।
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