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Bharat ki jansankhya vriddhi
भूमिका
संसार की गति बड़ी विचित्र और परिवर्तनशील है। ऐसा भी था, जब अधिक जनसंख्या को एक विशेष प्रकार की शक्ति का स्रोत और कारण माना जाता था । उसके विपरीत आज एक अभिशाप स्वीकारा जाने लगा है। कभी अधिक संतानों का होना सुख समृद्धि और सौभाग्य का सूचक कहा जाता था। बड़े बुजुर्ग कहा करते थे जिसके 4-6 पुत्र हैं , भला उसे किस बात की कमी ? उसके बाजू लंबे और शक्ति के प्रतीक कहे जाते थे। इसी कारण अधिक संतानोत्पत्ति को बढ़ावा दिया जाता था। पर अब संक्षिप्त या नियोजित परिवार की दुहाई दी जा रही है।
रूस और चीन में जनसंख्या की कमी के रूप में जन शक्ति की कमी महसूस कर कुँवारे मातृत्व तक को मान्यता दी गई। परंतु अधिकांश देशों में जनसंख्या की विस्फोटक बढ़ोतरी पर नियंत्रण पाने के के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं। जिससे उत्पन्न मानव नामक प्राणियों का भी भावी जीवन संतुलित होकर सुविधा पूर्वक जिया जा सके।
Bharat ki jansankhya vriddhi
स्थिति
भारत जब स्वतंत्र हुआ था उस समय इसकी जनसंख्या 32 करोड़ से अधिक नहीं थी। सन् 1971 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 62-63 करोड़ तक पहुँच चुकी थी। सन् 1991 तक इसकी वृद्धि का अनुमान 84 करोड़ से भी अधिक संख्या तक पहुँच चुका था। स्वास्थ्य सुधारात्मक उपायों के कारण मृत्यु दर काफी कम हो चुकी है। आज वर्तमान में भारत की जनसंख्या एक अरब के ऊपर तक पहुँच चुकी है। वैज्ञानिकों का अनुमान यह भी है कि जीवन उपयोगी उत्पादनों का प्रतिशत बढ़ती हुई जनसंख्या की औसत में बहुत कम है। यह केवल भारत में ही नहीं , सारे विश्व में है। जनसंख्या के निरंतर बढ़ोतरी को रोककर जीवन के विभिन्न स्रोतों – साधनों के साथ उसका संतुलन न बैठाया जा सका , तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है , जब आदमी घास-पत्ती खाने के लिए भी आपस में लड़ने मरने लगे।
कारण
भारत में जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण लोगों में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी है। चूँकि भारत ने सबसे पहले परिवार नियोजन के कार्यक्रम चलाए , किंतु जन्म – दर की गति को रोका नहीं जा सका । यहाँ की जनता गरीब , अशिक्षित और अंधविश्वासी है । इसलिए भी वह जनसंख्या कम करने के महत्व को नहीं समझती है । अधिक जनों का सुव्यवस्थित भरण – पोषण , सुशिक्षा और भविष्य की व्यवस्था न तो व्यक्ति के स्तर पर संभव हुआ करती है और न राष्ट्रीय अथवा मानवीय स्तर पर ही। अतः अपने राष्ट्र और मानवता के हित में परिवार नियोजन अत्यंत आवश्यक है । इसी से हम सभी का जीवन स्तर ऊपर उठ सकता है।
इसके अलावा बाल-विवाह , जन्म दर में नियंत्रण न रख पाना , अशिक्षा , गरीबी , अंधविश्वास ,और चिकित्सा सुविधा में वृद्धि आदि भी जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण है।
हानि
जनसंख्या में वृद्धि के कारण बेरोजगारों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। जिससे अपराध की घटनाएँ निरंतर बढ़ती जा रही है। गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। जनसंख्या मैं वृद्धि के कारण सरकार सभी के लिए उचित एवं सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था नहीं कर पाती है। सभी के भरण-पोषण की सम्भव व्यवस्था नहीं हो पाती है। परिणामस्वरूप कुपोषण का शिकार जीवन और समाज तन-मन से रोगी और अराजक हो जाया करता है। जीवन एक जीवंत नरक बन जाता है।
नियंत्रण के लिए आवश्यक उपाय
जनसंख्या के वृद्धि पर नियंत्रण पाना भारत के लिए आज एक प्रमुख चुनौती बन चुकी है । इसके लिए सरकार ने कई परिवार – नियोजन के उपाय सुझाए हैं। जैसे निरोधक उपायों को अपनाना , बाल – विवाह को रोकना , ऑपरेशन करवाना आदि। एक अन्य उपाय के रूप में गर्भ निरोधक गोलियों को भी इसलिए वैधता प्रदान की गयी है ताकि जीवन का स्वाभाविक आनंद भोगते हुए भी बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सके।
उपसंहार
वर्तमान में पढ़े लिखे और समझदार लोग अब जनसंख्या वृद्धि से होने वाले विस्फोटक परिणामों को समझने लगे हैं । अतः उपयोगी और संभव उपाय भी काम में आने लगे हैं। लोगों की अपनी सूझ-बूझ से ही यह कार्य संभव और सफल हो सकता है। जोर-जबरदस्ती या कानून के बल पर नहीं। अतः जरूरत है सूझ-बूझ जगाने की , धार्मिक अंध धारणाओं से ऊपर उठकर वास्तविकता पहचानने की । तभी जनसंख्या – वृद्धि को रोका जा सकता है । तभी अपना वर्तमान और सारी मानवता का भविष्य सुरक्षित हो सकता है।