भारतीय किसान पर निबंध : hindi essay on indian farmar

Bhartiya Kisan par nibandh

भूमिका

भारत किसानों का देश है। किसान भारतीय धरा के पुत्र हैं। देश में किसी की भी सरकार आ जाए कुछ विशेष अंतर नहीं पड़ सकता,किन्तु यदि किसान के जीवन का नाश हुआ तो समझो देश में प्रलय का आना निश्चित है। किसान के जीवन को श्रेष्ठ बनाने में ही भारत का सर्वोदय है।

Bhartiya Kisan par nibandh

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परिश्रमी

भारत का किसान बहुत परिश्रमी होता है। वह सदियों से अपना काम चतुराई के साथ करता चला आ रहा है। खेत में जब उतरता है तो खून पसीना एक कर देता है। सर्दी- गर्मी किसी भी परिस्थिति में वह कभी कार्य करने से जी नहीं चुराता है। वह स्वभाव से मितव्ययी है। भारतीय किसान को जब उसकी भाषा में कोई अच्छी बात बताई जाती है। वह उसे बड़े चाव से सीखता है और अपनाने की कोशिश करता है।

भारतीय किसान के शरीर और मन में धरती माता क्षमा और देवता बनकर बैठी हुई है। संतोष और परिश्रम में भारतीय किसान संसार में सबसे ऊपर है। उसके सद्गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए। किसान अपने घर को बाँस और बल्लियों, घास और फूल तथा कच्ची ईंटों से बनाता है।

आत्मनिर्भरता

भारतीय किसान के जीवन की सबसे बड़ी कुंजी आत्मनिर्भरता है। वह अपने प्रयोग में आने वाले औजार स्वयं बना लेता है। वह एक कुशल शिल्पी होता है। कई एक तरह की रस्सी वह अपने हाथों से बनाता है। वह सुख-दुख में सभी का साथ निभाता है। वह अपने जीवन की आवश्यकताओं को बहुत ही सीमित रखने की कोशिश करता है। रूखा-सूखा खाकर भी हमारे लिए अन्न उगाता है।

जिस चीज को वह अपने गाँव में तैयार न कर सके और टूट-फूट होने या बिगड़ने पर स्वयं उसका मरम्मत न कर सके। ऐसे यंत्रों को वह कभी पसंद नहीं किया करता है। भारतीय किसानों ने ही धरती को फोड़कर उन गहरे कुओं को बनाया, जिन्हें देवता भी नहीं बना पाए। कुएँ का गोला गलाना आज भी गाँव में चतुराई का काम समझा जाता है।

अभाव

भारतीय किसान के हाथ- पैर में बल है और उसके मन में काम करने का उत्साह है। उसमें अपनी धरती और घर गृहस्थी के प्रति प्रेम है। समझ-बूझ में वह बहुत बड़ा-चढ़ा है। उसे किसी भी तरह बुद्धू नहीं कहा जा सकता। उसका जीवन अभावों से लड़ता है। अभावों और विवशताओं के बीच जन्म लेता है और इसी अवस्था में जीवन-यापन करते हुए एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

भारतीय किसान भाषा और भाव दोनों का धनी है। उसके गीतों में उसके सुख-दुख की भावना प्रकट होती है। गाँव की कहावतों में उसकी पैनी बुद्धि की झलक मिल जाती है। शादी- ब्याह के अवसर पर किसान खुले हृदय से एक दूसरे के हाथ बढ़ाते हैं। गेहूँ पीसना हो तो कितने ही घरों की स्त्रियाँ उसे बाँट लेती है और गाते-गाते पीस डालती है। सहकारिता की भावना पर बनी हुई जीवन पद्धति गाँव में पहले से चली आ रही है।

कथा प्रेमी

भारतीय किसान कथा-वार्ता का प्रेमी रहा है। अपने पूर्वजों के चरित्रों में रुचि है। उसकी आँखें काले अक्षर नहीं देखती, पर कानों और कंठ के द्वारा वह ज्ञान राशि की रक्षा करता आया है। हजारों ग्राम-गीत , हजारों कहानियाँ , लोकोक्तियाँ और ऋतु एवं प्रकृति की बातें किसानों के कंठ में है। किसान का रोम-रोम नृत्य और गीत के लिए फड़कने लगता है। जीवन की रक्षा करनी है तो लोक नृत्य को मरने से बचाना होगा।

उपसंहार

किसान को बाहर से आता हुआ सहानुभूति का स्वर चाहिए। उसके जीवन के सीधे-सच्चे ढाँचे को समझने परखने और संभालने की आवश्यकता है। पृथ्वी के पुत्र किसानों के जीवन का कायाकल्प करने के लिए हमें कमर कसनी होगी। इससे किसानों के लिए चारों और आशा का नया संसार निर्मित होगा। कृषि का नया-नया ज्ञान छनकरकर किसान तक पहुँचेगा।

जो भी हो, आज किसान शब्द सुनते ही एक दुखी, दरिद्र ,भूखे- नंगे तरह- तरह के रोगों और विकारों से ग्रस्त भारतीय जन का रूप नहीं उभरता है। आज उसका चेहरा भरता हुआ , रंग- रूप निखरता हुआ दिखाई देने लगता है। यह भी लगने लगता है कि आज उसे सभी सुविधाएँ सहज ही प्राप्त हो गई है। कहने का तात्पर्य है कि ज्ञान-विज्ञान की सुविधाओं , व्यवस्थाओं और लगन से किए गए परिश्रम से भारतीय किसान के बारे में जो धारणा चली आ रही थी, आज वह पूरी तरह से बदल चुकी है और बदल रही है। भारतीय किसान का रूप दिन-प्रतिदिन उजला होकर निखरता आ रहा है और आशा करते है कि सदैव निखरता ही जाएगा।

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