Mere Jiwan ka lakshya par nibandh
भूमिका
बिना लक्ष्य के मनुष्य का जीवन एक पशु के समान हैं। इस तरह के मनुष्य सिर्फ अपना जीवन खाने-पीने और मौज-मस्ती में ही बर्बाद कर देते हैं। जब जीवन का अंत पड़ाव आता है, तो उसके सामने सिर्फ पश्चाताप के आँसू होते हैं। अतः हमें अपने जीवन में कुछ करने का संकल्प लेकर चलना चाहिए। उसके लिए आरंभ से ही हमें एक लक्ष्य का निर्धारण कर लेना चाहिए।
मनुष्य के जीवन में कई प्रकार के लक्ष्य हो सकते हैं। अपने जीवन में कोई इंजीनियर ,कोई डॉक्टर , कोई व्यापारी तो कोई सरकारी कर्मचारी , नेता , अभिनेता आदि बनना चाहता है। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह कठोर मेहनत करता है। इसके लिए वह उच्च शिक्षा ग्रहण करता है। अतः मैं भी एक लक्ष्य का चुनाव कर आगे बढ़ जाना चाहता हूँ।
मेरा लक्ष्य
शिक्षक का स्थान भगवान से भी ऊँचा माना जाता है। एक शिक्षक ही सही और गलत का रास्ता चुनने की सीख देता है। शिक्षक ही समाज को हर बुराई से बचाता है और हमें एक सर्वगुण संपन्न व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। अतः शिक्षक किसी भी व्यक्ति के लिए एक सच्चा पथ प्रदर्शक होता है। (Mere Jiwan ka lakshya)
मैंने भी यह निश्चय किया है कि मैं एक शिक्षक बनूँगा। आजकल शिक्षक का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा ही वह साधन है जो मनुष्य के जीवन में एक नया सवेरा और बदलाव लेकर आता है और इस बदलाव से ही देश का निर्माण भी हो सकता है। मैं भी एक शिक्षक बनकर अपने देश के भविष्य नन्हे-मुन्ने बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करना चाहता हूँ। खासकर हमारे ग्रामीण क्षेत्र के अशिक्षित बच्चों को शिक्षित कर उनका भविष्य निर्माण करूँगा।
लक्ष्य क्यों
मुझे यह भी ज्ञात है कि सिर्फ लक्ष्य चुन लेने से मैं एक आदर्श शिक्षक नहीं बन सकता। इसके लिए मुझे भी कड़ी मेहनत और लगन से शिक्षित होने की आवश्यकता है। सिर्फ कल्पना करने से ही कोई लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता है। इसके साथ भाग्य का भी होना अति आवश्यक है। महात्मा गाँधी , जवाहरलाल नेहरू ने अपने जीवन में वकील बनने का लक्ष्य लिया था। किंतु भाग्य ने उन्हें राष्ट्र का नायक बना दिया। फिर भी मैं पूरी लगन से विद्या अध्ययन करूँगा। ताकि आगे चलकर मैं एक कुशल शिक्षक बन सकूँ। अतः मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि मैं अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकूँ। जब मैं एक आदर्श शिक्षक बन जाऊँगा। तब गुरु द्रोणाचार्य और चाणक्य की तरह शिक्षा देकर अपने शिष्यों में नैतिक मूल्यों का स्थापना करूँगा।
शिक्षा का अर्थ केवल किताबें पढ़ाना , कुछ परीक्षाएँ पास करा देना ही नहीं हुआ करता। इससे बहुत बड़ा हुआ करता है। वह है बच्चों के मन- मस्तिष्क और तन का भी पूर्ण विकास कर उन्हें भविष्य के स्वस्थ- सुंदर और विकसित विचारों वाले नागरिक बनाना। जब मैं शिक्षक बन जाऊँगा , तो पढ़ाई – लिखाई के अतिरिक्त छात्रों को व्यायाम करने , खेलने-कूदने , समाचार और अच्छी पत्र पत्रिकाएँ पढ़ने की प्रेरणा और उत्साह हमेशा देता रहता रहूँगा। ताकि आगे चलकर वे हर प्रकार से स्वस्थ नागरिक बन सके। नागरिक बनकर घर-परिवार के साथ-साथ समाज , देश और राष्ट्र के प्रति भी कई तरह के कर्तव्य निभाने पड़ते हैं। क्योंकि छात्र जीवन इस प्रकार की सभी तैयारियाँ करने का जीवन हुआ करता है, सो यदि मैं शिक्षक बन जाऊँगा, तो अपने छात्रों को इस प्रकार की शिक्षा भी दूँगा कि वे भविष्य की इन सारी बातों के लिए भी तैयार हो सके।
निष्कर्ष
वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोषों में कुछ परिवर्तन कर अपने शिष्यों को किताबी कीड़ा नहीं बनने दूँगा। मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्य समाज से अशिक्षा को जड़ से मिटाना ही होगा। यदि मैं थोड़ी सी भी इस समस्या को हटा सका, तो मुझे बहुत संतोष प्राप्त होगा। मैं हर शिक्षित व्यक्ति को देख कर ही खुश हो जाऊँगा।