पुस्तकों का महत्व पर निबंध : Essay on importance of books

Essay on importance of books

भूमिका

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने पुस्तकों के महत्व पर लिखा है कि तोप , तीर , तलवार में जो शक्ति नहीं होती ; वह शक्ति पुस्तकों में रहती है। तलवार आदि के बल पर तो हम केवल दूसरों का शरीर ही जीत सकते हैं , किंतु मन को नहीं । लेकिन पुस्तकों की शक्ति के बल पर हम दूसरों के मन और हृदय को जीत सकते हैं । ऐसी जीत ही सच्ची और स्थायी हुआ करती है , केवल शरीर की जीत नहीं ! (importance of books)

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पुस्तकों से लाभ

पुस्तकों का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है , क्योंकि पुस्तकें मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल करती हैं । अच्छी पुस्तकों के अध्ययन से मनुष्य अज्ञानी से ज्ञानी बन सकते हैं । पुस्तकें मनुष्य को पथभ्रष्ट होने से बचाती हैं । श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य और समाज का मार्गदर्शन करती है । पुस्तकों का हमारे मन मंदिर में स्थायी प्रभाव पड़ता हैं ।

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पुस्तकों के प्रभाव

विश्व के इतिहास के पन्नों को खुलकर देखने से पता चलता है कि जितने भी व्यक्ति महान बन अपनी पहचान बनाई हैं, उन पर किसी – न – किसी भी रूप में श्रेष्ठ पुस्तकों का गहरा प्रभाव था। विद्वान पुरुष के लिए उसकी पुस्तकें ही उसकी संपत्ति होती हैं। महात्मा गाँधी गीता से अत्यधिक प्रभावित थे।

पुस्तकें देश की अमर निधि

किसी जाति के उत्थान और पतन का पता उसके साहित्य से चलता है । भारतीय संस्कृति कितनी समृद्ध थी , इसका पता हमें उसके साहित्य से ही चलता है । आदिकाल साहित्य की दृष्टि से भारत का आरंभिक काल है क्योंकि इस काल में देश भाषा काव्य में प्रमुख आठ पुस्तकों की रचना हुई— खुमान रासो , बीसलदेव रासो , पृथ्वीराज रासो , जयचंद्रप्रकाश , जयमयंकजसचन्द्रिका , परमाल रासो , खुसरो की पहेलियाँ और विद्यापति की पदावली । चंद्रवरदाई इस युग के महान साहित्यकार थे । जिन्होंने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक हिंदी के प्रथम पुस्तक का रचना किए।

पुस्तकें अस्त्र हैं

विचारों के आदान-प्रदान में पुस्तकें ही हमारे अस्त्र हैं । पुस्तकों में लिखे विचार संपूर्ण समाज की काया पलट देते हैं । आज का संसार विचारों का ही संसार है । पुस्तकें जहाँ सांप्रदायिकता के विष को फैलाने के लिए अहम भूमिका निभाती हैं , भाई – भाई के बीच ईर्ष्या और द्वेष की आग भड़काती है , समाज की सुख – शांति को भंग करती हैं , वहाँ अच्छी पुस्तकें समाज में नवीन चेतना का संचार करती हैं और समाज में जागृति पैदा करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती करती हैं ।

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आदमी का दोस्त

एक महान विद्वान का कथन है कि ” सच्चे दोस्तों के बाद उत्कृष्ट पुस्तकों का चुनाव ही हमारी सर्वप्रथम एवं प्रधान आवश्यकता है। जो चुनाव पुस्तकें हमें अधिक विचार-विमर्श करने को मज़बूर करती हैं , वहीं पुस्तकें हमारी सबसे बड़ी सहायिका हैं । पुस्तकें मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । वे मनुष्य को सच्ची आत्मसंतुष्टि प्रदान करती है । पुस्तकें ऐसी मार्गदर्शक हैं , जो दंड नहीं देतीं . नाराज नहीं होती , हमसे कुछ बदले में नहीं लेतीं , अपितु अपना अमृत तत्त्व देकर संतोष कर जाती है ।

निष्कर्ष

जिस प्रकार भोजन का अर्थ केवल पेट भरना नहीं, उसी प्रकार पुस्तकों के अध्ययन और सृजन का अर्थ भी केवल पढ़ना एवं मनोरंजन प्राप्त करना नहीं है। सड़ा , गला और बासी भोजन शरीर को अस्वस्थ और रोगी बना कर समाप्त कर डालता है , उसी प्रकार घटिया पुस्तकें जीवन और समाज के तन-मन को रोगी बना कर नष्ट कर देता है। अतः स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक संतुलित भोजन के समान अच्छे पुस्तकों की रचना और अध्ययन करके ही जीवन समाज की उचित रक्षा की जा सकती है। पुस्तकों का वास्तविक ज्ञान और मूल्य उसका महत्व भी तभी बना रह सकता है।

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