मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध : meri priya pustak par nibandh

meri priya pustak par nibandh

भूमिका

पुस्तकें पढ़ना मेरी प्रमुख आदत और मनोरंजन का साधन है। मैं हिंदी साहित्य का नियमित पाठक हूँ। साहित्य की विधाओं में मेरी समान रुचि है। मैंने कई कविता , नाटक , उपन्यास और कहानी आदि विविध विधाओं की रचनाएँ पढ़ी है। उनमें से बहुत सी मुझे उपयोगी और मनोरंजक लगी। उनमें से कुछ को बार-बार पढ़ने को जी चाहता है। कुछ का मैं प्रबल प्रशंसक हूँ और कुछ ने मुझे अत्यधिक प्रभावित भी किया है। किंतु जिस पुस्तक ने मुझे अपना भक्त बना लिया , वह केवल एक ही रचना है और वह है:– तुलसीदास रचित रामचरित्रमानस। (meri priya pustak nibandh)

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विषय वस्तु

रामचरित्रमानस में मुझे सबसे प्रिय लगता है उसकी कथावस्तु, जिसमें स्थान – स्थान पर तुलसीदास जी के सहज नाटकीय रचना-कौशल और अद्भुत सूझबूझ के दर्शन होते हैं। तुलसी जी की शैली कथा कहने की संवाद शैली है। राम चरित्र मानस का आरंभ संवादों से होता है, मध्य और अंत भी संवादों से ही होता है। कथा के आधारभूत तीन संवाद हैं :–परशुराम – लक्ष्मण संवाद , अंगद – रावण संवाद , रावण – मंदोदरी संवाद आदि। संवादों के माध्यम से रामचरित्र मानस की कथा अत्यंत रोचक , ज्ञानवर्धक एवं जीवनोपयोगी बन गई है।

मार्मिक स्थलों के चयन में तुलसी जी की दृष्टि बड़ी पैनी है। उन्होंने राम चरित्र मानस में चुन-चुन कर ऐसे प्रसंग रखे हैं, जो पाठक के हृदय को द्रवित करने के लिए , प्रेरणा देने के लिए पर्याप्त है। रामवनवास , भरतमिलाप , सीताहरण शबरी-चर्चा आदि इसी प्रकार के अत्यधिक मार्मिक प्रसंग है। तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस को सात कांडों में विभक्त किया है — बालकांड अयोध्याकांड , अरण्यकांड , किष्किंधा कांड , सुंदरकांड , लंकाकांड और उत्तरकांड। इनमें वर्णित विषयों की विविधता के कारण पाठक का मन कहीं भी नहीं ऊबता है। जीवन का रस और सिद्धि लेता हुआ वह निरंतर आगे बढ़ता जाता है।

कलापक्ष और भावपक्ष

तुलसी रचितरामचरित्रमानस में कथावस्तु के अलावा कलापक्ष और भावपक्ष अन्य दो प्रमुख पहलू हैं। कला पक्ष के अंतर्गत रस , अलंकार और छंद प्रमुख है। इसमें मुख्यतः श्रृंगार , वीर और शांत रसों का समावेश हुआ है। शृंगार रस का ऐसा सात्विक और मन को प्रसन्नचित्त करने वाला वर्णन मुझे अन्यत्र किसी पुस्तक में देखने को नहीं मिला। शांत और करुण रस तो मानो सारे मानस में आरंभ से अंत तक ओतप्रोत है। तुलसी जी ने सबसे लोकप्रिय छंद दोहा और चौपाई से रामचरित्रमानस की रचना करके इसकी सुंदरता को सौ गुना अधिक बढ़ा दिया है।

रामचरित्रमानस में अलंकारों का प्रयोग काव्य सौंदर्य के लिए किया गया है। इसके लिए कवि को यत्न नहीं करना पड़ा। अलंकार स्वाभाविक रूप से काव्य कला के अंग बन गए हैं। इनसे वर्णन सुंदर , सरल और प्रभावी बन गए हैं। यथास्थान नदी , वन , पर्वत आदि के प्राकृतिक वर्णनों से रामचरित्रमानस की रोचकता कई गुना बढ़ गई है।
रामचरित्र मानस की भाषा अवधि है परंतु तुलसीदास ने तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है।

प्रमुख पात्र

रामचरित्रमानस के कलापक्ष और भावपक्ष एक दूसरे के पोषक हैं। इसमें जीवन का सर्वांगीण चित्र प्रस्तुत किया गया है। राम को एक आदर्श नायक मानकर उस के माध्यम से गृहस्थ , सामाजिक और धार्मिक जीवन की झाँकी दिखाई गई है। रामचरित्रमानस में राम और सीता जैसे आदर पति-पत्नी हैं। लक्ष्मण और भरत जैसे आदर्श भाई , कौशल्या जैसी आदर्श माता , हनुमान जैसा सेवक , विभीषण जैसा मित्र और अयोध्या की प्रजा जैसी जनता है।

तुलसी ने राम चरित्रमानस को अपने समय के समाज का दर्पण तो बनाया ही है, युवाओं के आदर्श समाज के जीवन का स्वरूप भी साकार कर दिया है। राजा – प्रजा का आदर्श रूप यहाँ स्पष्ट रेखांकित किया गया है। रावण का अत्याचार पूर्ण राज्य तत्कालीन राज्यों का प्रतीक है। इसके स्थान पर राम राज्य के रूप में उन्होंने युगों-युगों के लिए ही आदर्श राज्य की कल्पना की है। उन्होंने काव्य के माध्यम से लोक जीवन को सामान्य स्थितियों से ऊपर उठाने का यत्न किया।

निष्कर्ष

रामचरितमानस में भक्ति , ज्ञान और कर्म का समन्वय है। धर्म और साहित्य में एकरसता है। दर्शन और जीवन में अभिन्नता है। उसमें समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए उत्कृष्ट संदेश और प्रेरणा है। इन तथ्यों के आलोक में मुझे तो हिंदी साहित्य में रामचरित्रमानस जैसा दूसरा ग्रंथ दिखाई नहीं देता। मेरे लिए यह सबसे प्रिय पुस्तक है। मेरा यह प्रिय पुस्तक मुझे और भारत को ही नहीं , वरन सम्पूर्ण विश्व मानव के लिए एक अभूतपूर्व और चिरंतन देन है। यह बात विश्व के सभी लोग नम्र और मुक्त भाव से स्वीकार करते हैं।

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