हनुमा विहारी की जीवनी|Hanuma Vihari ki jivani

Hanuma Vihari ki jivani

भूमिका

सनराइजर्स हैदराबाद और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के बीच आईपीएल मैच चल रहा था। टॉस जीतकर बैटिंग करते हुए बेंगलुरु ने कोहली के धीमे 46 रन और हैरीकन्स के 44 रनों की मदद से 20 ओवर में मात्र 130 रन बनाए। छोटे लक्ष्य का पीछा करते हुए हैदराबाद की शुरुआत धीमी रही। हैदराबाद का वह पिच टेस्ट के 5वें दिन की तरह लग रही थी। 20 रन पर जब हैदराबाद का दूसरा विकेट गिरा। तब एक दुबला पतला साँवले रंग का बल्लेबाज बल्लेबाजी करने उतरा। एक तरफ से विकेट गिरते रहे, तो दूसरी छोर पर वह बल्लेबाज पिच के दोहरे उछाल के कारण परेशान करती गेंदों के बीच डटा रहा। उस बल्लेबाज की 44 रनों की जुझारू पारी ने हैदराबाद को वह मैच जीता दिया।

जिस पिच पर क्रिस गेल, कुमार संगाकारा , दिलशान और कैमरून व्हाइट जैसे खिलाड़ी फ्लॉप रहे। उस पर 20 साल के लड़के ने सबके ज़ेहन में अपनी छाप छोड़ दी और उस मैन ऑफ दी मैच जुझारू खिलाड़ी का नाम हनुमा विहारी था। वही हनुमा विहारी जिन्होंने 11 जनवरी 2021 के सिडनी टेस्ट मैच के अंतिम दिन खुटा ही गाड़ दिया। वही हनुमा विहारी जो चोटिल होने के बाद भी मैदान छोड़कर नही लौटे।

Hanuma Vihari ki jivani

जन्म

हनुमा विहारी का जन्म 13 अक्टूबर 1993 को काकीनाडा आंध्र प्रदेश के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम सत्यनारायण था। जो अब इस दुनिया में नहीं है। माता जी का नाम विजयलक्ष्मी है। हनुमा की एक बहन है जिसका नाम वैष्णव है। हनुमा के पिता जी सत्यनारायण तेलंगाना की सिंगरेनी कोल फील्ड में नौकरी किया करते थे।

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क्रिकेट की शुरुआत

सिंगरेनी की स्टाफ कॉलोनी में हनुमान ने क्रिकेट खेलना शुरू किया। हनुमा को क्रिकेट खेलना और देखना शुरु से बहुत सुकून देता था। क्रिकेट के प्रति लगाव को देखते हुए चाचा आर. प्रसाद और माता विजयलक्ष्मी के ज़िद्द पर पिता उन्हें हैदराबाद के क्रिकेट एकेडमी भेजने के लिए तैयार हो गए। 8 साल के हनुमा को अकेले रहने पर होने वाली परेशानियों से बचाने के लिए माता और बहन वैष्णव उनके साथ हैदराबाद में शिफ्ट हो गए। हैदराबाद पहुँचकर हनुमा सेंट जॉन एकेडमी से जुड़ गए। जहाँ उनकी मुलाकात अपने पहले कॉच आर. श्रीधर से हुई।

कॉच आर. श्रीधर की निगरानी में बल्लेबाजी पर काम करते हुए हनुमा के खेल का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ने लगा। स्कूल के लिए किए गए प्रदर्शन के चलते हनुमा का चयन अंडर-13 के लिए हो गया। वो बच्चा जिसने 12 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया। वो अपने स्कूल को खिताबी जीत दिलाकर लौटा। 12 साल की उम्र में खेली वो पारी हनुमा के चरित्र को दर्शाती है। ज़िद्दी और दृढ़ निश्चय चरित्र जो हमने 2021 सिडनी टेस्ट के 5वें दिन देखा।

अंडर -19 टीम में चयन

हनुमा विहारी का बेहतर होता प्रदर्शन उन्हें हैदराबाद अंडर-19 टीम तक लेकर गया। हनुमा साल 2012 में उन्मुक्त चंद की कप्तानी में अंडर-19 विश्व कप में भारत को जीत दिलाने वाली टीम का हिस्सा थे। 2014-15 में क्लब क्रिकेट खेलने इंग्लैंड गए। हैडन क्रिकेट क्लब की तरफ से खेलते हुए उन्होंने 6 शतक में अपनी उच्च स्तरीय क्षमता का सबूत दिया। 2010 में हैदराबाद की ओर से रणजी ट्रॉफी में डेब्यू करने वाले हनुमा ने 2016 में आंध्रा रणजी टीम में शामिल हो गए।

आंध्रा की टीम उनके लिए भाग्यशाली साबित हुई। 2017 -18 के घरेलू सत्र में बिहारी ने आश्चर्यजनक औसत से छह मैचों में 752 रन बनाए। उस दौरान उड़ीसा के खिलाफ खेली गई 302 रन की रिकॉर्ड तोड़ पारी की चर्चा चल ही रही थी कि उस साल विहारी ने रणजी के विजेता विदर्भ के विरुद्ध रेस्ट ऑफ इंडिया की ओर से खेलते हुए 183 रन की यादगार पारी खेली।

भारतीय टीम में चयन

कई सालों से भारतीय अंतरास्ट्रीय टीम का दरवाजा खटखटा रहे विहारी के इस प्रदर्शन ने उन्हें अंत में साल 2018 में इंग्लैंड दौरे के लिए टीम में जगह दिला दी। टेस्ट मैचों की श्रृंखला के अंतिम दिन डेब्यू करने उतरे हनुमा विहारी ने शानदार 56 रन बनाए। हालांकि भारत वह मैच 118 रनों से हार गया। लेकिन लक्ष्मण के संन्यास के बाद खाली चल रहे छह नंबर के स्थान के लिए बिहारी मजबूत दावेदारी पेश कर गए।

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वेस्टइंडीज दौरा

साल 2018-19 में साधारण ऑस्ट्रेलियाई दौरा गुजरने के बाद हनुमा वेस्टइंडीज पहुँचे। बचपन से हैदराबाद की टर्निंग और धीमी पिचों में खेले विहारी को वेस्टइंडीज की धरती रास आयी। हनुमा ने वेस्टइंडीज में खेले दो मैचों की चार पारियों में 96.3 की औसत से 289 रन बनाए। इस दौरान विहारी ने दो अर्ध शतक और अभी तक के अंतरास्ट्रीय कैरियर का एकमात्र शतक लगाया।

हनुमान के पहले शतक से खुश उनकी माँ विजयलक्ष्मी ने बताती है कि मैं इस मैच में हनुमा की बल्लेबाजी के दौरान सोई ही नहीं। क्योंकि पिछले मैच में सो गई थी, तो वह 7 रनों से अपने शतक से चूक गया था। हनुमान ने सबीना पार्क में खेली गई अपनी 111 रनों की पारी को अपने पिता को समर्पित करते हुए कहा कि मैं 12 साल का था, जब वह गुजर गए। मैंने तभी से ठान लिया था कि मैं अपना पहला शतक उनके ही नाम करूँगा। मुझे उम्मीद है कि पापा जहाँ भी होंगे मुझ पर उन्हें गर्व होगा।

यादगार सिडनी टेस्ट

अब हनुमा भारतीय टेस्ट टीम के नियमित सदस्य बन चुके हैं। विराट कोहली ने विहारी को टीम में शामिल करने पर कहा था। हनुमा को टीम में लेने पर टीम ज्यादा बैलेंस में रहती है। क्योंकि वह हमें नंबर छह पर बल्लेबाजी के साथ ऑफ स्पिन गेंदबाजी का अतिरिक्त विकल्प देते हैं। लेकिन बिहारी के उस वेस्टइंडीज दौरे के बाद से खेली 9 पारियों में मात्र 16.77 की औसत से 151 रनों में सिमट गई। विदेशी पिचों पर बिहारी का यह लचर प्रदर्शन उनके लिए चुनौती था। लेकिन इन सब में एक सकारात्मक बिंदु यह था कि विहारी को शुरुआत मिल रहा था।

जब विहारी सिडनी टेस्ट के 5वें दिन ऋषभ पंत के आउट होने के बाद बल्लेबाजी करने उतरे, तो उनके ऊपर खुद को साबित करने और भारत को मैच ड्रॉ कराने का दोहरा दबाव था। विहारी टच में लग रहे थे। उनकी हैंडस्प्रिंग खींच गयी। उधर पुजारा आउट हो गए, भारत को हार साफ दिखाई देने लगी। लेकिन चोटिल होने के बावजूद भी हनुमान ने अश्विन के साथ मिलकर दीवार की तरह डटकर बल्लेबाजी की और हेजलवुड, मिचेल स्टार्क ,पैट कमिंस जैसे गेंदबाजों के सामने विहारी चट्टान की तरह खड़े नजर आए और एक तय लग रही हार को ड्रॉ मैच में बदल दिया। विहारी द्वारा खेली गई 161 गेंदों में 23 रनों की यह पारी की मिसाल लंबे वक्त तक दी जाएगी। विहारी की यह पारी जिंदगी जीने की राह दिखाती है।

निष्कर्ष

हनुमा विहारी भारतीय क्रिकेट टीम के एक उभरते हुए खिलाड़ी है, जो बहुत कम समय में सफलता की ऊँची चोटी को छूने वाले व्यक्ति हैं। विहारी का जीवन सिखाता है कि परिस्थियाँ चाहे आपके विरुद्ध क्यों न हो, शरीर साथ छोड़ रहा हो, लोगों ने आप से उम्मीद लगाना छोड़ दी हो। लेकिन आपको खुद पर भरोसा है तो आपको सफलता के साथ वापस लौटने से कोई नहीं रोक सकता। ये सभी बातें विहारी के लिए सही साबित होती है।

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