मेरी प्रथम रेल यात्रा निबंध : Meri Pratham Rail Yatra Essay

Meri Pratham Rail Yatra Essay

भूमिका

जीवन में कई बार कुछ ऐसी बातें हो जाती है ,जो भुलाने की कोशिश करने पर भी हमेशा याद आती रहती है। जब मैंने अपने जीवन में पहली बार रेल की यात्रा की थी, तब मुझे कुछ ऐसा अनुभव हुआ था कि उसे याद करके आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाया करते हैं।

Meri Pratham Rail Yatra

जाने की तैयारी

आखिर वह दिन आ ही गया। घर के सभी सदस्य जाने की तैयारी में लगे हुए हैं। माताजी नास्ता बना रही थी। दीदी उनकी सहायता कर रही थी। कुछ देर में सभी कुछ तैयार हो गया। मुझे भी नए कपड़े पहना कर तैयार कर दिया गया। थोड़ा नास्ता-पानी करने के बाद, साथ ले जाने वाला सामान अपने ही सिर कंधों पर लादकर हम लोग चल दिए। रेलवे स्टेशन कोई 10-12 किलोमीटर दूर था। वहाँ तक पैदल चलकर ही जाना था। इस कारण सभी बहुत सवेरे ही चल दिए। लगभग दो-तीन घंटे चलने के बाद हम सभी रेलवे स्टेशन पहुँच गए। (Meri Pratham Rail Yatra)

स्टेशन का दृश्य

जब मैंने दूर तक फैली लोहे की पटरियों को देखा, तो चौक गया। मैंने झुक कर उन्हें छुआ और दूर तक देखते हुए सोचता रहा, पता नहीं इन्हें यहाँ कौन बिछा गया होगा? वह इन्हें कहाँ से लाया और कैसे बिछाया होगा? मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। फिर मैंने एक पटरी पर एक तरफ कुछ मालगाड़ी के डिब्बे खड़े देखे। भागकर उनके पास पहुँचा। फिर हाथ से छू-छूकर उन्हें देखता और हैरान होता रहा। इसी प्रकार पटरियों के आसपास बिछी तारों , दूर से दिखाई देने वाले सिगनल-पोल आदि देख कर भी मैं हैरान होता रहा।

मेरे लिए यह सभी कुछ एक अजूबा था। मनोरंजक और डराने वाला दोनों ही था। मैं उन सब को घूम फिर कर देख ही रहा था कि तभी पिताजी ने मुझे पुकार कर कहा:- हमारे पास आओ , रेल आ रही है। उनकी पुकार सुनकर मैं भागकर उनके पास गया। कुछ क्षण वहाँ खड़े रहकर जब मैंने पीछे की तरफ देखा, तो वहाँ लगे जंगले मुझे नए और अच्छे लगे। भागकर वहाँ जाकर उन्हें देखने लगा।

तभी इधर-उधर खोज भरी नजर से ढूँढने के बाद मुझे जंगले के पास खड़ा देख पिताजी ने फिर पुकार कर पास बुला लिया। मेरे पास आ जाने पर पिताजी ने समझाते हुए कहा:- अब रेल आने वाली है। कहीं इधर-उधर जाना नहीं, हमारे पास ही रहना। फिर जब हम चढ़ने लगे, तो कोशिश करके हमारे साथ ही रेल के डिब्बे में घुस जाना। ध्यान रहे बड़ी भीड़ होती है। सुनकर मैं ने सिर हिला दिया और जिधर सब लोग देख रहे थे, उधर ही देखने लगा।

रेल का आगमन

थोड़ी देर बाद वहाँ धुआँ उठता हुआ दिखाई दिया। कुछ देर बाद छुक-छुक की आवाज भी सुनाई देने लगी। यह सब देख सुन कर मेरा डर अनजाने ही बढ़ने लगा। तभी कोई कह उठा — आ गई रेल। सुनकर मैंने भी उधर देखा कि वह पास आती जा रही है। उसे पास आता देख अनजाने ही मेरा दिल धक-धक करने लगा। वह आगे आ रहा था और मेरे पैर पीछे जंगले की ओर बढ़ रहे थे। रेल का इंजन जब प्लेटफार्म के क्षेत्र में प्रवेश कर गया , तो मैंने भागकर पीछे जा जंगले को मजबूती से पकड़ लिया।

तब तक रेल के डिब्बे मेरे सामने से गुजरने लगे थे। उनके शोर और हलचल से मुझे सारा प्लेटफार्म , सारी धरती और सारा वातावरण हिलता हुआ प्रतीत होने लगा। लोग बुरी तरह हाँफते – चिल्लाते उसके डिब्बे से निकलने और भीतर घुसने की जी तोड़ कोशिश करने लगे थे। मेरे पिताजी और परिवार के सभी लोग भी एक डिब्बे में समान सहित घुसने की कोशिश कर रहे थे। मैं भौंचक्का-सा वहीं खड़ा-खड़ा देखता रहा। मैं रेल में नहीं चढ़ सका था।

रेल के अंदर का दृश्य

मैंने देखा पिताजी कोशिश करके भी रेल से बाहर नहीं आ पा रहे थे। तब तक दरवाजा पूरी तरह से सामान और सवारियों से खचाखच भर चुका था। पिताजी की घबराई आवाज सुनकर माताजी भी मेरा नाम सुन -सुनकर चिल्लाने रोने लगी थी। तभी मैं जोर से भागा और बाहें उठा कर कहने लगा, मुझे उठा लो, पिताजी उठा लो। पर तब तक रेल चलने लगी थी। पता नहीं कहाँ से अचानक एक कुली ने मुझे उठाया और सामान की तरह ही चलती रेल में खिड़की के रास्ते पटक दिया। सारे परिवार ने शायद चैन की साँस ली। किन्तु मैं गुमसुम-सा देखता रहा।

एक सज्जन को मुझ पर दया आई, उन्होंने खिड़की के पास रखे अपने सामान के ढ़ेर पर मुझे बिठा लिया। कुछ देर बाद मैं ऐसे हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैं खिड़की के बाहर बड़े चाव से देखने और हैरान होने लगा कि रेल तो आगे की तरफ भागी जा रही है। परंतु रास्ते में आने वाले पेड़-पौधे आदि लगता था पीछे की तरफ भागे जा रहे हैं। यह सभी कुछ मेरे लिए वास्तव में बड़ा आश्चर्यजनक था। फिर जब डिब्बे के भीतर देखता तो लगता जैसे वहाँ सभी कुछ ठहरा हुआ है। कुछ लोग लड़-झगड़कर एक दूसरे को धकेल देते हुए बैठ रहे थे।

निष्कर्ष

अपनी पहली रेल यात्रा की याद मुझे रोमांचित कर जाती है। मैं जब भी रेल पर सवार होता हूँ, तो आपकी पहली रेल यात्रा अवश्य याद आती है। अब मैं बड़ा हो गया हूँ। परिवार के सभी लोग गाँव से आकर एक छोटे से शहर में रहने लगे हैं। अब जब भी रेल की सवारी करता हूँ, पहले से बढ़ा हुआ किराया देना पड़ता है। हर बार भीड़ भी पहले से कहीं अधिक दिखाई देती है। इसे आप रेलवे विभाग द्वारा दी गई सुविधाओं को कहेंगे तो निश्चित रूप से कर सकते हैं।

Meri Pratham Rail Yatra

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