भारतीय संसद पर निबंध : bhartiya sansad par nibandh

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भूमिका

15 अगस्त 1947 को हमें अंग्रेजों से मुक्ति मिली थी और हमने स्वतंत्रता की खुली हवा में साँस लिया था। 1997 में इसी स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती मनाई गई। 26 जनवरी 1950 को हमारे देश के लिए बनाया गया अपना संविधान लागू हुआ था जिसके द्वारा यहाँ गणतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुई।
हमारे देश में जनतंत्र शासन प्रणाली अपनाई गई है। हमारे देश का जनतंत्र विश्व में सबसे बड़ा है। इसे प्रजातंत्र भी कहते हैं। प्रजातंत्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि शासन कार्य चलाते हैं। इस प्रकार राज्य की विधानसभाओं और केंद्र के लिए लोकसभा के चुनाव होते हैं। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है उसी की सरकार बनती है।

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संसद के अंग

हमारी संसद के दो अंग हैं––लोकसभा और राज्यसभा । इनके सदस्य “संसद सदस्य” कहलाते हैं। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव सीधे जनता के द्वारा होता है। कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 25 वर्ष हो चुकी हो। लोकसभा का चुनाव लड़ सकता है। लोकसभा के लिए जनप्रतिनिधि 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 545 है।

राज्यसभा के सदस्य राज्यों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। इनकी अधिकतम संख्या 250 तक हो सकती है। इनकी सदस्यता अवधि 6 वर्ष होती है। हर 2 वर्ष बाद एक तिहाई सदस्यों का सेवाकाल समाप्त हो जाता है। लोकसभा और राज्यसभा की बैठकों को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोकसभा में अध्यक्ष तथा राज्यसभा में सभापति की व्यवस्था संविधान में है। सभापति भारत का उपराष्ट्रपति ही होता है।

संरचना

संसद भवन को “पार्लियामेंट हाउस” भी कहा जाता है। यह भवन हल्के बदामी रंग के पत्थरों से बना है। यह एक गोलाकार इमारत है। इसके आसपास राष्ट्रपति भवन , केंद्रीय सचिवालय तथा अन्य कार्यालय हैं। संसद की कार्यवाही देखना एक रोचक एवं ज्ञानवर्धक अनुभव है। इसे देखने के लिए प्रवेश पत्र बनवाना पड़ता है।

सत्र के दिनों में संसद का अधिवेशन प्रतिदिन प्रातः 11:00 बजे प्रारंभ होता है। अध्यक्ष एक ऊँची कुर्सी पर बैठते हैं। उनके आने की सूचना पहले ही दे दी जाती है। वही सारी कार्यवाही का संचालन करते हैं। अध्यक्ष के दाएँ ओर उस दल के सदस्य बैठते हैं जिनकी सरकार होती है और बाएँ ओर विरोधी पक्ष के सदस्य। प्रत्येक दल का नेता सबसे आगे बैठता है।

संसद का प्रश्नकाल

11:00 बजे से 12:00 बजे तक का समय प्रश्नकाल कहलाता है। संसद सदस्य ऐसे प्रश्नों की लिखित सूचना कई दिन पहले अध्यक्ष के पास भेज देते हैं, जिनका उत्तर वे प्रश्नकाल में चाहते हैं। ये प्रश्न देश की विभिन्न समस्याओं से संबंधित होते हैं। अध्यक्ष के कार्यालय से उन्हें संबंधित मंत्रालयों में भेज दिया जाता है। मंत्रालयों द्वारा इनके उत्तर अत्यंत परिश्रम और सावधानी के साथ तैयार किए जाते हैं। इन प्रश्नों पर संसद सदस्य पूरक प्रश्न भी पूछ सकते हैं। कई बार प्रश्नकाल में मंत्री और सदस्यों के बीच अच्छी खासी झड़प हो जाती है।

प्रश्नकाल की समाप्ति पर अध्यक्ष की अनुमति लेकर संसद सदस्य ऐसी समस्याएं उठाते हैं, जिन पर तत्काल विचार करना आवश्यक हो। संसद के सदस्य अध्यक्ष की अनुमति लेकर ‘काम रोको प्रस्ताव’ रखते हैं। अगर उनका प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो उस दिन का निर्धारित कार्य रोक कर उस विषय पर विचार आरंभ कर दिया जाता है।

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कार्य

संसद का सबसे प्रमुख कार्य संपूर्ण देश हेतु कानून बनाना है। किसी कानून को बनाने का विधेयक सरकार की ओर से भी और स्वतंत्र रूप से सदस्यों की ओर से भी रखा जा सकता है। प्रत्येक विधायक के तीन वाचन होते हैं। पहले वाचन में उस विधेयक को केवल प्रस्तुत किया जाता है। दूसरे वाचन में उस पर सामान्य बहस होती है और तीसरे वाचन में उस विधेयक की प्रत्येक धारा पर क्रमशः बहस होती है। तृतीय वाचन के बाद मतदान होता है। यदि सदन में उपस्थित सदस्यों में से आधे से अधिक विधेयक के पक्ष मत दे दें, तो वह पास हो जाता है। इसके पश्चात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर वह कानून बन जाता है। हस्ताक्षर से पूर्व उसे लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों में पास होना आवश्यक है। धन संबंधी कानूनों में लोकसभा को विशेष अधिकार प्राप्त है। वित्तीय विधायकों को लोकसभा में पहले प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

संसद के कई बार विशेष अधिवेशन आयोजित किए जाते हैं। जैसे जब राष्ट्रपति द्वारा किसी सरकार को विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहा जाता है तब निर्धारित अवधि में लोकसभा का विशेष अधिवेशन बुलाया जाता है।

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विशाल पुस्तकालय

संसद भवन में एक विशाल पुस्तकालय है ,जिसमें राजनीति ,इतिहास ,भूगोल , सुरक्षा कानून संबंधी हजारों पुस्तकें हैं। संसद की कार्यवाही का लिखित रिकॉर्ड भी रखा जाता है। पुस्तक रूप में वह भी यहाँ उपलब्ध हो जाता है। अधिकांश संसद सदस्य अनेक स्रोतों से आवश्यक जानकारी प्राप्त करते हैं और अपना भाषण तैयार करते हैं। जो सदस्य जितनी तैयारी करके बोलता है, उसका भाषण उतना ही प्रभावशाली होता है। संसद सदस्य को परिश्रमी , निर्भीक , ईमानदार , सहिष्णु और विद्वान होना चाहिए। कुशल संसद – सदस्यों पर ही प्रजातंत्र की नींव टिकी रहती है। संसद- सदस्य चुनते समय हमें बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। संसद हमारे प्रजातंत्र का मस्तिष्क एवं ह्रदय हैं।

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