रंगों का त्यौहार होली पर निबंध|rangon ka tyohar Holi par nibandh

rangon ka tyohar Holi par nibandh

प्रस्तावना

होली रंगों और उल्लास का त्यौहार है। यह त्यौहार आपसी प्रेम, एकता और सौहार्द्र का जनक है। यद्यपि भारतवर्ष पर्वों और त्यौहारों का देश है। यहाँ प्रतिमाह कोई न कोई त्यौहार मनाया ही जाता है। किंतु जो उत्साह और उमंग, प्रसन्नता और खुशी इस त्यौहार को मनाने में मिलती है, दूसरे त्यौहार के मनाने में नहीं मिलती। यह त्यौहार उन्मुक्तता का त्यौहार है। शीत ऋतु की समाप्ति और बसंत के आगमन से पूरा वातावरण सौंदर्यमय प्रतीत होने लगता है। उसी समय यह त्यौहार जनमानस के मन में नया उत्साह, नई उमंग का संचार कर देता है। प्रत्येक मनुष्य के मन में एक नई ऊर्जा भर जाती है, जीवन जीने की उमंग पैदा हो जाती है।

rangon ka tyohar Holi

मनाने की विधि

होली यौवन की मस्ती का त्यौहार मना गया है। अत्यंत प्राचीन काल से भारत में यह एक लोकोत्सव के रूप में प्रचलित है। यह त्यौहार दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन बालक और बालिकाएँ लकड़ियाँ इकट्ठा करते हैं। वह फाल्गुन की पूर्णिमा की रात होती है। अतः चंद्रमा भी अपने पूरे यौवन पर होता है। पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मंत्र पाठ के अनंतर पवित्र अग्नि जलाई जाती है। कुमारी युवतियाँ भक्ति और श्रद्धा से अग्निदेव को नारियल समर्पित करती है। इसके साथ ही अनेक प्रकार के लोक गीतों की धुन सुनाई देने लगती है।

होली का दूसरा दिन धुलैंडी होता है। सुबह होते ही एक ओर सूर्य का प्रकाश वातावरण में रंग बिखेर देता है, दूसरी ओर धरती पर रंगों की धूम मच जाती है। बच्चों, बूढ़ों, युवकों और युवतियों में एक-दूसरे पर रंग डालने की होड़ सी लग जाती है। वातावरण हुलसित होकर कहकहों से गूंजने लगता है। रंग की पिचकारियाँ खुशी के फव्वारे छोड़ने लगती है। हुड़दंग जीवन में एक नया रंग भर देता है। (rangon ka tyohar Holi)

कोई भी कलाकार भारत के उस विशाल चित्र को चित्रित नहीं कर सकता, जो होली के रंगों में निखर उठता है। होली खेलने के इस दिन सारी वर्जनाएँ एक ओर रख दी जाती है। लजीली युवतियाँ, मुखर युवक, गंभीर राजनीतिज्ञ और कर्मठ मजदूर सभी बाँहों में बाँहें डाले रंगों के छींटों में एकाकार हो जाते हैं। होली ही वह त्यौहार है जिसमें अमीर-गरीब का भेदभाव नहीं रहता। इस दृष्टि से इसे मानवीय उमंगों का मिला-जुला त्यौहार कहा जा सकता है।

पौराणिक कथा

हमारे देश में मनाए जाने वाले प्रत्येक त्यौहार और पर्व के पीछे कोई न कोई प्रेरणादायी कथा भी जुड़ी है। होली का त्यौहार भी इससे अछूता नहीं है। इस त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। वह कथा सत्य है या असत्य किंतु, यह सत्य अवश्य है कि मनुष्य को असत्य को त्याग कर सत्य का, बुराई का अनुसरण न कर अच्छाई का अनुसरण करने का, सामाजिक समरसता का, ऊँच-नीच का अंतर मिटाने तथा प्रेम और उल्लास का संदेश अवश्य देती है।

होली के संबंध में कहा जाता है कि दैत्य नरेश हिरण्यकशिपु ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने की चेतावनी दे रखी थी। किंतु उसके पुत्र प्रह्लाद ने अपने पिता की आज्ञा न मानी। पिता के बार-बार समझाने पर भी प्रह्लाद न माना, तो दैत्य नरेश ने उसे मार डालने के अनेक प्रयास किए, किंतु उसका बाल भी बाँका न हुआ। दैत्य राज हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान मिला था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। अतः वह प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई। लकड़ियों में आग लगा दी गई। प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया। होलिका जल गई, किंतु प्रह्लाद को आँच तक न आई। यह घटना फाल्गुन मास के अंतिम दिन पूर्णिमा को घटित हुई थी। इसलिए उसी दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।

अन्य कथा

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध किया था। एक कथा यह भी प्रचलित है कि ढूंढला नाम की एक राक्षसी थी। उसको पार्वती जी से यह वरदान मिला था कि वह जिस बालक को चाहे खा ले, लेकिन जो बालक ऊधम करते नाचते गाते मिलेंगे, उन्हें वह नहीं खा सकेगी। कहते हैं बालक घुलैंडी के दिन हाथ-मुँह रंगकर विशेष रूप से हुड़दंग मचाया करते हैं। इस प्रकार होली केवल एक त्यौहार नहीं अपितु अनेक घटनाओं और उनके साथ जुड़े विश्वासों का साकार रंगीन रूप भी है। यह त्यौहार लोगों के लिए श्रद्धा, विश्वास और आतंक के विरुद्ध लड़ने का संदेश देता है।

महत्व

यह त्यौहार हर्ष और उमंग का त्यौहार है। इस त्यौहार के दिन लोग आपसी वैर को भूलाकर एक साथ त्यौहार मनाते हैं। लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल फेंकते हैं। बड़े अपने से छोटों को उनके मुँह पर गुलाल लगाकर प्यार भरा आशीर्वाद देते हैं। छोटे बड़ों के माथे पर गुलाल का टीका लगाकर उनका चरण-स्पर्श करते हैं और बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। उस दिन इस रंग-बिरंगे त्यौहार में कोई ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं रह जाता। अधिकांश भारतीय त्यौहार ऋतुओं से भी संबंधित है। होली के अवसर पर किसानों की फसल पकी हुई होती है। किसान उसे देख कर खुशी से झूम उठते हैं। वे अपनी फसल की बालों को आग में भूनकर उनके दाने मित्रों व सगे – संबंधियों में बाँटते हैं।

कुछ लोग अपने आचरण के कारण भी इस त्यौहार की गरिमा को प्रभावित करने लगे। इस दिन शराब आदि मादक और नशीली चीजों का प्रयोग कर उच्छृंखलता का व्यवहार करने लगते हैं। कभी-कभी यह उच्छृंखलता हिंसक भी हो उठती है। नशे की यह उच्छृंखलता सांप्रदायिक संघर्ष का कारण भी बन जाती है। हँसी-खुशी का यह त्यौहार आजीवन शत्रुता में बदल जाता है। (rangon ka tyohar Holi)

उपसंहार

यह त्यौहार खुशी और भाईचारे का संदेश देता है। बुराई के विरुद्ध संघर्ष का संदेश देता है और संदेश देता है एक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण का। यह त्यौहार भारत का सबसे लोकप्रिय और संपूर्ण भारत में मनाया जाने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार के मनाने का दृश्य देखकर पाश्चात्य देशों से आये पर्यटक भी अपने को इसमें शामिल होने से नहीं रोक पाते हैं।

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