Bharat mein aatankwad par nibandh|essay on terrorism

Bharat mein aatankwad par nibandh

भूमिका

आज विश्व का कोई भी ऐसा देश नहीं है जो अंतर्कलह से ग्रस्त नहीं है। संसार के चाहे विकसित देश हो या विकासशील, आज आतंकवाद ने हर जगह अपने पाँव पसार लिए हैं। चाहे अमेरिका हो या रूस हो, इंग्लैंड हो या चीन हो, रूस, फ्रांस सर्वत्र आतंकवाद है। अंतर्कलह जो हिंसा का रूप ग्रहण कर ले वही आतंकवाद है।

Bharat mein aatankwad

भारत में स्वतंत्रता से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले गरम दल के युवकों को अंग्रेजी शासन ने उग्रवादी या आतंकवादी घोषित किया था। किंतु उन दिनों जो हुआ था गुलामी के विरुद्ध आजादी के लिए एक संघर्ष था। किसी भी व्यक्ति या देश को स्वतंत्र रहने का नैतिक अधिकार है। किंतु किसी भी व्यक्ति को या देश को स्वेच्छाचारी रहने के लिए नीतिशास्त्र सम्मति ही नहीं देता। स्वेच्छाचार में अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरे के सुख-चैन को छीनना गलत नहीं माना जाता। बिना किसी की स्वतंत्रता को आघात पहुँचाए अपने स्वतंत्र आचार-विचार की अपेक्षा की जाती है।

आज का उग्रवाद या आतंकवाद अपना पॉकेट भरने के लिए दूसरे का पॉकेट ही फाड़ देने के सिद्धांत पर अपने स्वेच्छाचारी गतिविधियों को संचालित कर रहा है। वे अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए अपने देश के विरोधी देशों से सहायता ले रहे हैं। दूसरे देश में अराजकता , आतंक , खून खराबा करने के लिए एक राष्ट्र उन्हें अत्याधुनिक हथियार और विपुल धन उपलब्ध कराता है। इसी क्रिया को आतंकवाद का नाम दिया गया है। (Bharat mein aatankwad par nibandh)

आतंकवाद का अर्थ

आज आतंकवाद विश्व के लिए एक गहरी समस्या बन गया है। इसका समाधान केवल अहिंसा है। आतंकवाद क्या है? इसकी परिभाषा करना बहुत कठिन है। कोई पराजित देश यदि स्वतंत्र होने के लिए कोई हिंसा पर कदम उठाता है, तो उसे आतंकवाद का नाम दे दिया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि वह स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो जाने पर ही कोई देश या संगठन शस्त्र का आश्रय लेता है। वास्तव में आतंकवाद अव्यवस्था का परिणाम होता है। यह अतिशोषण बनाम अतिपोषण से पनपता है और जनमानस में उपजे असंतोष का समाधान न किया जाए तो वह विस्फोटक रूप ग्रहण कर अनेक रूपों में विनाश करता है। (Bharat mein aatankwad par nibandh)

जैसा कि पहले ही बता चुके हैं कि भारत में आतंकवाद शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजों द्वारा हुई थी। भारत में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता के लिए जो लड़ाई लड़ी, उसे सर्वप्रथम अंग्रेजों ने आतंकवाद का नाम दिया। यद्यपि यह सच नहीं था।

आतंकवाद के कारण

आतंकवाद पनपने के अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण सरकार और जनता के बीच समरसता का अभाव है। जब सरकार के नुमाइंदे अपने स्वार्थ के लिए जनता के हित को नजरअंदाज करने लगते हैं, तो जनता उग्र हो उठती है और उसका परिणाम होता है संघर्ष। प्रारंभ में यह बहुत छोटा होता है और सरकार के लोग इसकी गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए जनता के विरूद्ध कठोर आचरण करते हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में बोडो आतंकवाद इसी का परिणाम था। वहाँ के मूल निवासियों की सरकार से बस इतनी ही माँग थी कि बांग्लादेशी विस्थापितों को असम राज्य से निकाल कर या तो उनके देश भेज दिया जाए या यहाँ से कहीं अन्य स्थान पर बसा दिया जाए। सरकार से इस विषय पर बातचीत चलती रही और कोई परिणाम न निकलते देख वहाँ के लोगों ने सशस्त्र विद्रोह कर दिया। सरकार ने इसका कोई समाधान निकालने के बजाय दमन का रास्ता अपना लिया। बाद में यह आंदोलन विदेशी शक्तियों द्वारा वित्त पोषित और शस्त्र पोषित हो गया। जो भारतीय एकता और अखंडता के लिए सिरदर्द बन गया।

दूसरा कारण पड़ोसी देशों की द्वेषपूर्ण नीति है। भारत की पश्चिमी सीमा पर उपजा आतंकवाद इसी द्वेष का परिणाम है। पाकिस्तान 1947 से पूर्व भारत का अभिन्न अंग था। कुछ नेताओं की पद लिप्सा और अंग्रेजों की कूटनीति के कारण हिन्दुस्तान दो भागों में भारत और पाकिस्तान में विभक्त हो गया। भारत अपनी उदार नीतियों और कर्तव्यनिष्ठा वश जनसंख्या और आर्थिक रूप से पाकिस्तान से बहुत आगे निकल गया। अब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी वहाँ की सरकार के संरक्षण में प्रशिक्षित आतंकवादियों को भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए भेजती है, जो यहाँ आकर अनेक प्रकार की अराजक गतिविधियाँ करते हैं। अब तक भारत में हजारों लोग आतंकवाद का शिकार हो अपने प्राण गँवा चुके हैं।

आतंकवाद का अभ्युदय

आतंकवाद की शुरुआत सर्वप्रथम बंगाल से शुरू हुई। उस समय इसे नक्सलवाद के नाम से जाना गया। धीरे-धीरे नक्सलवाद बंगाल से फैलता हुआ तेलंगाना तक फैल गया। नक्सलवाद क्योंकि कम्युनिस्ट विचारधारा का परिणाम था। इसलिए सामंतवाद को बर्दाश्त नहीं करता था। सामंतवादी प्रवृत्ति के लोग समाजवादी शासन में ही अपनी सामंतवादी प्रवृत्ति जनता पर थोपने का प्रयत्न करने लगे। जागरूक साम्यवादियों ने इसे सहन नहीं किया। बल्कि उनके अत्याचार के विरूद्ध हथियार उठा लिया और सामंतवादियों ने उन्हें नक्सलवादी घोषित कर दिया। तभी से भारत में आतंकवाद का अभ्युदय हुआ।

एक समस्या

अब विश्व के अनेक राष्ट्र आतंकवाद की निंदा करने लगे हैं। आतंकवाद का शिकार अमेरिका में जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर और पेंटागन पर आतंकवादी हमला हुआ, तो आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय समस्या का रूप दे दिया गया। इसके पहले अमेरिका पाकिस्तान के प्रत्येक कारनामों को संरक्षण देता रहा और पाकिस्तान का वित्तपोषण और शस्त्र पोषण दोनों करता रहा।

निष्कर्ष

विश्व के सभी राष्ट्रों को आतंकवाद के नाम पर अपने सारे मतभेद दरकिनार करते हुए एकजुट होकर आतंकवाद का सामना करना चाहिए। क्योंकि आतंकवाद पर अगर शीघ्र नियंत्रण न किया गया तो भारत और अमेरिका जैसी घटनाएँ कभी भी और कहीं भी किसी भी देश में हो सकती हैं।

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