vriksharopan par hindi nibandh
भूमिका
भारतवर्ष प्राकृतिक सुरम्यता, रमणीयता और बासंती वैभव के लिए विश्व में प्रसिद्ध रहा है। विदेशी यात्री, पर्यटक और आक्रान्ता भारत की मनोहारी प्राकृतिक सुषमा को देख कर मुग्ध हो जाते थे और अपने देश को भूलकर भारत को ही अपना देश समझने लगते थे। हिमालय की सघन वन राशि की हरीतिमा, ब्रज की सुखद छाया वाली सघन कुँजें, विंध्याचल के वैभव पूर्ण विपिन, सहरसा दशक के हृदय और नेत्रों को अपने यौवन की ओर आकर्षित कर लेते थे।
प्राचीन परंपरा में वृक्षों का महत्व
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में वृक्षों को देव तुल्य माना गया था। इसलिए उनकी पूजा अर्चना की जाती थी। उनके सुख-दुख का ध्यान रखा जाता था। वर्षा में जलवर्षण के आघात से, शिशिर में तुषारपात और ग्रीष्म में सूर्यातप से उन्हें उसी प्रकार बचाया जाता था जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों को बचाते हैं। देवता की भाँति पीपल के वृक्ष की पूजा-अर्चना होती, स्त्रियाँ व्रत रखकर उसकी परिक्रमा करती है और जलार्पण करती थी। केले के वृक्ष का पूजन भी शास्त्रों में उल्लेखित है। तुलसी के पौधे की पूजा उतना ही महत्व रखती थी जितना की भगवदाराधन।
बेल के वृक्ष के पत्तों की इतनी महिमा थी कि वह भगवान शिव के मस्तक पर चढ़ाए जाते थे। “सर्वरोगहरो निम्ब:” कहकर नीम को प्रणाम किया जाता था। शाम के वक्त किसी वृक्ष के पत्ते तोड़ना मना था। हरे वृक्ष को काटना पाप समझा जाता था। लोग कहते थे कि जो हरे वृक्षों को काटता है उसकी संतान मर जाती है। अशोक का वृक्ष शुभ और मंगलदायक समझा जाता था। तभी तो माता-पिता ने “तरु अशोक मम करहु अशोका” कहकर अशोक वृक्ष से प्रार्थना की थी। यह भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में हमारी वन संपदा का महत्व था। 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के मध्य तक वृक्ष काटने वाले मनुष्य को अपराधी समझा जाता था और वह दंडनीय होता था।
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नवीन युग में वृक्ष विनाश
औद्योगीकरण का नवीन वैज्ञानिक युग आया, ये सारी परंपराएँ पुराण-पंथी समझी जाने लगी। जनसंख्या की वृद्धि से जनता के लिए आवास योग्य भूमि और कृषि योग्य भूमि की खोज शुरू हुई। वृक्षों और वनों को काटकर आवास गृह बनाये गए और खेती हेतु भूमि निर्मित हुए। वृक्षों को बड़े पैमाने पर काटा गया। काटने के बाद प्राप्त भूमि से उद्योगों की स्थापना की गई। फिर भी यदि भूमि बची, तो उसमें आवास गृह बना दिए गए या फिर कृषि के लिए दे दी गई। जिन वृक्षों की शीतल और सुखद छाया में थका राही विश्राम कर लेता था। वहाँ अब कारखानें हैं, उद्योग संस्थान हैं और आवास गृह हैं।
वृक्ष विनाश से हानि
पेड़ों के कटने से भारतवर्ष की जलवायु में परिवर्तन हुआ। प्राकृतिक सुंदरता का अभाव मानव हृदय को खटकने लगा। समय पर वर्षा नहीं होने लगी। भूमि क्षरण प्रारंभ हो गया। वृक्षों से ऑक्सीजन मिलने में कमी आ गई। वातावरण की अशुद्धि का मानव के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ने लगा। ईंधन के भाव तेज हो गए और भूमि की उपजाऊ क्षमता में कमी आ गई। फिर भारत सरकार ने 1950 से “वन महोत्सव” की योजना का कार्यक्रम प्रारंभ किया। नए वृक्ष लगाए जाने लगे। वृक्षारोपण की एक क्रमबद्ध योजना प्रारंभ हुई। परंतु आवश्यक सिंचन और देख-रेख के अभाव में वे लगते भी गए और सूखते भी गए और उखड़ते भी गए। vriksharopan par hindi nibandh
वृक्षों से लाभ
पेड़ों से मनुष्य को बहुत से लाभ हैं। सूर्य के प्रकाश में वृक्ष ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। मानव का स्वास्थ्य ठीक होता है। वृक्षों से तापमान पर नियंत्रण होता है। गर्म और ठंडी हवाओं से हमारी रक्षा करते हैं। वृक्षों से हमें अमूल्य औषधियाँ प्राप्त होती है। वृक्ष हमें ऋतु के अनुकूल स्वास्थ्यप्रद फल प्रदान करते हैं जिनसे हमें आवश्यक विटामिन प्राप्त होते हैं। वृक्षों से हमें श्रेष्ठ खाद भी मिलता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। वृक्षों से टूटकर गिरे फूल- पत्ते एवं डंठल मिट्टी में सड़ जाने के बाद सुंदर खाद के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।
अन्य लाभ
पेड़ों से सबसे बड़ा लाभ है कि वे वर्षा लाने में सहायक होते हैं। वृक्षों के बिना वर्षा का कम हो जाना स्वाभाविक है। वर्षा के अभाव में अधिक अन्नोत्पादन संभव नहीं। वृक्ष देश को मरुस्थल होने से बचाते हैं। जिस भूमि पर वृक्ष होते हैं वहाँ भयंकर घनघोर वर्षा में भूमि क्षरण नहीं हो पाता। क्योंकि वर्षा का जल तीव्र वेग से धरती पर नहीं आ पाता, वृक्ष स्वयं ही उसको अपने ऊपर वहन कर लेते हैं। vriksharopan par hindi nibandh
वृक्ष वर्षा के जल को सोख लेती है। घरेलू कार्यों के लिए ईंधन, गृह निर्माण के लिए लकड़ी और फर्नीचर के लिए लकड़ी भी हमें वृक्षों से ही प्राप्त होती है। गर्मी में वृक्ष ही हमें सुखद छाया प्रदान करते हैं। अनेक वृक्षों की पत्तियाँ पशुओं के चारे के काम में लाई जाती है। ऊँट तो नीम की पत्तियों को बड़े स्नेह से खाता है। काष्ठ शिल्प के लिए तथा कागज बनाने के लिए वृक्ष हमारी सहायता करते हैं। विविध प्रकार के तेल भी हमें वृक्षों की सहायता से ही मिलते है।
वृक्षों से नैतिक शिक्षा
इन से हमें नैतिक शिक्षा भी मिलती है। मनुष्य के निराश जीवन में आशा और धैर्य की शिक्षा वृक्षों से ही मिलती है। मनुष्य जब यह देखता है कि कटा हुआ वृक्ष भी कुछ दिनों बाद फिर हरा-भरा हो उठता है, तो उसकी समस्त निराशाएँ शांत होकर धैर्य और साहस भरी आशाएँ हरी-भरी हो उठती है।
छिन्नोपिरोहति तरु: क्षीणोप्युचीयते पुनश्चन्द्र:।
इति विमृशन्त: सन्त: सन्तप्यन्ते न ते विपदा।।
इस श्लोक के भाव को सुनकर चिंतित व्यक्ति के मुख पर भी मुस्कुराहट आ जाती है। वृक्ष से परोपकार की भी सीख मिलती है। जिस प्रकार वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते। ठीक उसी प्रकार महापुरुषों के ज्ञान भी दूसरों के कल्याण और परोपकार के लिए होती है।
अतः यह सिद्ध सत्य है कि वृक्ष हमारे देश की नैतिक, सामाजिक और आर्थिक समृद्धि के मूल स्रोत हैं।
वृक्षारोपण की योजना का प्रारंभ
1950 में वन महोत्सव योजना का जो कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था, सबल प्रेरणा के अभाव में वह बीच में कुछ शिथिल पड़ गया था। अब देश भर में वृक्षारोपण का कार्यक्रम विशाल एवं व्यापक रूप से चलाया जा रहा है। नगरों की नगर पालिकाओं को वृक्षारोपण की निश्चित संख्या दे दी गई है। विद्यालयों में भी यह कार्यक्रम साकार रूप ग्रहण कर रहा है। 8 नवंबर 1976 को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने ग्रामीण क्षेत्रों में वृक्ष संरक्षण विधेयक पारित किया जिसके अंतर्गत हरे और फलदार वृक्षों की मनमानी कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 12 नवंबर 1976 को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश भेजा था कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी राज्य में जंगलों की कटाई नहीं करने दी जाएगी। यह बात निजी भूमि पर लगे जंगलों पर भी लागू होगी।
जंगलों की कटाई के लिए केंद्रीय कृषि एवं सिंचाई मंत्रालय के वन विभाग के महा निरीक्षक से पूर्व अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इतने पर भी जब हिमालय के सघन वृक्षों की कटाई बंद नहीं हुई तो गढ़वाल की जागरूक जनता ने ‘चिपको आंदोलन’ छेड़ दिया। वहाँ के नेता लोग भूख हड़ताल पर बैठ गये और प्रतिज्ञा की कि हम मर भले ही जाएं पर पेड़ न काटने देंगे। किसी तरह 1979 के प्रारंभ में सरकार के ठोस अनुशासन के बाद वह आंदोलन समाप्त हुआ। इन समाधानों के फलस्वरूप वह दिन दूर नहीं जब कि भारत की वृक्ष और वन-संपदा अपने पूर्व वैभव के साथ पुनः सौरभ विकीर्ण कर उठेगी। सूखे और बाढ़ जैसी भयानक आपदाओं को रोकने के लिए भारत सरकार कठोरता से वन संरक्षण कर रही और वृक्षारोपण कर आ रही है। इसके लिए केंद्रीय और प्रदेशीय मंत्रालयों में पृथक-पृथक मंत्री नियुक्त कर अलग-अलग विभाग खोले गए हैं।