शहरी जीवन : वरदान या अभिशाप|shahri Jeevan par nibandh

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प्रस्तावना

शहरों में विभिन्न प्रकार के आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। रहने के लिए पक्के मकान हैं। चिकित्सा, मनोरंजन, परिवहन, रोजगार, शिक्षा आदि की सभी सुविधा उपलब्ध है। शहर में विद्युत और जल की सुविधा मौजूद है। यहाँ रोजगार के अवसर हैं जिससे प्रत्येक शिक्षित, अशिक्षित व्यक्ति किसी न किसी कार्य में लगकर अपने जीवन की गाड़ी खींच सकता है। शहरों में व्यापारिक केंद्र, औद्योगिक संस्थान , सरकारी कार्यालय, अर्ध सरकारी व व्यक्तिगत कार्यालय लोगों की रोजगार की समस्या को सुलझाने के लिए मौजूद हैं।

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शहरों में सर्व सुविधा संपन्न बड़े-बड़े अस्पताल हैं। अच्छे-अच्छे डॉक्टर हैं। आधुनिकतम मशीनें मानव के लिए जीवनदायिनी शक्ति को धारण किए हुए उसे यमराज के चंगुल से छुड़ा लाती है। शहरों में शिक्षा प्राप्ति के लिए विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय उपलब्ध हैं। ये मानव को ज्ञान चक्षु प्रदान करके विश्व में सभ्य नागरिक कहलाने के योग्य बनाते हैं। शहरों में जीवन की नीरसता को दूर करने के लिए मनोरंजन केंद्र, सिनेमा घर, प्रदर्शनियाँ आदि उपलब्ध हैं।

शहरी जीवन

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 80% से अधिक आबादी गाँवों में बसती है। भारतीयों की आत्मा गाँवों में बसती है। किंतु आज विज्ञान के युग में कुछ परिवर्तन आया है। अनेक नवीन वैज्ञानिक अनुसंधानों के चलते अनेक सुख- सुविधाओं के प्रचलन के कारण लोग अब आकर शहरों में बसना शुरू कर दिए हैं। शहरों के प्रति ग्रामीणों का आकर्षण बढ़ा है। क्योंकि यहाँ बिजली प्रचुर मात्रा में मिलती है, जो सभी सुख-सुविधाओं की जनक है। यहाँ ठंड से बचने के लिए हीटर, गर्मी से बचने के लिए कूलर, एयर कंडीशनर, पानी पीने के लिए फ्रिज आदि अनेक सुविधाएँ हैं जो शहरों में उपलब्ध है, किंतु गाँवों में नहीं। इससे भी बड़ी सुविधा है शहरों का चकाचौंध भरा जीवन जहाँ रोजगार है, कमाने- खाने के साधन है।

शहरी सुविधा

शहरों में पक्की सड़कों, पटरियों आदि का जाल बिछा होता है, जो देश के विभिन्न हिस्सों को एक दूसरे से जोड़ते हैं। इन सड़कों पर दौड़ती हुई साइकिल, स्कूटर, मोटर गाड़ियाँ आदि जीवन की गतिशीलता को बताती हैं। रेलगाड़ियाँ व्यक्ति को कुछ ही घंटों में एक जगह से दूसरे तक पहुँचा देती है। रात्रि में विद्युत की चकाचौंध ऐसा आभास देता है मानो सूर्य धरती पर उतर आया हो। शहर की ऐसी जगमगाहट, सुविधाएँ, रौनक जनमानस को सहज ही आकर्षित कर इसे स्वर्ग का प्रतिरूप मानने को प्रेरित करती है। shahri Jeevan par nibandh

शहरी जीवन की समस्या

शहरी जीवन में अनेक परेशानियाँ और विषमताएँ भी हैं। शहरी जीवन कृत्रिम जीवन है। यहाँ सब कुछ बनावटी है, कुछ भी वास्तविक नहीं। यहाँ कृत्रिम हवा है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। नदियों का पानी छानकर पीने को मिलता है। सघन आबादी के कारण खुलकर साँस लेने का अवसर नहीं है। गाड़ियों, मिलों, फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएँ हैं जो अनेक प्रकार की बीमारियों के जनक हैं। शहर गंदगी का भंडार है तथा प्रदूषण के स्थायी विश्रामगृह हैं। शहरी जीवन की भागमभाग में किसी के पास इतना समय ही नहीं होता कि दूसरे के सुख-दुख में साथ निभाए।

शहर में प्रत्येक व्यक्ति अपने असली चेहरे पर एक मुखौटा चढ़ाए रहता है। उसकी वास्तविकता को जानना कठिन हो जाता है। शुद्धता की भारी कमी शहर में देखने को मिलती है। ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण यहाँ की प्रमुख समस्या है। शहरों में बड़े-बड़े भवन है किंतु सब के बस की बात नहीं है। शहरों में कई लोगों को तो झोपड़ी तक नसीब नहीं होती। क्योंकि आवास अत्यंत महँगे होते हैं, जिनका वहन करना आम व्यक्ति के लिए दुष्कर होता है। दुर्घटनाओं के जितने भी समाचार सुनने में आते हैं, उनमें से अधिकांश तो शहरों में ही घटित होते हैं। यह शहरी जीवन का अभिशाप मय रूप है।

गाँवों का जीवन

ग्रामीण जीवन शहरी जीवन के बिल्कुल विपरीत है। शहरों में जो सुविधाएँ उपलब्ध हैं। ग्रामीण अंचल में उनका नितांत अभाव है। किंतु जो विशेषताएँ शहरी जीवन की है, ग्राम्य जीवन में वे सब वरदान तुल्य उपलब्ध है। ग्राम्य जीवन खुला जीवन है यहाँ प्राणदायी शुद्ध वायु प्रवाहित होती है। खान-पान शुद्ध है। शुद्ध दूध, स्वच्छ पानी, ताजी हरी सब्जियाँ आदि सब गाँवों में उपलब्ध है। यही कारण है कि गाँव के लोग स्वस्थ हैं, परिश्रमी है।

गाँव में बड़े-बड़े कच्चे मकान दिखाई देते हैं, जिन्हें मकान कम और मिट्टी की घेराबंदी कहना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू , हरे-हरे पौधों के बीच में सरसों के पीले फूल और पलाश के फूल मन को मोह लेती है। मंद-मंद बहती स्वच्छ वायु हृदय को आनंद से भर देती है। shahri Jeevan par nibandh

गाँवों में आत्मीयता के वास्तविक स्वरूप के दर्शन होते हैं। तीज, त्योहार, मेले, रामलीला, कठपुतली का नाच, नौटंकी, आदि मनोरंजन के सस्ते साधनों द्वारा लोग अपना मन बहलाते हैं। गाँव के लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते हैं। गाँव का जीवन सरल व सादा है। लोग कम खर्च में जीवन निर्वाह कर लेते हैं।

ग्रामीण जीवन की समस्या

गाँव में रहने पर किसी प्रकार का कष्ट नहीं यह कहना उचित नहीं है। कहते है न, जहाँ फूल होंगे, वहाँ काँटे भी जरूर होंगे। अतः ग्रामीण जीवन में भी सुख के साथ दुख मिलते हैं। गांव में शिक्षा, आवागमन, चिकित्सा, रोजगार आदि के साधनों की कमी होती है। परिवहन का अभाव है। इससे जिंदगी में ठहराव सा आ जाता है। शिक्षा के उपयुक्त साधनों का गाँवों में अभाव है। गाँवों में यदि कहीं इंटर कॉलेज आदि है भी तो वे शिक्षा के संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। प्रायः गाँवों में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र ही होते हैं। जहाँ चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है। अतः रोगी को इलाज के लिए शहर लाना पड़ता है।

गाँववासी सुविधाओं के अभाव में आज भी रूढ़ीवादी हैं,वे टोने टोटके में विश्वास करते हैं। गाँवों में झाड़-फूँक आदि का बोलबाला होता है। आय का अभाव है। कृषि ही एकमात्र जीविका का साधन है, वह भी ईश्वराधीन है। अपवाद रूप से कुटीर उद्योग भी मिल सकते हैं। प्रकृति भी ग्रामीणों और कृषकों से नाराज हो गई प्रतीत होती है। किसान का जीवन कृषि पर निर्भर है और कृषि वर्षा पर निर्भर है। वर्षा का कोई ठिकाना नहीं। इसलिए कृषक भी शहरों की ओर पलायन कर रहा है। वैसे भी मनुष्य उसी स्थान पर रहना पसंद करता है, जहाँ उसकी जीवन की आवश्यकताएँ आसानी से पूरी हो सके। अतः शहरों में रहना वरदान प्रतीत होता है।

उपसंहार

व्यक्ति के दृष्टिकोण पर यह निर्भर करता है कि शहरी जीवन वरदान है या अभिशाप। एक कहावत है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। यूँ तो शहरी जीवन स्वर्ग के जैसा लगता है। किन्तु वास्तविकता यह है कि अपने स्थान पर दोनों ही श्रेष्ठ है। दोनों में से किसी एक को श्रेष्ठ बताना न्याय संगत नहीं। शहर और गाँव दोनों का अस्तित्व एक- दूसरे के बिना में कदापि संभव नहीं है।

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