नशाखोरी पर निबंध | Nashakhori par nibandh

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भूमिका

जिस देश में या जिस व्यक्ति के पास धन की बहुलता होती है, वह अपने पथ से भ्रष्ट होता जाता है। धन अहंकार उत्पन्न करता है। अहंकार लोक- लज्जा और विवेक को नष्ट कर देता है और एक विवेकशील व्यक्ति क्या कर सकता है, इसके कहने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इससे सभी लोग परिचित हैं। अहंकार से मनुष्य में अच्छे- बुरे का विवेक नहीं रहता है। वह धन के अहंकार में दिखावे के लिए उल्टे-सीधे काम करने लगता है। नशाखोरी भी उन्हीं में से एक है।

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दूसरी बात यह भी है कि धन की हवस ऐसी होती है कि उससे किसी को संतोष नहीं होता है। मनुष्य धन कमाने की होड़ में अपने को इतना व्यस्त कर लिया है कि उसे एक भी क्षण की फुर्सत नहीं है। यहाँ तक कि आराम करने की भी फुर्सत नहीं है। जिसके फलस्वरूप वह अपने थके मन को विश्राम देने के लिए उचित आश्रय का अवलंबन न कर अपने को नशे में डुबो देना चाहता है। वह निर्बाध रूप से मादक पदार्थों का सेवन करने लगता है। थोड़े से सुख की खोज में वह बहुत बड़े दुख को आमंत्रित कर लेता है। राजस्व वसूलने की लालच में सरकार भी मादक द्रव्यों के सेवन पर नियंत्रण से कतराती है। आज यही मादक द्रव्य अनेक ऐसे अपराधों को जन्म देने लगे हैं, जो समाज से अपेक्षित नहीं थे।

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युवावर्ग में नशाखोरी

पहले तो मादक पदार्थों का सेवन थकावट दूर करने का एक बहाना था। किंतु अब यह एक लत का रूप धारण कर लिया है। इसका सबसे अधिक प्रभाव युवा मन में पड़ा है। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करते हुए आज भारतीय युवा पीढ़ी में बढ़ती मादक पदार्थों के सेवन की आदत एक गंभीर समस्या का रूप धारण करती जा रही है। साधारणतया नशीली या मादक वस्तुएँ तंबाकू , कॉफी, शराब आदि हैं। इनके लगातार सेवन से आदत तो पड़ सकती है परंतु छूट भी सकती है। कुछ नशीले पदार्थ जैसे:– अफीम, कोकीन आदि हैं। जिनकी एक बार लत लगने पर छूटना कठिन हो जाता है।

पारिवारिक परिवेश

युवा पीढ़ी में नशीले पदार्थों का सेवन करने की मुख्य वजह माता-पिता में आपसी कटुता, झगड़े, बच्चों पर ध्यान न देना आदि है। घर में स्नेह और सम्मान न मिलने पर बच्चे बाहर की ओर देखने लगते हैं। घर के वातावरण से मुक्ति के लिए वह दोस्तों के साथ रहना ज्यादा पसंद करने लगते हैं। यदि ऐसे में नशेबाज मित्रों की संगत हो जाए, तो नशे की लत पड़ना स्वाभाविक है। इसके अलावा आज के युवा वर्ग द्वारा इन नशीले पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारणों में पाठ्यक्रमों की नीरसता , मशीनी अध्ययन-शैली, मौजूदा सामाजिक परिवेश , सिनेमा का प्रभाव , अच्छी आमदनी , गरीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा आदि है। जो युवा वर्ग में नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने की आदत डालते हैं। इन नशीली दवाओं की चपेट में केवल युवक ही नहीं, युवतियाँ भी तेजी से आ रही है।

नशाखोरी के कारण

नशीली वस्तुओं का सेवन करने की आदत युवकों में जिन कारणों से बढ़ती है, उनमें सबसे पहला कारण मादक पदार्थों की सरलता से प्राप्त हो जाना है। ऐसे नशीले पदार्थों को कुछ खास ठिकानों से सरलता से खरीदा जा सकता है। यद्यपि विश्व के लगभग सभी देशों में ऐसे पदार्थों को लाने ले जाने तथा इनके खुले उपयोग या व्यापार पर प्रतिबंध है फिर भी हर देश में इस तरह के मादक पदार्थों की आपूर्ति अवैध रूप से जारी है। nashakhori par nibandh

इन मादक पदार्थों के सेवन का दूसरा कारण विश्व के कुछ देशों की संस्कृति और समाज में इसकी स्वीकृति भी है। ऐसे देशों में इनका प्रयोग तेजी से बढ़ता है और बहुत से लोग इसके सेवन के आदी हो जाते हैं।

तीसरा कारण मनोचिकित्सीय अध्ययनों से पता चला है कि मादक पदार्थों का सेवन अधिकतर वे लोग करते हैं, जो मनोरोगी समझे जा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति वह होते हैं जो स्वयं को अयोग्य, अकुशल और कमजोर समझते हैं। उनका संवेगात्मक विकास अधूरा होता है। इसके अलावा वे अति संवेदनशील होते हैं।

ऐसे लोगों द्वारा मादक पदार्थ अपनाने का चाहे कुछ भी मकसद हो, वह पूरा तो नहीं हो सकता, लेकिन वे इसके आदी जरूर हो जाते हैं। एक बार जो मादक पदार्थों की गिरफ्त में आ जाता है। वह फिर इस गिरफ्त से मुश्किल से ही निकल पाता है। नशे की आदत इतनी जबर्दस्त होती है कि नशे का आदी हो जाने पर व्यक्ति नशीले पदार्थों के पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

निष्कर्ष

मादक पदार्थों के सेवन का मानव मस्तिष्क पर घातक प्रभाव पड़ता है। सभी नशीले पदार्थों का मस्तिष्क पर असर जरूर पड़ता है। यह असर अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। इनके सेवन के आदी व्यक्ति का ज्ञान और दुखों पर नियंत्रण शिथिल पड़ जाता है। उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। चिकित्सा विज्ञान का मत है कि चाहे जैसा मादक पदार्थ हो, उसका नियमित सेवन करने के आदि लोग धीरे-धीरे अनुपयोगी एवं अनुत्पादक बोझ बनकर समाज के लिए अभिशाप बन जाते हैं।

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