Janmashtami par nibandh
भूमिका
भारत भूमि ऐसी पवित्र भूमि है कि जब-जब कोई इसकी पवित्रता को कलंकित करने का प्रयत्न किया, स्वयं देवताओं ने मानव के रूप में अवतार लेकर उस पापी आत्मा का विनाश कर इसकी पवित्रता की रक्षा की। जब-जब किसी महात्मा ने जन्म लिया, उस दिन, तिथि, वार, महीने को भी पवित्र कर दिया। जन्माष्टमी भी उन्हीं में से एक तिथि है जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लेकर इस पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्त कर धर्म की स्थापना की। उसी के उपलक्ष्य में यह त्यौहार मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण का जन्म
कृष्ण का जन्म रात के 12:00 बजे उनके मामा कंस के कारागार में हुआ था। जन्माष्टमी का त्यौहार हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र में पड़ती है। यह त्यौहार अक्सर अगस्त महीने में आता है। कृष्ण जन्माष्टमी से 1 दिन पूर्व लोग व्रत रखते हैं और अर्ध रात्रि को 12:00 बजे कृष्ण का जन्म हो जाने के पश्चात कृष्ण की आरती उतारते हैं। उसके बाद सभी लोग ईश्वर का प्रसाद वितरण करते हैं। फिर वे स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रकार पूरे दिन व्रत रखते हुए इस पर्व को मनाया जाता है।
Janmashtami par nibandh
कार्यक्रम
जन्माष्टमी के दिन सभी श्रद्धालु सवेरे-सवेरे अपने घरों की सफाई कर उसको धार्मिक चिन्हों से सजाते सँवारते है। बच्चे अपने घरों के निकट पालने को सजाते है और उसमें बाल कृष्ण को सुला देते हैं। इसके आसपास खिलौने रख देते हैं। इसको देखने के लिए आसपास के लोग आते हैं। इस दिन बच्चे बहुत उत्साहित नज़र आते हैं। जगह-जगह कृष्ण की लीलाएँ भी आयोजित की जाती है।
Janmashtami par nibandh
धार्मिक कथा
जन्माष्टमी का पर्व मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। द्वापर युग में मथुरा का राजा कंस था, जो बड़ा ही अत्याचारी था। जब उसकी बहन देवकी का विवाह हुआ, तब कंस उसे रथ से ससुराल छोड़ने जा रहा था। रास्ते में तब एक आकशवाणी हुई और उस आकाशवाणी में बताया गया कि देवकी का संतान तुम्हारे मृत्यु का का कारण बनेगा। जब कंस ने उस आकाशवाणी को सुना,तो देवकी को मारने के लिए तलवार उठा लिया।
तब वासुदेव ने धैर्य देते हुए कंस को समझाया। जब इसके पुत्र से आपकी मृत्यु होगी, तो आप इसे बंदी बना लें। पुत्र के जन्म लेने पर आपको दे दिया जाएगा। फिर आप इसे जो चाहे वह कीजिए। वासुदेव की बातें वह मान गया और वासुदेव एवं देवकी को जेल में बंद कर दिया। इस तरह देवकी के सातों पुत्रों को वह एक-एक करके मारता गया। जब आठवां पुत्र पैदा हुआ, उस समय वासुदेव ने अपने मित्र नंद की पुत्री को आकाशवाणी के अनुसार कंस को सौंप दिया। इस तरह कृष्ण का कंस वध नहीं कर सका।
जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ। तब जेल के सभी पहरेदार सो गए थे। देवकी और वासुदेव की बेड़ियाँ स्वयं ही खुल गई थी। जेल के द्वार भी स्वयं खुल गए थे। फिर आकाशवाणी ने वासुदेव को बताया कि वे कृष्ण को गोकुल पहुँचा दें। उसके बाद कृष्ण के पिता वासुदेव ने कृष्ण को एक सूप में सुलाकर वर्षा ऋतु में उफनती यमुना नदी पार करके गोकुल पहुँचे और कृष्ण को नंद के घर छोड़ आए। इसे सभी लोग कृष्ण का चमत्कार कहते हैं। फिर कृष्ण बचपन से युवावस्था तक कंस और बहुत सारे राक्षसों का वध किया और अपने भक्तों का उद्धार किया। इसीलिए उन्हें ईश्वर का अवतार मानकर पूजा अर्चना करते हैं,और जन्माष्टमी का पर्व मनाते है।
निष्कर्ष
यह त्यौहार पूरे भारतवर्ष में कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़े धूमधाम और उल्लास से मनाया जाता है। यह त्यौहार पवित्रता, आस्था और विश्वास का प्रतीक है और मानव जाति को अन्याय के विरुद्ध लड़ने का संदेश देता है। इस त्यौहार से श्रद्धा और विश्वास के साथ-साथ सात्विक भावों का उदय होता है। मुख्य रूप से यह त्यौहार आत्मविश्वास और आत्म-चेतना का प्रेरक और संवाहक है।