Onam Par Hindi nibandh
भूमिका
हमारा देश पर्वों और त्यौहारों का देश है। प्रत्येक तिथि और पर्वों का कोई न कोई महत्व है। प्रत्येक पर्व और त्यौहार कोई न कोई संदेश, कोई न कोई नवीन चेतना लेकर आते हैं। और इसलिए भारत में पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं कि उनसे मनोरंजन, सामाजिक समरसता, आपसी प्रेम और समाज देश को एक सूत्र में बँधने की प्रेरणा देते हैं। इन्हीं त्योहारों में एक त्यौहार है— ओणम।
ओणम दक्षिण भारत में, विशेषकर केरल में मनाया जाने वाला त्यौहार है। यद्यपि यह त्यौहार केरल में मनाया जाता है, किंतु उससे जुड़ी कथा पौराणिक है और हमारी संस्कृति का आधार है। यह कथा भगवान विष्णु के अवतार से जुड़ी है। जिसमें विष्णु जी ने अवतार लेकर एक प्रतापी दानव राजा बलि को रसातल का राज्य प्रदान किया था।
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पौराणिक कथा
कथा कुछ इस प्रकार है— पुराणों के अनुसार राजा बलि केरल प्रदेश के अधिपति थे। वे एक प्रजावत्सल, आदर्श धर्मपरायण और प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में न्याय और सुख-समृद्धि थी, शांति और अमन था। राजा की एक बहुत बड़ी विशेषता थी कि वे एक महादानी राजा थे। उनकी दानशीलता, न्यायप्रियता और प्रजावत्सलता की इतनी ख्याति फैलती जा रही थी कि उनके सुशासन से देवराज इंद्र का आसन डगमगाने लगा। इसका कारण था–उनकी लोकप्रियता,न्यायप्रियता के कारण उनके राज्य की प्रजा उन्हें ईश्वर के समान मानती थी। राजा में इस ख्याति का तनिक भी अहंकार नहीं था। प्रजा द्वारा उनके सत्कर्मों से भगवान के स्थान पर उन्हीं की पूजा करते देख इंद्र ईर्ष्यालु हो उठा और उसने देवताओं के साथ मिलकर षड्यंत्र किया और मनगढ़ंत बातें बताकर विष्णु को बलि के विरुद्ध भड़काया।
विष्णु वामन का वेष बनाकर बलि के महल में आए। उन्होंने राजा से तीन पग भूमि अपने लिए दान में माँगी। राजा तैयार हो गए तो वामन तीन बार वचन लेकर राजा को तीन पग भूमि देने को वचनबद्ध कर लिया। उन्होंने एक पग में संपूर्ण पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश नाप लिया। तीसरे पग के लिए कुछ बचा ही नहीं। दानी राजा बलि ने कुछ न बचने पर वचन पूरा करने के लिए अपने अपना शरीर ही अर्पित कर दिया। अब राजा बलि द्वारा सब कुछ दान कर देने पर वे पृथ्वी पर तो रह ही नहीं सकते थे। अतः विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बनाकर पाताल पुरी भेज दिया।
बलि को विष्णु का वरदान
पाताल लोक जाने से पूर्व उन्होंने विष्णु से वरदान माँगा– प्रभु! मुझे अपनी प्रजा से असीम प्यार है। अतः मुझे वर्ष में एक बार आकर अपनी प्रजा का सुख-दुख देखने, जानने की आज्ञा प्रदान करें। विष्णु ने तथावस्तु कहा, और राजा बलि पाताल लोक को चले गए। इसलिए वहाँ के लोगों की यह मान्यता है कि श्रावण महीने के श्रवण नक्षत्र में महाराजा बलि अपनी प्रजा को देखने आते हैं। इसलिए इस त्यौहार का नाम ओणम पड़ा।
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महत्व
ओणम के त्यौहार के दिन श्रावण मास में आज भी केरल प्रदेश की प्रजा अपने प्रजावत्सल के आगमन की प्रतीक्षा में अपने घरों को खूब सजाती सँवारती है और दरवाजे, गलियों पर बन्दवार सजाए जाते हैं। धरती को भी तरह-तरह की रंगोली से सजाते हैं। पृथ्वी का भव्य श्रृंगार किया जाता है। रंगोली से सजी इस पृथ्वी पर भगवान विष्णु और राजा बलि की प्रतिमा स्थापित की जाती है। दोनों की बड़ी श्रद्धा से भव्य पूजा की जाती है। घर के सभी सदस्य नए-नए परिधान पहनकर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इस अवसर पर मंदिरों में भी भव्य आयोजन किया जाता है। भगवान की मूर्तियों का भव्य श्रृंगार किया जाता है। धूप-दीप से सजाया जाता है। इन कार्यक्रमों को आयोजित करने का यही अर्थ होता है कि राजा आकर देखें कि हमारी प्रजा धन्य-धान्य से पूरित है। उस दिन लोग दिल खोलकर अन्न-वस्त्र का दान भी करते हैं।
उपसंहार
ओणम का त्यौहार न्यायप्रियता, सुख-समृद्धि, आपसी प्रेम और सौहार्द्र का संदेश लेकर प्रतिवर्ष आता है, जिससे प्रजा अन्याय, दरिद्रता का शिकार न हो। यह त्यौहार हमारी संस्कृति का आईना है। यह हमारे जीवन को एक नई ताजगी, उल्लास प्रतिवर्ष दे जाता है और पूरे वर्ष तक लोग नई ऊर्जा का अनुभव करते हैं।