मीराबाई पर निबंध | meerabai par nibandh

meerabai par nibandh

भूमिका

भक्ति काल की प्रेमाश्रयी शाखा की कवयित्री मीराबाई का नाम भारतीय साहित्य में अमर है। मीराबाई कृष्ण की अनन्य भक्त थी। इनकी रचनाएँ लौकिक और पारलौकिक दोनों भावों से सराबोर है। कृष्ण भक्ति में ये इतनी लीन हुई कि एक राज परिवार की मर्यादा को त्याग भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में डूब गई और संसार को भक्ति के प्रति समर्पण का संदेश दिया।

meerabai par nibandh

meerabai par nibandh

जीवन परिचय

कृष्ण भक्त मीराबाई का जन्म 1504 ईस्वी में राजस्थान के मारवाड़ जिले के अंतर्गत कुड़की गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। मीराबाई मेड़ता राज्य के संस्थापक राव दूदाजी की पौत्री थी। बाल्यकाल में ही मीराबाई की माँ इन्हें छोड़ परलोक सिधार गई। इसके बाद इनका पालन-पोषण राव दूदाजी ने ही किया। वे वैष्णव भक्त थे। इस कारण मीराबाई को भक्ति संस्कार में मिली। मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण की उपासिका थी।

मीरा का विवाह 1516 ई. में चित्तौड़ के राजा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के संग हुआ था। विवाह के 7 वर्षों के उपरांत ही मीरा के पतिदेव भोजराज की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। इससे मीरा का जीवन अंधकारमय हो जाता है और इसके बाद मीरा पारलौकिक प्रेम को अपना लेती है। फिर कृष्ण-भक्ति की राह पकड़ उसके भजन गाने लगती है। वह सत्संगों और साधु-संतों के संग कृष्ण कीर्तन के आध्यात्मिक प्रवाह में बहती हुई संसार को निस्सार समझने लगती है। उनके परिजनों ने उन्हें गृहस्थ जीवन में लाने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन उनके यह प्रयास निरर्थक साबित हुए।

काव्यगत विशेषता

जब हम मीराबाई द्वारा रचित काव्य का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि मीराबाई के काव्यों से सरलता और स्वच्छता का भाव प्रकट होता है। उसमें भक्ति भाव के विविध रूपों का दर्शन होता हैं। उसमें आत्मानुभूति और निष्ठता की तीव्रता नजर आती है। मीराबाई को श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम था। इसलिए प्रेम दीवानी मीराबाई तनिक भी किसी को अपना भाव नहीं देती है। मीराबाई सिर्फ और सिर्फ श्रीकृष्ण के ही ध्यान में लगी रहती है। मीरा अपने प्रभु श्रीकृष्ण की सुंदर प्रतिमा को ह्रदय में बसाये उसकी गुणगान करते फिरती है—
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरी पति सोई।।

मीराबाई की काव्यगत अनुभूति आत्मनिष्ठ और अनन्य भाव का है। उनका काव्य सहजता के साथ गंभीरता को धारण किये हुए है। वह अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णरूपेण समर्पण भाव प्रस्तुत करती है। श्रीकृष्ण की मन मोहिनी मूर्ति तो मीरा की आँखों में बसी हुई है। मीरा के काव्य स्वरूप का कला-पक्ष कहीं सरस, सुबोध तो कहीं बहुत जटिल भी है। इसका कारण भाषा के प्रयोग की विविधता और शैली की असमानता है। मीराबाई की भाषा में राजस्थानी, पंजाबी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली, गुजराती आदि का सम्मिश्रण है। अपनी भाषागत शैली में मीराबाई ने लोक प्रचलित कहावतों और मुहावरों को विशेष स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त अलंकारों और रसों का भी उचित प्रयोग किया है।

meerabai par nibandh

मीरा की रचनाएँ

मीराबाई की गणना भारत के प्रधान भक्तों में की जाती है। इनका गुणगान नाभादास , ध्रुवदास , व्यास , मलूकदास ने भी किया है । मीरा की रचनाओं में उल्लेखनीय हैं—- नरसी जी का मायरा , गीत गोविंद टीका ,राग गोविंद , राग सोरठ के पद । आचार्य शुक्ल जी ने एक जनश्रुति के बारे में भी लिखा है कि मीरा ने एक बार तुलसी को लिखा कि मेरे परिवारीजन मुझे साधु संगति एवं भजन करने से रोकते हैं। अतः मुझे क्या करना चाहिए तब तुलसी ने उन्हें विनय पत्रिका का यह पद लिखकर भेज दिया :–

जाके प्रिय न राम बैदेही।
तजिए ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।।

शुक्ल जी इस घटना को कल्पित ही मानते हैं ।

सद्गुरु पर निष्ठा

मीराबाई श्रीकृष्ण भक्ति में लीन रहते हुए मथुरा में शरीर का त्याग किया। इनकी मृत्यु 1563 ई. में हुई । उन्होंने अपने भक्ति परक रचनाओं से लोगों में ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास का संदेश दिया। सद्गुरु की कृपा पर मीराबाई को अटूट विश्वास था। उनका कहना था कि इस भवसागर से सतगुरु ही उसे पार लगा सकता है। इसलिए उनकी रचनाओं में सद्गुरु के प्रति निष्ठा और विश्वास को स्थान मिला है। उन्होंने समाज को सत्कर्म के लिए प्रेरित किया जिससे एक चरित्र प्रधान समाज का निर्माण हो सके। उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि जब तक सत्कर्म नहीं होगा ईश्वर की कृपा का होना असंभव है।

उपसंहार

मीराबाई के काव्य की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है । संगीत एवं छंद विधान की दृष्टि से उनका काव्य उच्च कोटि का है । उनके पद विभिन्न राग-रागिनियों में निबद्ध हैं । वियोग श्रृंगार एवं शांत रसों की प्रधानता उनके काव्य में है । इस तरह कृष्ण भक्ति धारा के फुटकर रचनाकारों में मीराबाई का नाम काफी प्रसिद्ध है ।

Post a Comment

Previous Post Next Post