कवि पद्माकर पर निबंध | Kavi Padmakar per nibandh

Kavi Padmakar per nibandh

भूमिका

रीतिकाल के कवियों में पद्माकर का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। बिहारी के बाद रीतिकाल के ये सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। इनकी जैसी लोकप्रियता बहुत कम कवियों को प्राप्त होती है।

Kavi Padmakar per nibandh

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जन्म

पद्माकर का जन्म बांदा में 1753 ई . हुआ और 80 वर्ष की आयु पाकर 1833 ई . में इनका स्वर्गवास हुआ । पद्माकर के पिता मोहनलाल भट्ट थे, जो एक महान विद्वान एवं कवि भी थे। पद्माकर किसी एक स्थान पर टिककर नहीं रह पाए । हिम्मत बहादुर अवध के बादशाह की सेना के बड़े अधिकारी थे । उनकी वीरता पर मुग्ध होकर पद्माकर ने ‘ हिम्मत बहादुर विरुदावली ‘ की रचना की । यह वीररस की फड़कती हुई रचना है । सतारा के महाराज रघुनाथ राव से इन्हें एक हाथी , एक लाख रुपया और दस गांव प्राप्त हुए थे । तत्पश्चात् पद्माकर जयपुर के महाराज प्रतापसिंह के यहां रहे । उनके पुत्र जगत सिंह के संरक्षण में रहकर पद्माकर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘ जगद्विनोद ‘ की रचना की । यहीं पर इन्होंने अपने अलंकार ग्रंथ ‘ पद्माभरण ‘ की रचना की ।

महाराजा जगतसिंह के स्वर्गवास के बाद ये ग्वालियर के महाराज दौलतराव सिंधिया के दरबार में भी रहे । ‘ हितोपदेश ‘ का भाषा अनुवाद इन्होंने ग्वालियर में रहकर किया । बाद में ये ग्वालियर से बूंदी गए और वहां कुछ काल तक रहने के बाद बांदा आ गए । अन्तिम समय में ये रोगग्रस्त रहते थे । तभी इन्होंने ‘ प्रबोधपचासा ‘ की रचना की । अन्तिम समय निकट जानकर ये कानपुर में गंगातट पर रहने लगे और वहीं इन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गंगालहरी की रचना की ।

रचनाएँ

इस प्रकार पद्माकर के लिखे ग्रन्थ निम्नवत हैं : –
1) हिम्मत बहादुर
2) प्रताप साहि विरुदावली
3) कलि पच्चीसी
4) जगद्विनोद
5) पद्माभरण
6) प्रबोध पचासा
7) गंगा लहरी

‘जगद्विनोद’ में छ : प्रकरण और 731 छन्द हैं । इसमें श्रृंगार रस एवं नायिका भेद का विस्तृत विवेचन किया गया है । काव्यांगों के लक्षण दोहों में हैं तथा उदाहरण कवित्त – सवैयों में हैं । इस ग्रन्थ की रचना के लिए आधार सामग्री भानुदत्त की रसमंजरी , केशवदास की रसिकप्रिया और विश्वनाथ के साहित्यदर्पण से ली गई है । इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि लक्षण सुबोध हैं तथा उदाहरण सरस हैं ।

काव्यगत भाषा

भाषा की प्रवाहमयता एवं विषय की सरसता के कारण पद्माकर रीतिकाल के श्रेष्ठ कवियों में स्थान पाते रहे हैं। पद्माकर के काव्य में आनुप्रासिकता के साथ-साथ कोमल भाव तरंग , मधुकल्पना , साफ-सुथरी ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग से वे अनुभूति को सशक्त रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।

उपसंहार

पद्माकर की गणना अच्छे कवियों में होती है । उनकी रचनाओं में कवित्व का पूर्ण उत्कर्ष दिखाई पड़ता है । मधुर और स्वाभाविक कल्पना , सजीव मूर्ति विधान एवं उपयुक्त शब्द चयन के कारण इनकी कविता का भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों ही सशक्त बन पड़े हैं ।

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