कवि देव पर निबंध | Kavi Dev par hindi nibandh

Kavi Dev par nibandh

जीवन परिचय

कवि देव का पूरा नाम देवदत्त था। देव इटावा के रहने वाले थे। देव का जन्म 1673 ईस्वी में हुआ था तथा उन्होंने अनेक राजा-रजवाड़ों का आश्रय प्राप्त किया था। देव की मृत्यु 1767 ई. के आसपास हुई। देव को कोई अच्छा उदार आश्रयदाता नहीं मिल पाया। जहाँ यह टिककर रह पाते, परिणाम यह हुआ कि ये बराबर अपना आश्रयदाता बदलने को विवश हुए।

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प्रमुख रचनाएँ

देव ने प्रचुर मात्रा में ग्रंथों की रचना की, जिनकी संख्या लगभग 72 बतायी जाती है। किंतु अभी तक केवल 15 ग्रंथ ही उपलब्ध हुए हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं:-
1) भाव विलास
2) अष्टयाम
3) भवानी विलास
4) कुशल विलास
5) प्रेम चंद्रिका
6) रस विलास
7) राग रत्नाकर
8) जाति विलास
9) प्रेमतरंग
10) देवचरित्र
11) देवमाया प्रपंच
12) शब्द रसायन
13) सुख सागर तरंग
14) सुजान विनोद
15) देवशतक

काव्यगत भाषा

देव एक समर्थ कवि एवं प्रतिभा संपन्न आचार्य के रूप में प्रसिद्ध है। आचार्यत्व की अपेक्षा देव का कवित्व अधिक सशक्त है। इनके काव्य का मूल विषय श्रृंगार रहा है। इनकी रचनाओं में कल्पना की चारुता और अर्थ वैभव का सुंदर सामंजस्य हुआ है। विषयानुकूल शब्द चयन , आनुप्रासिकता के कारण इनकी अभिव्यंजना शैली भी प्रशंसनीय बन पड़ी है। कहीं-कहीं शब्दों की अनावश्यक तोड़ – मरोड़ एवं व्याकरणिक अव्यवस्था के कारण उनकी कविता सरस , भावपूर्ण एवं हृदय ग्राही बन पड़ी है।

कविवर देव की भाषा प्रभावपूर्ण ब्रजभाषा है। रीतिकाल के कवियों में यह बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभा संपन्न कवि थे। देव के रीति ग्रंथों पर मम्मट के काव्यप्रकाश , आचार्य विश्वनाथ के साहित्यदर्पण, भानुदत्त की रसमंजरी , केशवदास की रसिकप्रिया और रहीम के बरवै नायिका भेद का पर्याप्त प्रभाव परिलक्षित होता है। शब्द शक्ति विवेचन में वे अमिधा को उत्तम मानते हैं तथा तात्पर्य नामक एक चौथी शब्द शक्ति की उद्भावना करते हैं।

देव का रस विधान

रस क्षेत्र में देव ने ‘छल’ नामक नवीन संचारी भाव की उद्भावना की किंतु आचार्य शुक्ल के अनुसार ‘छल’ का समाहार ‘अवहित्था’ नामक संचारी भाव के अंतर्गत हो जाता है। नायिका भेद का विवेचन भी देव ने अत्यंत सूक्ष्म ढंग से किया है। इस विवेचन पर भानूदत्त की रसमंजरी का प्रभाव साफ झलकता है। अलंकार निरूपण में वे भामह एवं दंडी के ग्रंथों से प्रभावित हैं। देव रसवादी आचार्य थे तथा इसका निर्वाह उन्होंने अपने काव्य रचनाओं में किया भी है। रीति निरूपण की दृष्टि से कवि देव उतने महत्वपूर्ण नहीं है जितने कवि के रूप में हैं। उनकी कवित्व शक्ति की तुलना कुछ विद्वानों ने बिहारी से करते हुए हिंदी क्षेत्र में एक विवाद खड़ा कर दिया कि देव बड़े हैं या बिहारी? इस विषय के पक्ष-विपक्ष में अनेक पुस्तकें तक लिखी गई।

उपसंहार

हिंदी साहित्य में कवि देव की अहम भूमिका रही है। रीतिकाल के कवियों में इन्हें एक विशेष दर्जा प्राप्त है। देव ने ब्रजभाषा को विकसित करने में विशेष योगदान दिया।

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