कवि मतिराम पर निबंध | kavi matiram per nibandh

kavi matiram per nibandh

भूमिका

मतिराम रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं तथा प्रसिद्ध कवि भूषण और चिन्तामणि के भाई कहे जाते हैं । उन्होंने अपनी रचना ब्रजभाषा में लिखी है। ये रीतिकाल के रीतिसिद्ध वर्ग के कवि माने जाते हैं। अर्थात इन्होंने रीति ग्रंथों की रचना की है।

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जीवन परिचय

डॉ . नगेन्द्र के अनुसार मतिराम का जन्म 1604 ई . के आस-पास माना है । इनके पिता का नाम विश्वनाथ त्रिपाठी था तथा ये सम्राट जहांगीर , बूंदी नरेश राव भावसिंह हाड़ा , कुमायूं नरेश ज्ञानचन्द तथा बुन्देलखण्ड के स्वरूप सिंह बुन्देला के आश्रय में रहे थे । इनकी मृत्यु 1701 ई. के पास माना गया है।

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प्रमुख रचनाएँ

मतिराम द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं:-

1) फुलमंजरी (1619 ई .) , जहांगीर के आश्रय में लिखी गई।
2) ललित ललाम (1661-64 ई .) , भावसिंह के आश्रय में लिखी गई।
3) सतसई (1681 ई .), भोगनाथ के आश्रय में लिखी गई।

  1. अलंकार पंचाशिका (1690 ई.) , ज्ञानचन्द के आश्रय में लिखी गई।
  2. वृत्तकौमुदी (1701 ई.) स्वरूप सिंह बुन्देला के आश्रय में लिखी गई।
  3. रसराज (1633-43 ई .), स्वतन्त्र रूप से लिखा गया ।
  4. लक्षण श्रृंगार
  5. साहित्यसार

रीतिग्रन्थों की दृष्टि से इनकी उत्कृष्ट रचनाएं हैं – रसराज और ललित ललाम । आचार्य शुक्ल के अनुसार- “ रस और अलंकार की शिक्षा में इनका उपयोग बराबर चलता आया है । “

‘ रसराज ‘ में श्रृंगार रस और नायिका भेद का विवेचन किया गया है। जो मुख्यतः भानुदत्त की ‘रसमंजरी’ और रहीम के ‘ बरवै नायिका भेद ‘ को आधार मान कर किया गया है । पहले दोहे में लक्षण देकर फिर कवित्त और सवैये में सरस उदाहरण दिए गए हैं । इनकी भाषा की प्रशंसा करते हुए शुक्ल जी ने लिखा है — ‘ रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में सिर्फ पद्माकर को छोड़ और किसी भी कवि में मतिराम की तरह चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती । मतिराम की भाषा में नाद सौन्दर्य भी विद्यमान है । “

काव्यगत भाषा

मतिराम के काव्य में न तो किसी भावों की कृत्रिमता है और न ही भाषा की । भाषा शब्दाडम्बरों से पूरी तरह मुक्त रूप में है । सिर्फ आनुप्रासिकता के लिए अशक्त शब्दों की भरती मतिराम ने नहीं की । दूर की कौड़ी लाने के फेर में भी वे नहीं पड़े। इसलिए उन्होंने नायिका के विरहताप का वैसा वर्णन नहीं किया जैसा बिहारी ने करके उसे मजाक की हद तक पहुंचा दिया । ‘ रसराज ‘ और ‘ ललित ललाम ‘ अपने विषय के अनुपम ग्रन्थ हैं ‘ ललित ललाम ‘ में अलंकारों के उदाहरण बहुत सरत एवं स्पष्ट है । मतिराम सतसई के दोहे भी बिहारी सतसई की टक्कर के हैं । उनके दोहों को लोग भ्रमवश बिहारी का दोहा समझ बैठते हैं , क्योंकि ये बिहारी सतसई के दोहों से किसी भांति कम नहीं आंके जा सकते ।

उपसंहार

रीतिकाल में अनेक प्रसिद्ध कवि हुए जिन्होंने इस काल में अपनी महत्वपूर्ण रचनाएं लिखकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया । मतिराम इन महान कवियों में से हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से महत्वपूर्ण रचनाएं रीतिकाल में हिन्दी साहित्य को दी, जिनके लिए हिन्दी साहित्य इनका सदैव ऋणी रहेगा ।

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