महाकवि बिहारी पर निबंध | Mahakavi Bihari par nibandh

Mahakavi Bihari par nibandh

भूमिका

बिहारी श्रृंगार के रससिद्ध कवि कहे जाते हैं। बिहारी प्रतिभा संपन्न कवि होने के साथ-साथ विविध विषयों की जानकारी से संपन्न लोक एवं शास्त्र में निपुण कवि थे। उनके द्वारा रचित दोहों में विविध विषयों की जानकारी समाहित है। यह जानकारी उनके लोकज्ञान का परिचय देती है। इस प्रकार वे लोक के रीति-रिवाज , पर्व-त्योहार , खेल आदि का वर्णन भी अपने दोहों में किया है।

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जीवन परिचय

महाकवि बिहारी की जीवनी को जानने के लिए बिहारी सतसई में केवल एक तथ्य का उल्लेख मिलता है कि उनके आश्रयदाता राजा जयसिंह थे और उनकी आज्ञा से बिहारी ने “ सतसई ” की रचना की थी । शेष उनका जीवन – वृत्त प्रायः परम्परा , जनश्रुति एवं अनुमान पर ही आधारित है । उनके आधार पर बिहारी का जीवन – परिचय इस प्रकार है – कविवर बिहारी का जन्म 1595 ई. के लगभग ग्वालियर निकट बसुआ गोविन्दपुर ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम केशवराव था । ये जाति के माथुर चौबे थे । ये बाल्यावस्था में बुन्देलखण्ड में रहे तथा युवावस्था इनकी ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई । “ घरहिं जवांई लौ घट्यौ खरो पूस दिन मानु ” वाला दोहा इस तथ्य का संकेत देता है कि बहुत लंबे समय तक अपने ससुराल में रहने के कारण उनका अनादर होने लगा। इससे वे काफी दुखी होकर अपने ससुराल से चले गए ।

आश्रय स्थल

बिहारी धन प्राप्त करने की इच्छा से राजा – महाराजाओं के यहाँ जाया करते थे । एक बार वह जयपुर नरेश राजा जयसिंह के यहाँ आ पहुँचे । राजा अपनी नवोढ़ा पत्नी के प्रेम में इतने लीन थे कि महले के बाहर भी नहीं निकलते थे । इस पर उन्होंने एक दोहा लिखकर राजा के पास भेज दिया था । दोहा इस प्रकार था :-

नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहिं विकास इहिं काल।
अली ! कली ही सौं बंध्यौ , आगे कौन हवाल ॥

इस दोहे ने राजा जयसिंह पर जादू जैसा असर किया और वह रानी के प्रेमपाश से मुक्त होकर राज्य – कार्य करने में प्रवृत्त हो गये । बिहारी राजा जयसिंह के दरबारी कवि हो गये और वह श्रृंगार रस की कविताओं से राजा जयसिंह का मनोरंजन करने लगे । इन्होंने लगभग सात सौ दोहों की रचना की जो “ बिहारी सतसई ” के नाम से प्रसिद्ध है । इस विषय में मतभेद है कि बिहारी के कोई सन्तान थी या नहीं । 1663 ई. में लगभग बिहारी परलोक सिधार गए ।

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व्यक्तिव

बिहारी बड़े ही रसिक और मस्त प्रकृति के कवि थे। इनका जीवन एक सम्पन्न नागरिक का जीवन था । इनका व्यक्तित्व पड़ा ही सरस एवं सरल था । सतत् प्रसन्न मुद्रा , विनोदशील प्रकृति एवं वाणी में स्वाभाविक व्यंग्यप्रियता इनके व्यक्तित्व के कुछ ऐसे गुण थे , जिन्होंने इन्हें जनप्रिय बना दिया था । सरस्वती के पुजारी कवि लक्ष्मी के कृपा पात्र नहीं बन पाते । बिहारी भी इस नियम के अपवाद सिद्ध नहीं हो सके । इन्हें भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए राजदरबारों की शरण लेनी पड़ी थी । अपने जीवन के अन्तिम काल में उन्हें इसका बड़ा कटु अनुभव हुआ था और कदाचित इसीलिए इन्होंने अपनी परिस्थिति से खीझकर कहा था- “ तुमहू कान्ह मनौ भये आज काल्हि केदानि । ” इनके व्यक्तित्व में प्रतिभा , अध्ययन और अभ्यास जैसे गुणों का समन्वय विद्यमान है । उन्हें चाटुकारिता से प्रेम नहीं था ।

बिहारी की काव्यकला

कवि बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने एकमात्र ग्रंथ बिहारी सतसई की रचना की, जिसमें 713 दोहे हैं। उन्होंने दोहे जैसे छोटे छंद में इतने अधिक भावों का समावेश किया है कि आलोचकों को उनके विषय में यह कहना पड़ा कि बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है। बिहारी सौंदर्य के कुशल चितेरे है। सौंदर्य की विविध छटाएँ उनके काव्य में दिखाई पड़ती है। उनके काव्य की विषय वस्तु भी आकर्षक है तथा उनकी अभिव्यक्ति क्षमता भी उसी परिणाम में रमणीय है। यही कारण है कि उनकी सतसई अत्यंत लोकप्रिय रचना है।

बिहारी ने साफ – सुथरी ब्रजभाषा का प्रयोग किया है तथा उनके प्रत्येक दोहे में कोई न कोई अलंकार अवश्य है । छन्द की दृष्टि से उन्होंने अधिकतर दोहा लिखा है , किन्तु कुछ सोरठे भी लिखे हैं । अनुप्रास , यमक , उठोक्षा , विरोधाभास , उपमा , रूपक , विभावना आदि सभी अलंकार बिहारी के दोहों में उपलब्ध हो जाते हैं । अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण बिहारी रीतिकाल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि सिद्ध हुए।

उपसंहार

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि बिहारी उच्चकोटि के कवि थे । वे एक सफल मुक्तककार एवं श्रृंगार के रस सिद्ध कवि हुए तथा रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि कहलाये। उनकी कविता में यद्यपि श्रृंगार रस की प्रधानता है तथापि उसमें भक्ति एवं नीति का भी समावेश किया। बिहारी का कलापक्ष भी अत्यन्त सशक्त है ।

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