विद्यानिवास मिश्र की जीवनी | vidya niwas mishra ki jivani

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भूमिका

व्यक्ति व्यंजक निबन्धकारों में विद्यानिवास मिश्र का महत्वपूर्ण स्थान है । भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी आस्था एवं अद्भुत पाण्डित्य के साथ – साथ भावुकता उनके निबन्धों में स्थान – स्थान पर झलकती है । एक ललित निबन्धकार के रूप में भी मिश्रजी ने हिन्दी पाठकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है ।

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जीवन परिचय

विद्यानिवास मिश्र का जन्म 28 जनवरी 1926 ई. को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के पकड़डीहा गाँव में हुआ था। । इन्होंने 1945 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. करने के पश्चात् हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्व. राहुल सांकृत्यायन के निर्देशन में कोश कार्य किया । तदुपरान्त विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों से सम्बद्ध रहे । वर्ष 1957 में विश्वविद्यालय सेवा से जुड़े डॉ. मिश्र ने गोरखपुर विश्वविद्यालय , सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालय में संस्कृत और भाषा – विज्ञान का अध्यापन किया । मिश्र जी काशी विद्यापीठ एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय , वाराणसी के कुलपति और नवभारत टाइम्स के प्रधान सम्पादक भी रहे। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए इनको भारत सरकार के पद्मश्री ( 1988 ) भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार ( 1990 ) और के.के. बिड़ला फाउंडेशन के शंकर पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं । इनकी मृत्यु 14 फरवरी 2005 ई. को हुई।

प्रमुख रचनाएँ

मिश्र जी की प्रकाशित कृतियों की संख्या सत्तर से अधिक है , जिनमें व्यक्तिव्यंजक निबंध – संग्रह , आलोचनात्मक तथा विवेचनात्मक कृतियाँ , भाषा चिन्तन के क्षेत्र में शोध ग्रंथ और कविता – संकलन सम्मिलित हैं । डॉ . विद्यानिवास मिश्र आधुनिक ज्ञान – विज्ञान , समाज – संस्कृति , साहित्य कला की नवीनतम चेतना और तेजस्विता से मंडित हैं । संस्कृत भाषा के साथ हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य के मर्मज्ञ डॉ . मिश्र अनेक संस्थाओं के सम्मानित सदस्य हैं ।

मिश्र जी की निबन्ध रचनाओं में प्रमुख हैं:-
1) छितवन की छांह
2) कदम की फूली डाल
3) तुम चन्दन हम पानी
4) आंगन का पंछी और बंजारा मन
5) मैंने सिल पहुंचाई
6) वसन्त आ गया पर कोई उत्कण्ठा नहीं
7) मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
8) हल्दी – दूब
9) कंटीले तारों के आर – पार
10) कौन तू फुलवा बीनन हारी ।
काव्य संग्रह: – पानी की पुकार
कहानी संग्रह: – भ्रमरानंद का पचड़ा
आलोचनात्मक ग्रंथ: -तुलसीदास भक्ति प्रबंध का नया उत्कर्ष, आज के हिंदी कवि अज्ञेय, कबीर वचनामृत, रहीम रचनावली, रसखान ग्रंथावली

इनके अतिरिक्त इन्होंने अनेक समीक्षा ग्रन्थ भी लिखे हैं यथा – हिन्दी शब्द सम्पदा , पाणिनीय व्याकरण की विश्लेषण पद्धति , रीति विज्ञान। मिश्र जी के निबन्धों में लोकजीवन एवं ग्रामीण समाज मुखरित हो उठा है । किसी भी प्रसंग को लेकर वे उसे ऐतिहासिक , पौराणिक , साहित्यिक सन्दर्भो से युक्त कर लोकजीवन से जोड़ देने की कला में पारंगत हैं । उनके निबन्धों में लोकतत्व का समावेश है । विशेष रूप से भोजपुरी लोकजीवन उनके निबन्ध में समाया हुआ है ।

विशेषता

मिश्र जी के ललित निबन्धों में भावात्मकता के साथ – साथ लोक संस्कृति की छटा विद्यमान है । इनके निबन्धों में प्रसादमयी भाषा – शैली , कथात्मक चित्रों की अधिकता और विवेचना की तथ्यपूर्ण गम्भीरता दिखाई देती है । अज्ञेय के अनुसार ” विद्यानिवास जी ने संस्कृत साहित्य को मथकर उसका नवनीत चखा है और लोकवाणी की गौरव गन्ध से सदा स्फूर्ति भी पाते रहे हैं । ललित निबन्ध वह लिखते हैं तो लालित्य के किसी मोह से नहीं , इसलिए कि गहरी , तीखी , चुनौती भरी बात भी एक बेलाग और निर्दोष बल्कि कौतुकभरी सहजता से कह जाते हैं ।

मिश्रजी के निबन्धों को विचारात्मक , समीक्षात्मक , वर्णनात्मक एवं संस्मरणात्मक – इन पांच वर्गों में विभक्त किया जा सकता है । उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है , किन्तु उसमें उर्दू , अंग्रेजी एवं ग्रामीण जीवन के शब्द भी मिलते हैं । शैली की विविधता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषता है । आलंकारिक शैली , तरंग शैली , व्यंग्यपूर्ण शैली , व्याख्यात्मक शैली , आलोचनात्मक शैली उनके निबन्धों में है ।

उपसंहार

मिश्र जी ललित निबन्धकारों में विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं । साहित्य के साथ – साथ भाषा विज्ञान के भी वे पण्डित थे। उन्होंने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की परम्परा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । वे प्राचीन संस्कृत , साहित्य को समसामयिक दृष्टि से देखते थे और उसमें से मानवता के मोती निकाल लाते थे। आचार्य हजारीप्रसाद जी का प्रभाव उनके निबंधों पर स्पष्ट परिलक्षित होता है।

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