hindi essay on my family
भूमिका
परिवार शब्द का सामान्य अर्थ होता है, घर की एक ही छत के नीचे रहने वाले वे लोग, जो पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन आदि के रिश्ते-नाते के कारण आपस में जुड़े हुए हैं। उनका रहन-सहन सुख-दुख आदि सभी कुछ साँझा है। इस सामान्य दृष्टि के अतिरिक्त एक व्यापक दृष्टि से भी परिवार का स्वरूप और परिभाषा बतायी जाती है। अर्थात जिस देश , काल के समाज में हम रहते हैं , वह पूरा समाज भी हमारे परिवार के समान ही हुआ करता है । क्योंकि उस समाज में हम अपने रहन – सहन , खान – पान , सध्यता – संस्कृति , रीति – नीतियों और भाषा आदि की दृष्टि से समान व्यवहार करते हैं , सभी प्रकार के उत्सव और त्योहार भी समान रूप से एवं मिल – जुलकर मनाते हैं ! इस कारण हम अपने देश और उसके समाज नामक परिवार के सदस्य अपने – आप हो जाते हैं ।
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Hindi essay on my family
छोटा सा मेरा परिवार
मेरा परिवार बड़ा ही छोटा या संक्षिप्त – सा है । आजकल जिसे सन्तुलित परिवार कहा जाता है , मैं अपने परिवार को उसी प्रकार का मान और कह सकता हूँ । मेरे पिता , माता एक बहन और भाई के रूप में एक मैं बस , इतना – सा , अर्थात् कुल जमा चार सदस्यों का ही हमारा परिवार है । लगता है , हमारे माता – पिता ने परिवार कल्याण मंत्रालय के इस नारे का पालन किया है – ‘ हम दो, हमारे दो बच्चे , सुखी जीवन , सुखी परिवार । ‘ हमारा परिवार सन्तुलित है , इस कारण हमारा परिवार सुखी भी है ।
सामान्य रूप से हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को किसी इच्छापूर्ति या वस्तु के लिए मन मार कर नहीं रहना पड़ता ! जैसे बड़े – बड़े परिवार अक्सर इच्छाएँ पूरी न हो सकने , अभाव और कष्ट होने का रोना रोते रहा करते हैं , अक्सर आपस में जरा – जरा – सी बात और चीज़ के लिए लड़ते – झगड़ते रहते हैं , उस प्रकार की स्थिति हमारे परिवार में कभी नहीं आती । सभी की उचित इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जाता है ! इससे हम सभी बहुत खुश , आपस में मिल – जुलकर रहते हैं ।
Hindi essay on my family
मध्यमवर्गीय हमारा परिवार
हमारा परिवार निम्न – मध्यवर्गीय परिवार ही कहा जा सकता है । आजकल के इतने महंगाई के जमाने में चार-पाँच हजार मासिक आय वाले परिवार को उच्च वर्गीय तो क्या , मध्यवर्गीय परिवार तक नहीं कहा जा सकता । निम्न – मध्यवर्ग का ही तो कहा जा सकता है । सो इतनी आमदनी में ही हमारे माता – पिता हम सभी सदस्यों की आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखते हैं । हम दोनों भाई – बहन स्कूल में पढ़ रहे हैं । मैं सबसे बड़ा हूँ , दसवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ । मुझसे तीन साल छोटी मेरी बहन मुन्नी है , जो सातवीं कक्षा की छात्रा है ।
हम सभी पढ़ाई – लिखाई में ठीक – ठाक चल रहे हैं । अपनी पढ़ाई की पुस्तकों , कापियों आदि को संभाल कर रखते हैं । समय का सदुपयोग करते हैं । घर हो , बाहर हो या स्कूल हो , सभी जगह सबके साथ मिल – जुलकर रहते हैं । अच्छा व्यवहार करते हैं । इस कारण हमारे साथ भी सभी का व्यवहार अच्छा और स्नेहपूर्ण रहता है । हमारे अध्यापक भी पढ़ाई – लिखाई में हर प्रकार से सहायता पहुंचाते हैं ।
एक सामान्य परिवार
मेरा परिवार जिस गली और मुहल्ले में रहता है , वहाँ प्रायः सभी लोग हमारे समान ही आर्थिक स्थिति वाले हैं । ऐसा होते हुए भी अक्सर वे लोग तरह – तरह के बनावटी व्यवहार , अनचाहे फैशन , एक – दूसरे की ही नहीं , अपने से बड़ों की नकल करने की कोशिश में लगे रहते हैं । इस कारण अक्सर हर महीने की पन्द्रह – बीस तारीख के बाद दुकानदारों से , दफ्तर वालों से , या एक – दूसरे से , उधार माँगते देखा जा सकता है । हर बात पर वे महँगाई का रोना रोते हुए देखे जा सकते हैं । गालियाँ दे – देकर व्यवस्था को कोसते रहते हैं , पर अपनी ग़लतियों और कमियों को सुधारने की कोशिश कभी नहीं करते । जरा – जरा – सी बात पर आपस में तो लड़ने ही लगते हैं , आस – पड़ोस वालों से भी लड़ने लगते हैं ।
ज़रा – जरा – सी बात के लिए बच्चों को डाँट – फटकार देते हैं । उनकी पढ़ाई तक की आवश्यकताएँ पूरी करते समय रोते – झींकते रहते हैं । ऐसे लोगों के सामने न तो वर्तमान का सुख – चैन रहता है और न भविष्य की ही । किन्तु हमारे घर – परिवार में ऐसी बातें नहीं हैं । आगे चलकर हम भाई – बहनों को क्या बनना और क्या करना है , हमारे माता – पिता हमारे मन में इसका अहसास अभी से कराते रहते हैं । हमें समझाते रहते हैं । यदि हम लोग कभी कोई ग़लती भी कर देते हैं , तो वे हमें डांटते – फटकारते नहीं बल्कि प्यार से ग़लती के अच्छे – बुरे पहलू और परिणाम बताकर भविष्य में सावधान रहने की प्रेरणा देते हैं ।
Hindi essay on my family
आपसी सहयोग पर खड़ा परिवार
हमारा परिवार छोटा – बड़ा हर आवश्यक घरेलू कार्य आपस में विचार – विमर्श करके किया करता है , इस कारण किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं रहती । समय पर उठना , सुबह की क्रियाएँ और नाश्ता करना आदि से लेकर रात के सोने तक के सभी कार्य मिल – जुल कर करते हैं । घर में कोई सगा – सम्बन्धी या आस – पड़ोस का मेहमान आ जाता है , तो उसे देखकर हमें माथा सिकोड़ लेने की जरूरत नहीं पड़ती । हम सब खिले माथे से मुस्करा कर उनका स्वागत करते हैं ।
किसी भी प्रकार के प्रदर्शन और औपचारिकता में न पड़कर अपनी हैसियत के अनुसार आने वालों का सत्कार करते हैं । याद रहे , हमारे साथ भी सभी का व्यवहार प्रायः इसी प्रकार का रहा करता है । फिर भी कुछ लोग हमारे व्यवहार को सनक या बनावट कहकर आपस में हमें लड़ाने की कोशिश करते रहते हैं , पर हम लोग ऐसों की कोई परवाह नहीं करते । ऐसों की तरफ ध्यान ही नहीं देते । यह सोचकर अपने व्यवहार को सन्तुलित बनाये रखते हैं कि सभी का अपना – अपना स्वभाव , चीजों को सोचने – समझने का ढंग हुआ करता है ।
उपसंहार
सो कुल मिलाकर मैं कह सकता हूँ कि मेरा परिवार छोटा-सा परिवार एकदम वैसा ही है कि जिसकी कल्पना हमारे सांस्कृतिक ग्रंथों में मिलती है । परिवार संतुलित है और प्रसन्न भी है । अपने कर्तव्य पालन में लगा है । कोई कुछ भी कहता है, कहता रहे । हमारे व्यवहार में अंतर नहीं आ सकता है ।