मेरी दिनचर्या पर निबंध | meri dincharya par nibandh

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भूमिका

जीवन जीने के लिए, जीवन को व्यवहारिक और क्रियाशील बनाए रखने के लिए छोटे-बड़े हर स्थिति वाले आदमी की एक निश्चित दिनचर्या होनी ही चाहिए । जो विद्यार्थी आगे चलकर सफल नागरिक बनना चाहते हैं, सार्थक जीवन जीना चाहते हैं । उन्हें तो घड़ी की सुईयों के साथ चलने की आदत अवश्य डालनी चाहिए । अर्थात एक उचित और आवश्यकतानुसार दिनचर्या बना कर नियमयूर्वक उसका पालन करना ही चाहिए । सो अपने घर – परिवार बड़े सदस्यों , गुरुजनों के आदेश और निर्देश से मैंने अपनी एक सीधी – सादी दिनचर्या बना रखी है । हर संभव कोशिश करके मैं उसी के अनुसार चल रहा हूँ ।

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दिन का आगाज

मैं सुबह हर रोज़ पांच बजे तक सोकर उठ जाता हूँ । रात को ताम्बे के एक लोटे में पानी भरकर मैं उसे अपने बिस्तर के पास ही रख दिया करता हूँ । सोकर उठने के बाद भगवान का स्मरण कर अपने दोनों हाथ देखने के बाद मैं पानी से भरा वह लोटा गटागट पी जाता हूँ । उसे पीने के कुछ देर बाद शौच आदि से निवृत्त हो अपने बड़े भाई के साथ पास वाले पार्क में टहलने चला जाता हूँ । meri dincharya par nibandh

थोड़ी देर इधर – उधर टहलने के बाद मैं और भाई साहब पहले कुछ हल्का व्यायाम करते हैं , फिर कुछ योगासनों का अभ्यास करते हैं । इस प्रकार हर दिन आधा – पौना घंटा तक प्रात : -भ्रमण , व्यायाम आदि करके हम लोग घर वापिस लौट आते हैं । घर आकर नहाना – धोना होता है । जब तक नहा – धोकर तैयार होता हूँ , तब तक नाश्ता तैयार करके माता जी बुला लेती हैं ।

विद्यालय प्रस्थान करना

दूध , फल , कभी – कभी गाजर या दाल आदि का हलवा , दलिया आदि का नाश्ता करने के बाद मैं स्कूल जाने की तैयारी करने लगता हूँ । हमारा स्कूल सुबह सवा सात बजे से एक – डेढ़ बजे तक लगता है , हमारे घर से दूर भी नहीं है । सो मैं अपना बस्ता संभाल स्कूल चल देता हूँ । मेरी आदत स्कूल में भागते – भागते पहुंचने की नहीं है । देर से पहुंचने की भी नहीं है । इस कारण मैं आराम से चलते हुए प्रार्थना आरम्भ होने से पाँच – सात मिनट पहले ही पहुंचकर हर रोज़ प्रार्थना में भाग लेता हूँ । प्रार्थना के बाद कक्षाएं आरम्भ हो जाती हैं । हर विषय के अध्यापक जो कुछ पढ़ाते हैं , मन लगाकर पढ़ता हूँ ।

समझ न आने पर तब तक प्रश्न करके उसे पूछता और समझने की कोशिश करता रहता हूँ , जब तक कि अच्छी तरह समझ में नहीं आ जाता । मेरे सभी अध्यापक मेरा स्वभाव जानते हैं , इस कारण बुरा न मान मुझे ठीक प्रकार से समझाते और प्रश्नों का ठीक उत्तर देते हैं । बीच में एक पीरियड पी.टी. का आता है , उसमें में मैं नियमपूर्वक अभ्यास करता हूँ । इससे मेरा शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है । कभी बीमार नहीं पड़ता ! स्कूल में अक्सर तरह – तरह के खेलों का आयोजन भी होता रहता है । हॉकी और फुटबॉल खेलना पसन्द करता हूँ ! मेरी रुचि एन. सी. सी. की गतिविधियों में भी है , इस कारण पढ़ाई के पीरियड समाप्त होने के बाद कम – से – कम एक घण्टे तक मुझे उसके लिए रुकना पड़ता है ।

विद्यालय से घर आगमन

कोई दो बजे के लगभग घर पहुंचकर , स्कूल का बस्ता अपने स्थान पर रख कर हाथ – मुंह धोकर मैं खाना खाया करता हूँ ! खाने के बाद कम – से – कम एक घण्टा पूर्ण विश्राम करता हूं । नींद न आने पर भी चुपचाप पड़ा रहता हूँ , किसी से बहुत आवश्यक होने पर ही बातचीत आदि करता हूँ , नहीं तो शान्त पड़ा रहता हूँ । उसके बाद उठकर दो घण्टे तक स्कूल का कार्य निपटाने का मैंने पक्का नियम बना रखा है । यह नियम छुट्टी वाले या किसी विशेष उत्सव – त्योहार वाले दिन ही टूटता है , और कभी भी नहीं ! स्कूल का काम करने के बाद लगभग पाँच बजे मैं हल्का नाश्ता कर घर से निकल पड़ता हूँ । आस – पड़ोस के रिश्ते – नातों और मित्रों – सहपाठियों से मिलकर हल्के – फुल्के ढंग से बातें करता और गप्पें मारा करता हूँ ।

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गृहकार्य करना और टी.वी. देखना

इसके बाद घर लौट कर एक – डेढ़ घण्टे तक फिर मैं मन लगाकर पढ़ता हूँ । अपने पाठ दोहराता हूँ और उसके बाद ? नहीं , छिपाऊँगा या झूठ नहीं बोलूंगा । आजकल का ज़माना दूरदर्शन का जमाना है । सो मैं भी अपने सारे परिवार के साथ दूरदर्शन के सामने डट जाया करता हूँ । हम लोग वहीं एक – दूसरे से बातें करते , सभी तरह के हाल – चाल जानते – सुनते , खाना भी वहीं खाते हुए दूरदर्शन के मनपसन्द कार्यक्रम देखते रहते हैं ।

कई बार कुछ कार्यक्रम देखकर दूरदर्शन वालों की सोच – समझ और कल्पना – शक्ति पर रोना भी आता है ! पर हम लोग कर भी क्या सकते हैं ! या तो वे लोग जो कुछ भी उलटा – सीधा दिखा रहे हैं , उसे बरदाश्त करते रहते हैं , या फिर दूरदर्शन का बटन बन्द कर आपसी बातों में मगन हो जाया करते हैं । आपस में हँसी – मज़ाक भी कर लेते हैं । समाचार और उसके बाद दिखाया जाने वाला धारावाहिक , बस ! हमारा दूरदर्शन का दर्शन यहीं तक सीमित रहता है । हाँ , कभी कोई बहुत महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम साढ़े नौ बजे के बाद दिखाया जाना हो , तो अवश्य देखते हैं , अन्यथा यहीं तक बस !

खाना खाकर आराम करना

स्वाभाविक है कि अब तक बिस्तर की याद आने लगती है । साथ ही वह मीठा – गुनगुना दूध भी याद आने लगता है , जो माता जी हर रात सोने से पहले हम सभी भाई – बहनों को पिलाया करती हैं । उसे पीने के बाद बिस्तर पर लेटे ज्यादा देर तक बातें नहीं कर पाते । अपने-आप ही निंदिया रानी आकर आँखों में भरने लगती है । फिर कब नींद आ जाती है , पता ही नहीं चल पाता ! बस , आदत के अनुसार सुबह पांच बजे भाई साहब की आवाज़ सुनकर ही पता चल पाता है कि मैं सोया हुआ था । अब मुझे उठकर अपनी दिनचर्या को नये सिरे से शुरू करना है । बस , इतनी – सी है अपनी दिनचर्या !

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