सत्संगति पर निबंध | satsangati par nibandh

satsangati par nibandh in hindi

सत्संगति का अभिप्राय

सत्संगति ‘ सत् ‘ शब्दांश का अर्थ है – श्रेष्ठ , अच्छी , अच्छे जनों की , ‘ संगति ‘ शब्द का अर्थ है – दोस्ती , मित्रता , साथ । इस प्रकार इन दोनों शब्दों के मिलाप से बनने वाले शब्द ‘ सत्संगति ‘ का अर्थ है अच्छे जनों की मित्रता , दोस्ती या अच्छे लोगों से मेल – मिलाप करना , अच्छे लोगों का साथ करना , अच्छे लोगों के साथ उठना – बैठना और रहना !

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संगति का महत्व

एक कहावत है और प्रसिद्ध लेखक स्वर्गीय प्रेमचंद ने अपने किसी लेख में ऐसा लिखा भी है – जन्म से कोई भी मनुष्य बुरा नहीं होता ! वह जन्म और स्वभाव से देवता के समान हुआ करता है । किन्तु वह जिस प्रकार के वातावरण में रहता , जिस प्रकार के लोगों से मिलता – जुलता और साथ रहता है , वैसा ही बन जाया करता है । इसका सीधा – सा अर्थ और भाव यही है , कि जो आदमी अच्छे लोगों के साथ रहता या उठता – बैठता है , तो अच्छा बन जाता है । इसके विपरीत यदि बुरे लोगों के साथ अधिक समय बिताया करता है , तो स्वाभाविक है कि उसमें भी बुरे गुणों और बुराइयों का विकास हो जाया करता है ।

दूसरे शब्दों में , वह अच्छाई भूल और छोड़कर बुरा बन जाता है । इस कथन और उसकी व्याख्या से संगति का महत्त्व और प्रभाव स्पष्ट हो जाता है । संगति का प्रभाव बताने के लिए विद्वान लोग कई तरह के उदाहरण दिया करते हैं । एक उदाहरण के अनुसार चंदन का वृक्ष जहाँ उगा रहता है , अपनी सुगन्ध के प्रभाव से वह आस – पास के वृक्षों को भी अपने जैसा ही बना लिया करता है ।

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संगति का प्रभाव

अपने – आप में कोई बुरा या भला नहीं हुआ करता । वह जिस प्रकार की संगति में बैठता है , उसी प्रकार की संगति उसकी हो जाया करती है । इससे केवल वह दूर रहकर ही उसके प्रभाव से बच सकता है । परन्तु संगति के अच्छे प्रभाव से तो शायद ही कोई बचना चाहे , सभी कुसंगति से ही बचना चाहते हैं । व्यक्ति सोच-समझकर , सत्संगति करके ही कुसंगति और उसके बुरे प्रभावों से बचा रह सकता है , समझदारों की यह स्पष्ट मान्यता है । सज्जनों का साथ सत्संगति कहलाता है ।

मनुष्यता का विकास समस्त अच्छी वृत्तियों और प्रवृत्तियों को उजागर करके सारे वातावरण को अच्छा , उन्नत एवं ग्रहण करने के योग्य बन जाया करता है । अच्छे लोगों की सहायता – सहयोग और शक्तियों के जाग उठने पर आदमी अपने साथ – साथ पूरे समाज , देश – जाति और सारी मानवता का भला कर सकता है । सत्संगति से मनुष्य के ज्ञान – क्षेत्र का विस्तार होता है। उसमें मनुष्यता का विकास होता है।

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कुसंगति का प्रभाव

इनके ठीक विपरीत एक अच्छा व्यक्ति बुरे संगत में पड़कर बिगड़ जाता है। उसकी बुराइयों से परिचित होने के कारण न तो कोई उसकी सहायता करता है , न अपने पास ही फटकने देता है । सभी उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं । बुराई के डर से मुंह पर चाहे कुछ न कहे , पर पीठ पीछे उसकी प्रशंसा कोई नहीं करता । उसके कारण उसके अच्छे – भले घर – परिवार को भी बदनाम हो जाना पड़ता है । बुरी संगत में फंसे लोग समाज और देश – जाति का भी बुरा करने वाले , अपमान का कारण हुआ करते हैं ।

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए वे घर – परिवार के समान देश – जाति आदि सभी का अपमान कर सकते हैं , सभी को दांव पर लगा सकते हैं । ऐसे लोगों के लिए जब अपने मान – सम्मान का ही कोई अर्थ नहीं रहता , तो फिर उन्हें देश – जाति के मान – सम्मान की चिन्ता क्यों और कैसे हो सकती है ? बुरों से बोलना – चालना और व्यवहार करना तो क्या उनके आस – पास रहना तक कलंकित करने वाला हुआ करता है । बुझा हुआ कोयला हाथ काला करता है , जबकि धधकता हुआ जलाया करता है । इसी तरह कुसंगति में फंसे लोग अपने हर रूप में बुराई करने वाले ही होते हैं , अच्छाई नहीं !

सत्संगति एवं कुसंगति के स्वभाव में भिन्नता

अच्छाई – बुराई या सत्संगति – कुसंगति दोनों का स्वभाव से ही विरोध रहता है । इनका साथ कभी निभ ही नहीं सकता ! बुरे या कुसंगति में फंसे व्यक्ति का साथ तो कभी भी नहीं ! जैसे केला और बेरी का पेड़ एक साथ रहकर फल – फूल नहीं सकते , वैसे ही अच्छे – बुरे का साथ भी लाभदायक नहीं हो सकता । बेरी की टहनियां जब हिलती – डुलती है , तो उनके काटे केले के कोमल पत्तों में चुभकर उन्हें फाड़ देती हैं । उसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वालों की मस्ती अच्छे स्वभाव वालों को हानि ही पहुँचाती है ।

यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि बुराई का प्रभाव आदमी पर जल्दी पड़ता है , अच्छाई का धीरे – धीरे और देर से । अतः जो आदमी सुख – चैन से रहना चाहता है , उसे बुरों के पास भी नहीं फटकना चाहिए ! एक छूत के रोग के समान कुसंगति आदमी के तन – मन पर छाकर उसे घर – बाहर कहीं का भी नहीं रहने देती !

सत्संगति से अच्छे कर्म की प्राप्ति

कहते हैं , मनुष्य का जन्म और जीवन बार – बार नहीं मिला करता । चौरासी लाख योनियों का भोग भोगने के बाद ही कहीं अच्छे कर्मों के फलस्वरुप मनुष्य का जन्म मिल पाता है । वह भी इसलिए कि बार – बार के जन्म – मरण के चक्कर से छुटकारा पाया जा सके । छुटकारा पाने के लिए अच्छे कर्म करना बहुत आवश्यक होता है । कुसंगति में रहकर अच्छे कर्म कर पाना कतई संभव नहीं हो सकता । उसके लिए सत्संगति आवश्यक है । अच्छे लोगों की संगति अच्छे कर्म करवाती है , जो उद्धार की आवश्यक शर्त है । जैसे परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ाकू लोगों का साथ आवश्यक है , डटकर पढ़ना और परिश्रम करना आवश्यक है , उसी प्रकार इस जीवन में सफलता पाने और परलोक – सुधार के लिए अच्छे लोगों के साथ रहकर अच्छे कर्म करना आवश्यक है ।

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निष्कर्ष

अपने और सभी के भले के लिए हमें सत्संगति में ही रहना है । हमें सत्संगति – रूपी चन्दन के पास रहकर अपने तन – मन को भी अच्छे कर्म – रूपी सुगन्ध से भर लेना है , न कि बेरी रूपी कुसंगति के पास रहकर अपने सुकर्म सुनाम रूपी पत्ते भी नष्ट करवाना है ! वास्तव में मनुष्य बने रहने की कोशिश , मनुष्यता को हमेशा जगाये रखने की कोशिश ही सत्संगति का लाभ है । इसलिए हमें कुसंगति का त्याग कर सत्संगति का मार्ग आज ही अपना लेना चाहिए । हमारी भावी सफलता हमारे अच्छे बनने में ही छिपी हुई है।

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