शिक्षा में खेल और कला का महत्व पर निबंध | Shiksha Mein Khel Aur Kala

Shiksha Mein Khel-Kala

भूमिका

शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य जीवन का सभी प्रकार से विकास करना है । यह विकास जितना मन-मस्तिष्क का आवश्यक है , उतना ही शरीर का भी आवश्यक है । ध्यान रहे , केवल किताबी कीड़ा बन जाने से आदमी कुछ परीक्षाएँ तो पास कर सकता है , पर तन – मन और बुद्धि का सम्पूर्ण विकास नहीं कर सकता । इसके लिए पढ़ाई – लिखाई के साथ – साथ कुछ और कार्यों में रुचि लेना जरूरी होता है । एक विद्यार्थी के लिए इस प्रकार के अन्य कार्य दो ही कहे जा सकते हैं , ये खेल कूद और कलाओं में रुचि लेना है।

Shiksha Mein Khel Aur Kala par nibandh

खेल-कूद से शिक्षा

सभी विद्वानों और महापुरुषों ने अच्छे विद्याथियों के लिए ढंग से पढ़ने-लिखने के साथ – साथ जिन करणीय कामों की सिफारिश की है , वे खेल – कूद या व्यायाम और ललित कलाओं में रुचि लेना ही है । वास्तव में विद्यार्थी जीवन में इन दो कार्यों का बड़ा महत्व एवं प्रयोजन सिद्ध हो सकता है । सभी प्रकार का विकास इन कार्यों के साथ साथ करने से ही संभव हो सकता है ।

कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन – मस्तिष्क का निवास हुआ करता है । शरीर को स्वस्थ करने के लिए व्यायाम का बहुत अधिक महत्व होता है । अपनी रुचि के अनुकूल तरह – तरह के कोई एक खेल खेलने की आदत डालने से मनोरंजन भी हो जाता है और व्यायाम भी । खेलों को भी वास्तव में शिक्षा का अंग मानकर ही चला जाता है । विद्यार्थियों को ऐसा कर ही उत्साहपूर्वक खेलों में रुचि लेनी चाहिए । जैसे पुस्तकें पढ़कर हम बहुत सारी अच्छी और उपयोगी बातें सीखते हैं , उसी प्रकार खेल – कूद से भी बहुत कुछ सीखते और सीख सकते हैं । खेलों से स्वास्थ्य तो ठीक रहता ही है , हमारे जीवन का क्रम और व्यवहार भी ठीक हो सकता है ।

भविष्य निर्माण में खेल का महत्व

स्वस्थ रहकर व्यक्ति अच्छी प्रकार से पढ़ – लिख सकता है , हर प्रकार का परिश्रम करके भविष्य में पूर्ण बनने का सफल प्रयास कर सकता है । खेल कूद विद्यार्थी के मन में मुकाबले की स्वस्थ भावना जगाते हैं । उसे मिल जुलकर काम करने , अपने लक्ष्य तक पहुंचने की प्रेरणा देते हैं । एक और संगठित होकर काम करना सिखाते है । मनुष्य की विजय पाने की भावना को प्रबल बनाते हैं । उसमें उत्साह की भावनाएँ रखते हैं । फलस्वरूप खेलों में रुचि रखने वाला व्यक्ति अच्छी प्रकार पढ़ने-लिखने के साथ-साथ अपने अन्य सभी कार्य भी चुस्ती से कर सकता है ।

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खेल – कूद में व्यक्ति का अपने और अपने साथियों के साथ मिलकर दोनों तरह से ध्यान अपने गोल अर्थात लक्ष्य पर रहता है , इससे वह किसी भी काम में ध्यान केन्द्रित कर लेने की शिक्षा पाकर उसका उचित अभ्यास भी कर लेता है । पढ़ाई – लिखाई के साथ खेलों का यह महत्त्व वास्तव में बड़ा ही लाभदायक और उपयोगी है । शरीर , मन और आत्मा के विकास का अच्छा साधन है ।

कलाओं का महत्व

खेलों की तरह कलाओं में रुचि रखना और उनका अभ्यास करना भी शिक्षा पा रहे विद्यार्थी के लिए कई तरह से उपयोगी हो सकता है । ललित कलाओं का सम्बन्ध मनुष्य के भावों के साथ हुआ करता है । अत : कलाओं में रुचि लेकर पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति हर प्रकार की मधुर , कोमल , और सुन्दर भावनाओं का उचित विकास करके जीवन को भी मधुर सुन्दर बना सकता है । कलाएँ हमारी रुचियों का परिष्कार और विस्तार दोनों करती हैं । हमारी कल्पना शक्ति को बढ़ाती है । जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को सुन्दर , स्वस्थ और रुचिकर बनाती हैं ।

साहित्य , संगीत , चित्र , नृत्य , मूर्ति और वास्तु आदि ललित कलाएँ हमारा काफी मनोरंजन भी करती हैं । यह मनोरंजन जीवन को विशेष बल देने वाला हुआ करता है । कलाओं के अभ्यास से हमारे ध्यान में एकाग्रता आती है , विचार उच्च और महान बनते हैं । मनुष्य की मनुष्यों के प्रति समझ और सहानुभूति बढ़ती है । किसी भी अच्छी शिक्षा का मूल उद्देश्य यही सब करना तो हुआ करता है न ! सो कह सकते हैं कि शिक्षा में खेल – कूद के समान कलाओं का महत्त्व भी स्पष्ट है । इन तीनों अर्थात् शिक्षा , खेल – कूद , कला – साधना का महत्त्व त्रिवेणी समान ही पवित्र एवं तन – मन को शक्ति देने वाला है।

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शिक्षा और खेल में संबंध

शिक्षा का अर्थ आदमी को योग्य और क्रियाशील बनाना है । खेल – कूद यदि शरीर को स्वस्थ सुन्दर बनाकर आदमी को योग्यता और क्रियाशीलता की तरफ बढ़ाते हैं , तो कलाएँ उसके मन – मस्तिष्क को मनोरंजक ढंग से सुन्दर – स्वस्थ बनाकर वही सब करती हैं । वे आत्मा को जगाकर अपनी मधुरता से आदमी को आनन्दलोक में ले जाती हैं ! पढ़ाई – लिखाई के साथ खेल – कूद को महत्त्व देना यदि स्वस्थ प्रतियोगिता और मेल – जोल की भावना को बढ़ावा देता है , तो कला भी मन का मन से , आत्मा का आत्मा से मिलन करती हैं । जैसे खेल – कूद में छोटे – बड़े , ऊँच – नीच का भेद – भाव नहीं होता , उसी प्रकार कलाएँ भी आदमी को इस प्रकार के भेद – भावों से ऊपर ले जाती हैं । कलाएँ भावनाओं में उत्थान और विस्तार इस सीमा तक कर दिया करती हैं कि उनके संसार में अपना – पराया कोई नहीं रह जाता ।

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सभी मिलकर एक हो जाते हैं । यही कारण है कि शिक्षा – काल में जहाँ खेल – कूद को आवश्यक स्थान दिया जाता है , वहाँ कलाओं की भी उपेक्षा नहीं की जाती । पढ़ाई – लिखाई आदमी की आँखें खोल कर उसे अँधेरे से उजाले की तरफ ले जाती है , खेल कूद तन – मन को दुर्बलता और रोगों से बचाकर सबलता और निरोगता की तरफ ले जाते हैं , ललित कलाएँ मन और आत्मा की कुरूपता को दूर कर , हृदयहीनता को मिटाकर सुन्दरता और सरसता की ओर ले जाती हैं । इस प्रकार तीनों हमारा स्वस्थ मनोरंजन भी करते हैं । स्पष्ट है कि तीनों का उद्देश्य मानव – जीवन का विकास कर उसे उन्नत बनाना है । जब इन तीनों को मिला दिया जाये , तो फिर शिक्षा पाने के इच्छुक व्यक्ति किसी भी प्रकार की कमी या हीनता रह जाना संभव नहीं होता !

उपसंहार

आज का जीवन बड़ा जटिल है । आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षर होना या पढ़ – लिख पाना ही नहीं रह गया , बल्कि जीवन और समाज का बहुमुखी विकास करना है । जीवन और समाज में आ गयी जटिलताओं को दूर करना है । जीवन और समाज में आ गयी शुष्कता और नीरसता को मिटाना भी है । सबसे बढ़कर जीवन को जीने योग्य बनाना है । यह तभी संभव हो सकता है कि जब शिक्षा हमारे तन के साथ – साथ हमारे मन और आत्मा को भी जगाने वाली हो ।

शिक्षा – क्षेत्र में आवश्यक रूप से खेलों और कलाओं का समावेश करके ही इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है , ऐसा हमारा दृढ़ मत है । इसके लिए आवश्यक है कि लार्ड मैकाले के ज़माने से चली आ रही शिक्षा प्रणाली को बदला जाये । विद्यार्थियों के लिए विद्यालयों के ‘ पास ही खेल – कूद के लिए मैदान उपलब्ध कराये जाएँ । विद्यालयों में ललित कलाओं की उचित शिक्षा और अभ्यास का प्रबंध किया जाए। तभी शिक्षा सच्चे अर्थों में पढ़ने वालों के तन-मन और आत्मा का पूर्ण विकास कर अपने वास्तविक उद्देश्य और महत्व को सफल-सार्थक कर पाएगी।

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